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गुदड़ी के लाल को सुविधायें भी दें प्रधानमंत्री जी


       संदीप कुलश्रेष्ठ
                           प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले अपने बहुचर्चित मन की बात में अक्सर गरीबी में रहने के बावजूद अपनी प्रतिभा के बल पर इतिहास रच देने वाली प्रतिभाओं का उल्लेख करते हुए उनकी कहानियाँ सुनाते हैं। हाल ही में रविवार को आकाशवाणी से मन की बात करते हुए प्रधानमंत्री ने दुनिया की सर्वश्रेष्ठ जूनियर बॉक्सर रजनी की कहानी सुनाई । उन्होंने बताया कि कैसे रजनी मजदूरी करते-करते नेशनल चैम्पियन बनी। ऐसी ही कहानी उन्होंने हनाया और वेदांगी की भी सुनाई। तीनों लड़कियों की कहानी प्रेरणास्पद है। किन्तु प्रधानमंत्री इन गुदड़ी के लाल की कहानी तो सुनाते है, किन्तु उनके लिए ऐसा कुछ नहीं करते हैं जिससे की वे अपनी गरीबी मिटा सके और उतने साधन सम्पन्न हो सके जिससे कि वे अपने लक्ष्य को और आसानी से प्राप्त कर सके। 
मजदूरी करते-करते नेशनल चैम्पियन बन गई रजनी -
                           प्रधानमंत्री ने पिछले रविवार को मन की बात में अपने देश की तीन होनहार लड़कियों का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि इन बेटियों की उपलब्धियाँ हमें ऊर्जा देती है। इनकी मेहनत बताती है कि परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हो ,कुछ कर गुजरने का जुनून हमेशा जीतता है। ऐसी लडकियाँ है- पानीपत की रजनी, दक्षिणी कश्मीर की हनाया और पुणे की वेदांगी। इसमें से 16 साल की रजनी अपनी माँ के साथ गांव में मजदूरी करने जाती थी। उसने गत वर्ष जनवरी में सर्बिया में नेशन्स बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में रूस की बॉक्सर को हराया था। वह दुनिया की सर्वश्रेष्ठ जूनियर बॉक्सर चुनी गई थी। पिछले माह दिसम्बर में वह नेशनल चैम्पियन बनी है। चंडीगड़ में हुई नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतते ही वह सबसे पहले पास में ही एक ठेले वाले के पास गई। और उससे कहा मेरे पिता भी ठेला लगाते हैं। और उसने उस ठेले वाले के साथ अपनी खुशियाँ बाँटी। 
                          उल्लेखनीय है कि पानीपत के बुआना लाखू गांव की रजनी की चार बहनें हैं। दो बड़ी और दो छोटी। रजनी 8 साल की थी तो उसने गांव में बॉक्सिंग कोच सुरेन्द्र मलिक को फूल मालाओं से लदा देखा। वे किसी मुकाबले से लौटे थे। यही घटना रजनी की प्रेरणा बनी। रजनी ने अपनी माँ से कहा कि वह भी बॉक्सिंग सीखेगी। घर की हालत खराब होने के बावजूद उसकी माँ ने हामी तो भर दी, लेकिन पैसे न होने के कारण रजनी को माँ के साथ मजदूरी भी करनी पड़ी । रजनी के पिता ठेले पर लस्सी बेचते है। उसने एकेडमी में एडमिशन लिया और वह रोज एकेडमी में प्रेक्टिस भी करती रही। पैसे नही थे , इसलिए एकेडमी के पुराने ग्लव्स से ही प्रेक्टिस करती थी। उसकी आठ साल की मेहतन का परिणाम आज हम सबके सामने है। 
रजनी जैसी के लिए कुछ करें प्रधानमंत्री -
                               प्रधानमंत्री ने रजनी की कहानी तो सबको सुनाई ,किन्तु उसकी माली हालत सुधारने के लिए कुछ नहीं किया। प्रधानमंत्री को चाहिए कि वो जब ऐसी प्रेरणास्पद कहानी सुनायें तो अभाव में रहकर जो इतिहास रच दें उनके लिए भी कुछ करें। उन्हें सरकारी नौकरी में अच्छे ओहदे पर रखें, ताकि वह अपनी अभाव की जिन्दगी से निजात पा सके। प्रधानमंत्री को इस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि वो ऐसा करेंगे तो रजनी जैसी कई लड़कियों की जिन्दगी और बेहतर हो सकेगी ,जो उसकी हकदार है। 
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