मोक्ष सप्तमी पर भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस मनाया, निर्वाण लाडू समर्पित किए
उज्जैन। चातुर्मास के दौरान मुकुट सप्तमी मनाई गई। परम पूज्य आचार्य श्री 108 विराग सागरजी महाराज की शिष्या वंदनीय आर्यिका 105 विदक्षाश्री माताजी के सानिध्य में मुकुट सप्तमी (पारसनाथ निर्वाण कल्याणक) का भव्य आयोजन 17 अगस्त शुक्रवार को श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर बोर्डिंग फ्रीगंज उज्जैन में हुआ।
प्रात: 6.30 बजे अभिषेक, 7 बजे पारसनाथ मंडल विधान, 10 बजे प्रवचन, 11 बजे निर्वाण लाडू और 11.30 बजे आहार चर्या हुई। शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बोर्डिंग के अध्यक्ष इंदरचंद जैन एवं दिगंबर जैन समाज के सचिव सचिन कासलीवाल ने बताया कि जैन धर्म के अनुसार श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष कल्याणक दिवस मनाया जाता है। जैन मंदिरों में भगवान पार्श्वनाथ की विशेष पूजा-अर्चना, शांतिधारा कर निर्वाण लाडू चढ़ाने की प्रथा है। दिगंबर जैन मंदिर बोर्डिंग में माताजी ने प्रवचन में कहा कि जैन धर्म के अनुसार जिसका मोक्ष हो जाता है उसका मनुष्य भव में जन्म लेना सार्थक हो जाता है। जब तक संसार है तब तक चिंता रहती है, जहां मोक्ष का पूर्णरूपेण क्षय हो जाता है वहीं मोक्ष हो जाता है। हमें अपनी आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए मोहरूपी शत्रु का नाश करना पड़ता है। अत: हमें सभी का विनायक करना चाहिए क्योंकि विनय ही मोक्ष का द्वार है। इसीलिए सभी को चैतन्य प्रभु से रिश्ता जोड़ना चाहिए। क्योंकि पुण्यात्मा जहां भी चरण रखते हैं वहां से दुख, अंधकार, कषाय, क्लेश स्वमेव ही प्रकाश व सुखों में परिवर्तित हो जाते हैं। प्रभु का स्पर्श तो हमें स्वर्ण ही नहीं पारस बना देता है। हम भी पार्श्व प्रभु की तरह अपने भवों को कम करके निर्वाण प्राप्ति की ओर बढ़ें। अत: भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष कल्याण पर शिखरजी क्षेत्र की पूजा व निर्वाण कांड का पाठ करने पश्चात निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है। उसी प्रकार संपूर्ण देश के जैन मंदिरों में भगवान पार्श्वनाथ के मुख्य कल्याण के अवसर पर निर्वाण लाडू चढ़ाए जाते हैं वैसे ही आज दिगंबर जैन शांतिनाथ बोर्डिंग मंदिर उज्जैन में भी माताजी के सानिध्य में निर्वाण लाडू चढ़ाए गए जिस प्रकार यह लाडू रसभरी बूंदी से निर्मित किया जाता है, उसी प्रकार अंतरंग से आत्मा की प्रीति रस से भरी हो जाए तो परमात्मा बनने में देर नहीं लगती। इस दिन खास तौर पर जैन समाज की बालिकाएं सामूहिक रूप से निर्जला उपवास करती है। दिनभर पूजन, स्वाध्याय, मनन-चिंतन, सामूहिक प्रतिक्रमण करते हुए संध्या के समय देव-शास्त्र, गुरु की सामूहिक भक्ति कर आत्म चिंतन करती है। शाम को उनको घोड़ी-बग्घी में बिठाकर घुमाया जाता है तथा अगले दिन उनका पारण कराया जाता है। इस पर्व को मोक्ष सप्तमी के नाम से जाना जाता है।