संसद में पहली बार 1964 में भारत को परमाणु ताकत बनाने की बात कही थी हुकमचंद कछवाय ने
संसद में पहली बार 1964 में भारत को परमाणु ताकत बनाने की बात कही थी हुकमचंद कछवाय ने
उज्जैन। हाल ही में जॉन अब्राहम की फिल्म ‘परमाणु’ रिलीज हुई है, इसमें बताया गया है कि कैसे इंदिरा गांधी ही नहीं अटल बिहारी वाजपेयी ने भी डॉ. कलाम की मदद परमाणु बम का परीक्षण करके भारत को दुनिया के सबसे शक्तिशाली क्लब में शामिल कर दिया। किसी से भी बात करें तो इंदिरा गांधी, अटल बिहारी बाजपेयी, डॉ. कलाम और डॉ. होमी जहांगीर भाभा का नाम भारत को परमाणु ताकत बनाने के लिए लिया जाता है। लेकिन हुकमचंद कछवाय का नाम चर्चा से गायब रहता है। जबकि अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले सांसद हुकमचंद कछवाय ने संसद में पहली बार भारत को परमाणु ताकत बनाने की बात की थी।
हुकमचंद कछवाय की बातों का समर्थन उस वक्त सभी कांग्रेसी सांसदों ने किया और बाद में जाकर इंदिरा गांधी ने परमाणु परीक्षण करवाया। यह जानकारी देते हुए हुकमचंद कछवाय के पुत्रगण कांग्रेस नेता पूर्व पार्षद सुनील कछवाय एवं पूर्व सरपंच नरेन्द्र कछवाय ने बताया कि इस सबके बावजूद पिताश्री हुकमचंद कछवाय की पहल पर ‘परमाणु’ जैसी फिल्म बनाना तो दूर देश में गिनती के लोगों को उसका नाम ही पता हो, ये भी जरुरी नहीं। उनके अपने लोकसभा क्षेत्रों उज्जैन, देवास और मुरैना के नई पीढ़ी भी उनकी इस उपलब्धि को नहीं जानती होगी। इतिहास के पन्नों में किसी एक दो लाइन में उनका नाम लिखा होगा। परमाणु परीक्षणों का देश का जो इतिहास है। उसके लिए इंदिरा, बाजपेयी जैसे राजनीतिज्ञों को श्रेय मिला, या फिर भाभा और कलाम जैसे वैज्ञानिकों को। लेकिन कुछ और भी लोग थे जो इतिहास के पन्नों में अपना नाम लिख गए, ये जरूर है कि इतिहासकारों ने उन्हें ज्यादा तवज्जों नहीं दी। लेकिन देवास के लोकसभा सांसद को भी कोई कैसे भुला सकता है। इंदिरा गांधी ने परमाणु परीक्षण किया तो उसके लिए आधार शिला में एक पड़ा पत्थर उज्जैन के हुकमचंद कछवाय ने भी रखा था।
दरअसल 1962 में चीन से हार के बाद देश का आत्मविश्वास जीरो पर आ गया था। 1964 में नेहरू की मौत के बाद देश ने अभी संभलना ही शुरू किया था कि चीन ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया तो देश में बेचैनी बढ़ गई। सरकार पर दवाब बढ़ गया कि उन्हें भी परमाणु परीक्षण करना चाहिए। परमाणु ऊर्जा आयोग के निदेशक डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो की एक वार्ता में ऐतिहासिक वक्तव्य दिया कि परमाणु हथियार मानवता के लिए खतरा है, लेकिन चूंकि उन्हें हवा में खत्म करने की और कोई तकनीक नहीं है, इसलिए तरीका यही है परमाणु हथियार बनाए जाएं। आगे उन्होंने कहा कि केवल 10 करोड़ में 50 एटम बम बनाए जा सकते हैं। इससे बहस तेज हो गई, परमाणु बम बनाने की वकालत में सबसे आगे जनसंघ के नेता थे।
उस वक्त प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे और वो देश को आत्मनिर्भर बनाने के मिशन में लगे थे और परमाणु बम की होड़ से देश को दूर रखना चाहते थे। लेकिन पार्लियामेंट में परमाणु बम को लेकर बहस की कोशिशों को रोकने के बावजूद वो रोक नहीं पाए। पार्लियामेंट में चीन के खतरे को देखते हुए एटम बन बनाने का पहला प्रस्ताव देवास-राजगढ़-शाजापुर से लोकसभा सांसद हुकमचंद कछवाय ने रखा। दूसरी, तीसरी, चौथी और पांचवी लोकसभा में हुकमचंद कछवाय उज्जैन, देवास और मुरैना से चुने गए थे।
हुकमचंद कछवाय ने संसद मे ये प्रस्ताव रखते हुए जोर दिया कि चीन के एक और हमले से कोई अगर बचा सकता है तो वो है परमाणु हथियार। अगर हमारे पास परमाणु बम होगा तो चीन तो क्या अमेरिका की भी आंख दिखाने की हिम्मत नहीं होगी। हुकमचंद कछवाय का ये प्रस्ताव कुछ सांसदों की खिलाफत के चलते गिर गया। लेकिन भारत के संसदीय इतिहास में हुकमचंद कछवाय का ये प्रस्ताव एटम बम पर पहला होने की वजह से हमेशा याद किया जाता है।
10 साल बाद इंदिरा गांधी ने 1974 में परमाणु परीक्षण किया। इस परीक्षण के लिए कछवाय को श्रेय मिलना चाहिये था पर नहीं मिला। आज उन्हें ना पार्लियामेंट, ना देश की सरकार और ना ही इतिहासकार और ना ही मीडिया याद करता है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि कलाम, इंदिरा, भाभा, काकोडकर और बाजपेयी जैसे लोग जननायक हैं, वहीं गूगल पर हुकमचंद कछवाय का एक फोटो तक ढूंढे नहीं मिलता। ऐसे में बॉलीवुड वाले उनकी बात करें, ये उम्मीद करना ठीक नहीं होगा। कछवाय रेलवे की कई यूनियंस के प्रेसीडेंट रहे, मजदूर नेता तो थे ही दिल्ली मिल्क स्कीम एम्पलॉयी एसोसिएशन के भी प्रेसीडेंट रहे। मुरैना से जब लोकसभा का चुनाव लड़े तब मुरैना की बीहड़ों में कई डाकूओं का खौफ था उस समय वरिष्ठ नेता राजनारायण के समक्ष 32 डाकुओं का आत्मसमर्पण कराकर मुरैना क्षेत्र की जनता को डाकुओं से निजात दिलाई और मुरैना में बहुमत से विजय हासिल की।