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उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के साथ पर्यूषण का अंतिम दिन, अपनी आत्मा में चरिया करना ही ब्रह्मचर्य धर्म है


 

उज्जैन। पर्युषण पर्व के दसवे दिन रविवार 23 सितंबर को उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की पूजा होगी व इस दिन नमक रस का त्याग होगा दिगंबर जैन समाज में पर्युषण के दसों दिन अलग-अलग धर्म की पूजा में सर्वप्रथम उत्तम क्षमा धर्म से प्रारंभ हुई और अंत में उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के साथ समाप्त होगी दसों दिनों तक ही श्री महावीर तपोभूमि में मीना दीदी साधना दीदी व बोर्डिंग जैन मंदिर में विदक्षा श्री माताजी के सानिध्य में एवं शहर की संपूर्ण दिगंबर जैन मंदिरों में 10 लक्षण धर्म की पूजा के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के लिए माताजी और दीदी ने कहा कि अपने स्वयं के अंदर बंद करना ही ब्रह्मचर्य है बाहरी वस्तुओं से कदाचित सिंचित मात्र भी प्रभावित ना होना ही ब्रह्मचर्य धर्म है क्षमा जिसकी जड़ है, मृतुता स्वंध है, आर्जव शाखायें हैं, उसको सिचित करने वाला शौचधर्म जल है सत्यधर्म पत्ते हैं, संयम, तप और त्याग रूप पुष्प खिल रहे हैं, आकिञ्चन और ब्रह्मचर्य धर्म रूप सुन्दर मंजरियाँ निकल आई हैं। ऐसा यह धर्मरूप कल्पवृक्ष स्वर्ग और मोक्षरूप फल को देता है।

‘आत्मा ही ब्रह्म है उस ब्रह्मस्वरूप आत्मा में चर्या करना ब्रह्मचर्य है व गुरु के संघ में रहना भी ब्रह्मचर्य है। इस विधचर्या को करने वाला उत्तम ब्रह्मचारी कहलाता है। जिस प्रकार से एक (१) अंक को रखे बिना असंख्य बिन्दु भी रखते जाइये किन्तु क्या कुछ संख्या बन सकती है? नहीं, उसी प्रकार से एक ब्रह्मचर्य के बिना अन्य व्रतों का फल कैसे मिल सकता है अर्थात् नहीं मिल सकता।

संसार का सारा झंझट संसार रूपी वस्तुओं को अपना मानने  के कारण चल रहा है मीना दीदी

समाज के सचिव सचिन कासलीवाल ने बताया कि पर्युषण पर्व के नौवें दिन शनिवार 22 सितंबर को उत्तम आकिंचन धर्म की पूजा के साथ 10 लक्षण धर्म की पूजा हुई श्री महावीर तपोभूमि में विराजित मीना दीदी ने कहा कि आत्मा के गुणों के सिवाय जगत में कोई भी वस्तु अपनी नहीं है इस दृष्टि से आत्मा अकिंचन है। आत्मा रूप ही अकिंचन धर्म हैं, जीव संसार में मोहवश जगत के सब जड़ चेतन पदार्थों को अपनाता है, सभी विविध सम्बंध जोड़कर ममता करता है। तो कभी मकान, दूकान, सोना, चाँदी, गाय, भैंस, घोड़ा, वस्त्र, बर्तन आदि वस्तुओं से प्रेम जोड़ता है। शरीर को तो अपनी वस्तु समझता ही है। इसी मोह ममता के कारण यदि अन्य कोई व्यक्ति इस मोही आत्मा की प्रिय वस्तु की सहायता करता है तो उसको अच्छा समझता है, उसे अपना हित मानता है। और जो इसकी प्रिय वस्तुओं को लेशमात्र भी हानि पहुँचाता है उसको अपना शत्रु समझकर उससे द्वेष करता है, लड़ता है, झगड़ता है इस तरह संसार का सारा झगड़ा संसार के अन्य पदार्थों को अपना मानने के कारण चल रहा जिस दिन मनुष्य इन सभी विकारों से मुक्त हो जाएगा उसी दिन से अपनी आत्मा में लीन होकर उत्तम अकिंचन को प्राप्त करेगा। श्री जी के अभिषेक और शांतिधारा करने का सौभाग्य हंसकुमार प्रिती जैन, सचिन विनीता कासलीवाल, रमेश जैन एकता, कमल यतीन्द्र मोदी, सजंय बड़जात्या, सुनील ट्रांसपोर्ट, विजेन्द्र सेठी, सुरेश कासलीवाल, नरेश पाटनी, विकास सेठी, जयेश जैन, हितेश जैन, अर्पित इंदरमल जैन, राकेश जैन, भोतिक वखारिया, राजेन्द्र लुहाड़िया, स्नेहलता सोगानी श्रेयस जैन पिंडरई, अनिल कुमार सत्यम जैन सीमैंट वाले, वीरसेन जैन मोतिरानी रतन बाई को प्राप्त हुआ।

निज के गुण निज में पाने को उत्तम आकिंचन धर्म कहा जाता है विदक्षा श्री माताजी

शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बोर्डिंग में विदक्षा श्री माताजी ने उत्तम आकींचन धर्म पर कहा कि जिस धर्म के शब्द में ही एकांकी का बोध होता है उसको अपनाने में कितना अच्छा लगता होगा माताजी ने सभी को अपने आप में भ्रमण करते हुए आकिंचन धर्म के दिन 1 घंटे का ध्यान भी कराया और कहां की निज के गुण निज में पाना ही उत्तम आकिंचन धर्म का मूल स्वभाव है सभी ने बड़े भक्ति भाव से पूजा जी जिसमें विशेष रूप से इंदरचंद जैन, ललित जैन, महेंद्र काका लुहाडिया, तेज कुमार विनायका, दिलीप विनायका आदि लोग मौजूद थे।

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