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शोध के क्षेत्र में भारत चीन से पाँच गुना पीछे


 

                    संदीप कुलश्रेष्ठ
                          उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में भारत की स्थिति दयनीय है। चीन हर क्षेत्र में भारत से बहुत आगे हैं। शिक्षा और शोध के क्षेत्र में भारत की चीन से तुलना करें तो स्थिति अत्यन्त दुखदायी है। वैश्विक स्तर पर पिछले पाँच साल में शोध प्रकाशित होने की संख्या में भारत का योगदान सिर्फ 4 प्रतिशत है। शोध के क्षेत्र में चीन से भारत पाँच गुना पीछे है। आइये,देखते है शोध प्रकाशनों की संख्या में  वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति क्या है ?
 
शोध प्रकाशनों की संख्या -
विषय                 विश्व                भारत            प्रतिशत
सभी शोध        83,09,000        3,36,000        4 प्रतिशत
इंजीनियरिंग    24,69,000         1,51,000        6 प्रतिशत
प्रबंधन               1,11,000             2,700        2.5 प्रतिशत
फार्मेसी              2,03,000           10,700        5.25 प्रतिशत
                     उक्त चार्ट से स्पष्ट होता है कि भारत की स्थिति शोध के क्षेत्र में अत्यन्त चिंताजनक है। इस ओर ध्यान देने की अत्यन्त आवश्यकता है। शोध के क्षेत्र में ही नहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी भारत वैश्विक स्तर पर अत्यन्त पिछड़ा हुआ है। चीन की तुलना में भारत की स्थिति यहाँ भी दयनीय है। देखते है वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति क्या है ? और चीन की तुलना में हम कहाँ है ?
 
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति -
विषय                                                चीन                                      भारत 
क्यू रैंक के टॉप 100 कॉजेलों में         6 यूनिवर्सिटी                             एक भी नहीं
विश्व स्तर पर प्रमाणित पेपर            4,000 पेपर                               500 पेपर
शोधकर्ताओं की संख्या                     16 लाख                                       3 लाख
एज्युकेशन पर खर्च                        जीडीपी का 4 प्रतिशत                  जीडीपी का 2.5 प्रतिशत
                                                 40 लाख करोड़                              4 लाख करोड़
शोध पर खर्च                               जीडीपी का 2.1 प्रतिशत                जीडीपी का 0.7 प्रतिशत
                          उक्त चार्ट से यह स्पष्ट होता है कि भारत को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में और शोध के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। आज चीन उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में भारत से 10 गुना ज्यादा खर्च कर रहा है। भारत को भी ऐसा ही करने की आवश्यकता है। 
उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में आमूलचुल परिवर्तन की जरूरत -
                          उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में भारत की इस दयनीय स्थिति को सुधारने के लिए इन दोनों क्षेत्र में आमूलचुल परिवर्तन की जरूरत है। आब्जर्वर रिसर्च फाउन्डेशन के विशिष्ट फैलो श्री मनोज जोशी का इस संबंध में कहना है कि 1967 में कल्चरल रिवोल्यूशन के बाद चीन का उच्च शिक्षा का ढांचा पूरी तरह चरमरा गया था। इसके उत्थान के लिए वहाँ के विशेषज्ञां ने प्रोजेक्ट 863 बनाया। 90 के दशक में चीन ने उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में खूब खर्च किया। अपने छात्र-छात्राओं को विदेशों के उच्च स्तर के विश्वविद्यालयों में पढ़ने के योग्य बनाया। फिर वहाँ भेजा। फिर इनमें से अधिकांश छात्र-छात्राओं को मोटी तन्ख्वाह देकर वापस चीन लाया गया। इन प्रोफेसरां को 2 लाख डॉलर यानी करीब डेढ़ करोड़ रूपये प्रतिवर्ष देने का ऑफर दिया गया और उन्हें रखा गया। इन प्रोफेसरों ने खूब मेहनत की और पिछले दो दषक में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपने देश की अलग विशिष्ट पहचान बनाई। 
शोध क्षेत्र में आकर्षक शोधवृत्ति देने की जरूरत-
                           भारत में भी चीन की तरह कार्य करने की आवश्यकता है, ताकि उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में सम्मानजनक स्थिति प्राप्त की जा सके। इसके लिये शोध के क्षेत्र में आने वाले छात्र- छात्राओं को 1 लाख रूपये मासिक शोधवृत्ति देने की आवश्यकता है। दःुखद स्थिति यह है कि वर्तमान में पीएचडी कर रहे छात्रां को मात्र 25 हजार रूपये शोधवृत्ति दी जाती है। यह राशि अत्यन्त कम है। इस कारण शोध करने वाले छात्रों को अच्छी नौकरी मिलते ही वे शोध को तिलांजलि दे देते हैं। यदि उन्हें अच्छी शोधवृत्ति मिलेगी तो वे मन लगाकर शोध कार्य करेंगे ,जो देश के लिए ही हितकर होगा। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को इस दिशा में गंभीरतापूर्वक पहल करने की आवश्यकता है, तभी हम वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में सम्मानजनक स्थिति प्राप्त कर सकेंगे। 
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