पांचवी के बच्चों को दूसरी का पाठ पढ़ना नहीं आता, शिक्षा को प्रयोगशाला बना देने का दुष्परिणाम
संदीप कुलश्रेष्ठ
शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ प्रथम की एनुअल स्टेट्स ऑफ एज्युकेशन रिपोर्ट ( असर-2018 ) में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये है। इस रिपोर्ट में यह पाया गया कि पांचवी तक के बच्चों को दूसरी का पाठ पढ़ना नहीं आता। इस एनजीओ ने देश के 596 जिलों के 17,730 गाँवों में तीन से सोलह साल की उम्र के 5,46,527 बच्चों पर किये गये सर्वे के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की । हाल ही में इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया है। एनजीओ ने प्रत्येक जिले के 30 गाँवों में यह सर्वे किया था । प्रत्येक गाँव में 20 घरों में बच्चां की जानकारी लेने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है।
उज्जैन संभाग की स्थिति बदतर -
इस रिपोर्ट में उज्जैन संभाग के स्कूली विद्यार्थियों की स्थिति बेहद कमजोर पायी गई है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कक्षा तीसरी से पांचवी तक के 58.4 प्रतिशत विद्यार्थी दूसरी कक्षा का हिन्दी का पाठ पढ़ नहीं पाते। यही नहीं 69.2 प्रतिशत विद्यार्थी घटाव तक नहीं कर सकते। छठी से आठवीं तक के विर्द्यार्थयों में भी 24 प्रतिशत विद्यार्थी दूसरी कक्षा का पाठ भी पढ़ नहीं पाते। हिन्दी पढ़ने के अलावा सामान्य ज्ञान और गणितीय गणनाओं में भी विद्यार्थी काफी कमजोर है। बच्चों से सर्वे के दौरान बेसिक रीडिंग, गणितीय गणनाएं, घटाव व भाग, संख्या पहचान , अंक पहचान सहित अन्य सवाल किये गये थे।
प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में विद्यार्थियों की उपस्थिति घटी-
सर्वे में ओैर भी बातों का खुलासा किया गया है। असर 2018 में पिछले 2 वर्ष के भीतर हुए बदलाव को भी प्रदर्शित किया गया है। इसमें यह पाया गया कि प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में 8 प्रतिशत विद्यार्थियों की उपस्थिति घटी है।वहीं प्रदेष के शासकीय स्कूलों में से 5.5 प्रतिशत प्राथमिक स्कूलों में और 9.6 प्रतिशत उच्च प्राथमिक शालाओं में शारीरिक शिक्षा के अध्यापक ही नहीं है।
शिक्षा के गिरते स्तर के ये हैं प्रमुख कारण -
प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में बोर्ड परीक्षाओं का समाप्त होना इसका प्रमुख कारण पाया गया है। इस कारण विद्यार्थियों में प्रतिस्पर्धा ही समाप्त हो गई। इसके अलावा प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में फेल नहीं करने के नियम के कारण विद्यार्थियों की शैक्षणिक क्षमता में कमी आई है। क्योंकि पढ़ाई में कमजोर होने पर भी वे पास होकर अपने आप अगली कक्षा में आ जाते हैं। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के कई स्कूलों में नियमित उपस्थिति नहीं रहने और शिक्षकों की कमी के कारण भी विद्यार्थियों के शैक्षणिक स्तर में कमी आई है। इन कारणों से भी शिक्षा का स्तर गिरा है।
शिक्षा को प्रयोगशाला से बचाने की जरूरत -
प्रदेश और उज्जैन संभाग में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में गिरते स्तर को सुधारने के लिए जरूरत इस बात की है कि शिक्षा को प्रयोगशाला बनने से सख्ती से रोका जाए। वर्तमान में हालत ये है कि कोई भी सरकार आती है तो शिक्षा के साथ प्रयोग शुरू कर देती है। यही नहीं शिक्षामंत्री के बदलते ही शिक्षा नीति में भी बदलाव शुरू हो जाता है। शिक्षा का स्तर बनाये रखने के लिए आवश्यकता इस बात की है कि सरकार किसी भी पार्टी की हो वह शिक्षा के साथ प्रयोग करने से अपने आप को रोके। इसके लिए जरूरी है कि बच्चों के शैक्षणिक और मानसिक विकास के लिए शिक्षाविद्ां की सलाह और मार्गदर्शन पर ही शिक्षा की दीर्घ कालीन नीति बनाई जाए। शिक्षाविद्ों द्वारा बनाई गई शिक्षानीति में राजनैतिक दल अपने तात्कालिक हित साधने के लिए उसमें प्रयोग करने से बचे, तभी बच्चों की नींव मजबूत होगी और शिक्षा का स्तर भी निश्चित रूप से सुधरेगा। इसके लिए केन्द्र और राज्य सरकारों को मिलजुलकर देशहित में शिक्षा नीति बनाने की आवश्यकता है। इस शिक्षा नीति में सभी प्राथमिक स्कूलों के लिए पर्याप्त शिक्षकों और स्कूल भवन की समुचित व्यवस्था होना जरूरी है। अभी हाल ये है कि कई प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 1 से 5 तक केवल एक शिक्षक के भरोसे ही कक्षाएँ चल रही है। और वे भी एक ही कक्ष में बैठकर पांचो कक्षाओं के बच्चे एकसाथ बैठकर अध्ययन करते है। ऐसी स्थिति में बच्चे के शैक्षणिक विकास की कल्पना करना बेमानी है। इसके लिए मूलभूत अधोसंरचनाएँ होना अत्यावश्यक है।
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