ढोल - नाद - आज भारत के विभिन्न अंचलों से आए ढोल वादन की परंपरा पर केंद्रित सांगीतिक प्रस्तुति ।
भारतीय दर्शन में शब्द और नाद दोनो को ब्रम्ह से जोड़ा गया है । शब्द ब्रम्ह और नाद ब्रम्ह हमारी सनातन परंपरा का विशेष महत्वपूर्ण आधार । हमारा दर्शन ये भी कहता है कि ध्वनियाँ कभी विलुप्त नहीं होती और यह एक वैज्ञानिक तथ्य है । भारतीय संगीत में नाद उत्पन्न करने वाले यंत्रों में ढोल भी एक विशिष्ट स्थान रखता है । ढोल वादन से उत्पन्न नाद मन को चंचल प्रभाव से भर देता है ।
भारत में ढोल बजाने की परम्परा का विस्तृत वर्णन करना आवश्यक नहीं है क्योंकि ढोल की थाप में जन्म का उत्सव है, ढोलक की ताल से विवाह और समस्त मंगल कार्यो की शुरूआत होती है । ढोल की थाप मानव मन के आनंद और उत्साह का प्रतीक हैं ।
भारतवर्ष के विभिन्न हिस्सों में ढोल वादन की अनेक परम्परायें है। जिनमें शास्त्रीयता के साथ लोक एवं क्षेत्र विशेष की परम्पराओं का सामंजस भी देखने को मिलता है । कुछ कोस दूर जाने पर बोली और भाषा में परिवर्तन आ जाता है ठीक वैसे ही ढोल वादन की तालों] प्रकारों एवं तरीके में अंतर आ जाता है।
“कला चौपाल”एक ऐसी चौपाल जो लोक कला, नाटय कला के नवाचार के लिए दृढ संकल्पित है । हमने हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक कर्त्तव्यों की प्रतिबद्धता को निभाते हुए संस्था कला चौपाल की व कला चौपाल में अपनी सांस्कृतिक यात्रा के अगले पड़ाव पर संस्कृति विभाग भारत सरकार के सहयोग से आज दिनांक 7 सितंबर 2018 को संध्या 7ः30 पर कालिदास अकादेमी संकुल हॉल में विशाल सिंह कुशवाह के निर्देशन में ढोल नाद की प्रस्तुति करने जा रहे है ।
ढोल नाद, भारत के विभिन्न अंचलों में बजाए जाने वाली ढोल वादन परंपरा पर केंद्रित सांगीतिक प्रस्तुति है जिसके अंतर्गत विभिन्न अंचलों में ढोल पर बजाने वाली विभिन्न तालों और उनके तरीकों पर प्रदर्शन किया जाएगा एवं ढोल वादन की परंपरा पर ढोल नाद एक अनोखा प्रयोग होगा क्योंकि ये एक राष्ट्रीय स्तर की प्रस्तुति होगी जिसमें प्रस्तुति देने वाले कलाकार ढोल वादक पंजाब, राजस्थान, उड़ीसा, देहली, गुजरात व मध्यप्रदेश के अन्तराष्ट्रीय स्तर के होंगे जो अपने ढोल की परंपरा, वादन शैली, तरीकों पर चर्चा करेंगे और साथ ही एक ही मंच पर अपने ढोल वादन करेंगे एवं सवाल जवाब का आदान-प्रदान करें ।
कार्यक्रम पूर्णता निःशुल्क है ढोल नाद प्रसंग में आप सम्मिलित होकर इस ताल यज्ञ में आप अपनी आहुति दे ।