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प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए


                      संदीप कुलश्रेष्ठ

              हाल ही में आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने जबलपुर की केशव कुटी में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होना चाहिए। मातृभाषा के लिए अपनी शक्ति से जितना हो सके, उतना प्रयास करना चाहिए। आपने यह भी कहा कि दुनिया में फिललैंड की शिक्षा व्यवस्था सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। वहाँ हर बच्चे को मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाती है। 
बड़े राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने क्यों ध्यान नहीं दिया ?
                 आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत की देश में एक विचारक के रूप में पहचान है । उनके कहे को आरएसएस में बहुत सम्मान दिया जाता है। उन्होंने हाल ही में जबलपुर में अपने जो विचार व्यक्त किये हैं वैसे विचार उन्होंने पहले भी व्यक्त किये होंगे। पिछले पाँच सालों से केन्द्र में भाजपा की सरकार है। तो यहाँ सहज ही यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी बात पर गौर नहीं किया ? या मानव संसाधन विकास मंत्री ने अपने संघ प्रमुख की बात पर ध्यान नहीं दिया ? गुजरात में पिछले 16 साल से अधिक समय से भापजा की सरकार है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ में भी 15 साल तक भापजा की सरकार रही है। इन तीन बडे़ राज्यों के अलावा भी अनेक राज्यों में भाजपा की सरकार है। वहाँ के मुख्यमंत्रियों ने भी डॉ. मोहन भागवत के विचारों और भावनाओं पर ध्यान क्यों नहीं दिया ? उन्होंने अपने राज्यों में मातृभाषा में ही प्राथमिक शिक्षा को देने के लिए नियम कायदे क्यो नहीं बनाये ? इससे क्या अर्थ निकाला जाये ? क्या भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने संघ प्रमुख की बातों पर ध्यान देना कम कर दिया है ? सहज ही यह प्रश्न उत्पन्न होता है। डॉ. मोहन भागवत को केन्द्र और राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस संबंध में पूछताछ करनी चाहिए।  
विश्व के प्रमुख देशों में मातृभाषा में ही दी जाती है शिक्षा - 
                       विश्व के अनेक प्रगतिशील देशों में वहाँ कि मातृभाषा में ही प्राथमिक शिक्षा दी जाती है। यही नहीं माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक और उच्च शिक्षा भी उस देश की राष्ट्रभाषा में ही दी जाती है। चीन, रूस , फा्रंस , जर्मन आदि प्रमुख देशों में आज नहीं, पिछले अनेक दशकों से वहाँ की मातृभाषा में और राष्ट्रभाषा में ही शिक्षा दी जाती है। इन देशों ने हर क्षेत्रां में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की है। यह किसी से छुपा नहीं है। 
भारत ही ऐसा देश, जहाँ हो रही निरन्तर उपेक्षा -
                        विश्व के अनेक प्रमुख देशों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है ,जहाँ प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में नहीं दी जाती है। न ही इस संबंध में कोई कानून बनाया गया है। शिक्षा का लोकव्यापीकरण होने के बाद जरूरत इस बात की थी कि हमारे देश में भी मातृभाषा में ही प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा हो । करीब चार दशक पहले देश में त्रिभाषा का फार्मूला भी लागू किया गया था, किन्तु वह भी राजनीति की भेंट चढ गया और असफल हो गया। आज देश के हर राज्यों में अग्रेंजी माध्यम के स्कूल कुकुरमुत्ता जैसे उग आये हैं। राज्यों के सरकारी स्कूलों में कुप्रबंध के कारण और शिक्षकों की लापरवाही के कारण दिनों दिन छात्रों  की उपस्थिति कम होती जा रही है। निजी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में बच्चों की भीड़ बढती जा रही है। यह देश के लिए खतरनाक है। किन्तु इस और कोई ध्यान नहीं दे रहा है। ये दुखद है ।
राजनीति से परे जाकर सोचने की है आवश्यकता -
                           उक्त परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक के प्रमुख द्वारा ये कहना कि देश में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। उनकी इस बात को हर कोई समर्थन करेगा। उनकी कही बात सही है। किन्तु यदि डॉ. मोहन भागवत इस दिशा में सही मायने में कुछ ठोस करना चाहते हैं तो वे तुरन्त प्रधानमंत्री और मानव संसाधन विकास मंत्री को बुलाकर इस दिशा में ठोस कार्रवाई करने को कहे। संघ प्रमुख की बातों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। केन्द्र को ही नहीं देश के सभी राज्यों मे भी इस पर गौर करने की जरूरत है। भले ही उन राज्यों मे भाजपा की सरकार हो या किसी अन्य राजनैतिक दल की। शिक्षा एक ऐसा विषय है , जिसमें राजनीति से परे जाकर राष्ट्रहित में सोचने की जरूरत है, तभी हमारी देश की भावी पीढ़ी की नींव मजबूत होगी। 
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