स्व.पं.भातखंडे की पुण्यतिथि पर सांगीतिक सभा 19 सितम्बर को
उज्जैन । शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा जानकारी दी गई कि प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी संस्कृति संचालनालय मप्र एवं शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार 19 सितम्बर को संगीत मूर्धन्य स्व.पं.विष्णुनारायण भातखंडे की पुण्यतिथि के अवसर पर सांगीतिक सभा का आयोजन किया जायेगा। यह कार्यक्रम कालिदास अकादमी के पं.सूर्यनारायण व्यास संकुल सभागृह में शाम 6.30 बजे से प्रारम्भ होगा।
कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि संस्कृत वेद ज्योतिर्विज्ञान अध्ययनशाला के अध्यक्ष डॉ.राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर होंगे। विशिष्ट अतिथि शहर के वरिष्ठ संगीतज्ञ श्री महादेवप्रसाद यादव होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता उप संचालक संस्कृति संचालनालय श्रीमती वन्दना पाण्डेय करेंगी। कार्यक्रम में शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा मां सरस्वती वन्दना और भातखंडे गीत प्रस्तुत किया जायेगा। इस अवसर पर मुम्बई के सुप्रतिष्ठित तबला वादक पं.नयन घोष द्वारा तबला वादन किया जायेगा। हार्मोनियम पर इनकी संगत श्री दीपक खसरावल करेंगे।
इसके पश्चात पुणे के सुविख्यात गायक पं.श्याम गुंजकर द्वारा शास्त्रीय गायन किया जायेगा। इनके सहयोगी श्री संजय कुमार देशमुख, श्री स्वप्निल धुले, श्री नन्दकिशोर गोदरे और श्री रविकल्याण गुंजकर होंगे। संचालनालय द्वारा शहर की समस्त कलाप्रेमी जनता से अपील है कि अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित हों।
पं.भातखंडे-एक परिचय
पं.विष्णुनारायण भातखंडे का जन्म 10 अगस्त 1860 को मुम्बई के बालकेश्वर में हुआ था। इन्होंने सितार की शिक्षा जयपुर के मोहम्मद अली खान एवं सेठ वल्लभदास से तथा गायन की शिक्षा गुरूरावजी बेलगांवकर, रामपुर के नवाब अली खां और ग्वालियर के पं.एकनाथ राव से प्राप्त की। पं.भातखंडे बांसुरी वादन में भी सिद्धहस्त थे। संगीत की शिक्षा के अलावा उन्होंने एलएलबी भी किया था। संगीत को जनमानस तक पहुंचाकर सुगम बनाने के लिये पं.भातखंडे ने सम्पूर्ण भारत के शहरों का भ्रमण, पुस्तकों का अध्ययन और विद्वान संगीतज्ञों से विचार-विमर्श किया।
उस समय गुरूमुखी संगीत होने के कारण तथा पुस्तकों का अभाव होने से किसी तरह का लिखित संग्रह संगीत में नहीं था। तत्कालीन उस्तादों की बंदिशों को सुनकर उन्हें स्वरलिपीबद्ध करने का श्रेय पं.भातखंडे को जाता है। यह पद्धति सम्पूर्ण उत्तर भारत में प्रचलित है, जिसे उत्तर भारतीय संगीत पद्धति कहा जाता है। भातखंडेजी ने विभिन्न रागों को स्वरलिपीबद्ध कर क्रमित पुस्तक मालिका के 6 भाग प्रकाशित किये। ठाठ राग वर्गीकरण पद्धति को प्रतिपादित किया। संस्थागत शिक्षण पद्धति को प्रचारित करने के उद्देश्य से लखनऊ में मेरीस म्युजिक कॉलेज एवं ग्वालियर में माधव संगीत महाविद्यालय की स्थापना की, जो कि वर्तमान में संस्कृति संचालनालय भोपाल के अधीन संचालित है। पं.भातखंडेजी का निधन 19 सितम्बर 1936 को 76 वर्ष की आयु में हुआ।