उद्योग के लिए लीज पर ली जमीन को खेती की बताया, अब स्वयं बन बैठे मालिक
आगर रोड़ पर सरकारी जमीन पर बने मालवा कॉटन प्रेस पर बनाया 5 करोड़ का भवन-आजाद हिंद पैनल ने शासकीय घोषित करने की मांग की
उज्जैन। आगर रोड़ पर तकायमी जमीन पर बने मालवा कॉटन प्रेस को कारखाने के नाम से लीज पर लिया गया, फिर षड़यंत्रपूर्वक खुद को किसान बताकर जमीन अपने नाम करवाई तथा अब लीज पर ली गई इस शासकीय जमीन पर 5 करोड़ का बहुमंजिला भवन बनाकर बैचने की तैयारी की जा रही है। मालवा कॉटन प्रेस सहित शासकीय तकायती भूमियों के घोटालों का पर्दाफाश आजाद हिंद पैनल और शासकीय भूमि बचाओं समिति द्वारा गुरूवार को किया गया। पैनल सदस्यों ने बताया कि उनके द्वारा किये गये खुलासे पर वर्ष 2015 में तत्कालीन कलेक्टर कविन्द्र कियावत द्वारा तुरंत कार्यवाही करते हुए लगभग 500 करोड़ की भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में शासकीय दर्ज की गई।
आजाद हिंद पेनल अध्यक्ष डॉ. घनश्याम शर्मा के अनुसार पूर्व में शासकीय भूमि सर्वे नंबर 1729/1 व 1736 के अवैध अतिक्रमणकारी सत्येंद्र व वीरेन्द्र खंडेलवाल निवासी मालवा कॉटन प्रेस द्वारा षड़यंत्ररच स्वयं का नामांतरण निरस्ती का ऑर्डर 4 अगस्त 1971 को छुपा, कुटिल दस्तावेजों की रचनाकर शासकीय भूमि पर स्वयं को भूमि स्वामी के रूप में नामांरण कराया गया। शासकीय भूमि 1729/1 पट्टे पर कारखाना डालने हेतु ताकायमी शर्त पर पूसामल व सिध्देश्वर दयाल को वर्ष 1907 में लीज पर दी गई थी। अवैध कब्जेधारी सत्येंद्र व वीरेन्द्र खंडेलवाल द्वारा कूट रचित दस्तावेजों की रचना कर महत्वपूर्ण साक्ष्य छुपा स्वयं को तत्कालीन ओएसडी द्वारा भूमि स्वामी के रूप में वर्ष 1966 में नामांतरण करा वर्षों से शासकीय अधिकारियों से मिलीभगत कर शासकीय भूमि को किराये पर दे, कमर्शियल उपयोग कर व बैखौफ विक्रय कर सदोष धन कमा रहे हैं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सत्येंद्र व वीरेन्द्र खंडेलवाल अवैध अतिक्रमणकारी है। दोनों कृषक पट्टेदारों से उनका कोई पारिवारिक संबंध नहीं है। पट्टेदार उनके पूर्व नहीं है जैसा कि उन्होंने पूर्व में झूठा आवेदन दे स्वयं को उपरोक्त कृषक का वारिसान बता स्वयं को भूमिस्वामी घोषित करा लिया था। तत्कालीन कलेक्टर द्वारा पारित ऑर्डर 4 अगस्त 1971 द्वारा सत्येंद्र व वीरेंद्र खंडेलवाल का नामांतरण उक्त भूमि से निरस्त कर तहसीलदार को म्यूटेशन हेतु आदेश पारित किया गया था। खंडेलवाल बंधुओं द्वारा तहसीलदार के समक्ष ना जाकर न्यायालय कमिश्नर रेवेन्यू में कलेक्टर के ऑर्डर 4 अगस्त 1971 के विरूध्द अपील दायर की गई। न्यायालय कमिश्नर रेवेनु द्वारा 16 मार्च 87 को निरस्त की गई। खंडेलवाल बंधुओं द्वारा द्वितीय रिवीजन रेवेन्यु बोर्ड ग्वालियर में दायर की गई जो 22 नवंबर 1989 को निरस्त की गई तथा कलेक्टर के ऑर्डर 4 अगस्त 1971 को स्वीकार कर यथावत मान्य किया गया। 1981 में खंडेलवाल बंधुओं द्वारा निरस्ती के आदेश को कलेक्टर, कमिश्नर तथा बोर्ड ऑफ रेवेन्यु में छुपाकर न्यायालय बोर्ड ऑफ रेवेन्यु को गुमराह कर अपने पक्ष में आदेश पारित करवा लिया। वहीं डिप्टी कलेक्टर से वर्ष 1986 में स्वयं को एकल भू स्वामी घोषित करवाकर शासकीय भूमि पर स्वयं का नाम दर्ज करा फाइल हमेशा के लिए क्लोज करा दी थी। वहीं 6 नवंबर 1983 के आदेश के विरूध्द की गई अील 31 वर्ष के लंबे बिलंब के ग्राउंड पर हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा मोशन पर ही खारिज की गई लेकिन मेरिट निर्णय नहीं हुआ। आजाद हिंद पेनल द्वारा की गई शिकायत पर लोकायुक्त उज्जैन द्वारा संबंधित शासकीय अधिकारियों व खंडेलवाल बंधुओं के खिलाफ 2014 में प्रकरण दर्ज किया गया जिसकी जांच चल रही है। नगर निगम इंजीनियर व अन्य अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार कर बिना विधिवत अनुमति लिए, प्रावधानों का उल्लंघन कर बिना भूमि डायवर्शन के अतिक्रमणकारी सत्येंद्र खंडेलवाल का अवैध नक्शा शासकीय भूमि पर स्वीकृत कर दिया गया जिस पर सत्येंद्र खंडेलवाल द्वारा 5 करोड़ का बहुमंजिली अवैध भवन निर्माण कर लिया गया। वहीं अब खुद की संपत्ति बताकर बैच रहे है। घनश्याम शर्मा के अनुसार राजस्व न्यायालय ग्वालियर ने भी 1 मार्च 2018 को दिये आदेश में उक्त भूमि को शासकीय बताया है तथा अतिक्रमण ध्वस्त व बेदखली की कार्यवाही करने हेतु कहा गया है। शर्मा ने मांग की कि जिस तरह आगर रोड़ स्थित सुखदेव कॉटन प्रेस तथा साथ लगी जिनिंग प्रेस सरकारी भूमि के विरूध्द सिविल सूट दायर कर शासन द्वारा जीत हासिल की गई है तथा भूमि का कब्जा लिया गया है इसी प्रकार मालवा कॉटन के विरूध्द भी शासन को तुरंत सिविल सूट दायर करना चाहिये क्योंकि यह टाइटल से संबंधित विवाद है जिसका क्षेत्र अधिकार सिर्फ दीवानी न्यायालय को ही प्राप्त है।
फिल्म दिखाकर बता रहे कैसे हो रहे शासकीय जमीनों पर कब्जे
मालवा कॉटन प्रेस सहित अन्य सरकारी जमीनों पर किस प्रकार अवैध कब्जे किये गये हैं इस पर आजाद हिंद पैनल द्वारा एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी तैयार की है। जिसमें दिखाया है कि किस तरह लीज पर जमीन लेकर उस पर कब्जा किया जा रहा है। वहीं सरकार बार-बार देरी से अपील कर रही हैं और कई जगह तो प्रभावी लोगों के खिलाफ अपील ही नहीं कर रही। फिल्म में बताया कि किस प्रकार पटवारी से शासकीय खसरों में अपना नाम लिखवा लिया और कानून की मदद से 30 साल तक चुप बैठते हैं और 30 साल बाद कोई अपील नहीं करता और इतने लंबे समय बाद जब अपील स्वीकार ही नहीं होगी तो अधिकार उसी का रहेगा। इसका फायदा उठाकर भूमाफिया और भ्रष्ट अधिकारी करोड़ों कमा रहे।