‘मुसाफिर’ के चार काव्य संग्रहों का लोकार्पण-पूर्व कुलपति डॉ. मिश्र बोले रचनाकार को भी होती है अच्छे पाठक और श्रोता की चाहत
कविता रेत में छटपटाती हुई मछली जैसी
उज्जैन। कविता रेत में छटपटाती हुई मछली की तरह होती है, जो सरोवर की तलाश में रहती है। रचनाकार को भी अच्छे पाठक और श्रोता की चाहत होती है जो उसके मर्म को समझ सके। सरल और सरलतम के अंतर को समझना आवश्यक है।
यह उद्गार गीतांजलि साहित्यिक मंच द्वारा आयोजित चार काव्य संग्रहों के लोकार्पण समारोह में अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति डॉ. रामराजेश मिश्र ने कही। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित उज्जैन संभाग के उपायुक्त विकास प्रतीक सोनवलकर ने कहा कि डॉ. पी.डी. शर्मा मुसाफिर की अनवरत् सर्जन धार्मिता से उनकी साहित्य में पहचान बनी है, उनका सतत निरंतर रचना कर्म जारी रहे यही कामना करता हूं। उन्होंने अपनी गजल साधना से जीवन के अनुभवों को दो पंक्तियों में उतारा है। खूश्बू संग्रह पर जगदीशचंद्र पंड्या अक्स ने प्रकाश डालते हुए कहा कि कविता स्वातः सुखाय की स्थिति निर्मित करती है। मौसम संग्रह पर डॉ. जफर महमूद ने कहा कि मुसाफिर ने जीवन के विभिन्न आयामों को उतार चढ़ाव के साथ जिया है इसीलिए वे मौसम में भीगे और डूबे हुए अशआर प्रस्तुत करने में कामयाब हुए हैं। आज और कल संग्रह पर डॉ. इसरार मोहम्मद खान ने प्रकाश डालते हुए गजल के इतिहास को प्रस्तुत करते हुए मुसाफिर की यात्रा को बताया। गुजारिश पर चर्चा करते हुए शायर समर कबीर ने गजल के तकनीकी पहलुओं की जानकारी दी। स्वागत वक्तव्य एवं अपनी गजलों से डॉ. पीडी शर्मा मुसाफिर ने समां बांधा। आरंभ में अतिथियों का स्वागत सरला शर्मा, कैलाश शर्मा, सुधीर माने, तेजप्रकाश कपूर तथा कल्पना शर्मा ने किया। संचालन डॉ. जफर महमूद ने किया। इस अवसर पर डॉ. उर्मि शर्मा, डॉ. क्षमा सिसौदिया, डॉ. विश्वकर्मा, गड़बड़ नागर, परमानंद शर्मा अमन, डॉ. देवेन्द्र जोशी, डॉ. सनमुखानी, डॉ. स्वामीनाथ पांडेय सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार उपस्थित थे।