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वर्तमान में संस्कार कम हो रहे, साधन बढ़ते जा रहे


 

पुण्य सम्राट प्रवचन मण्डप में प्रवचन दौरान बोले गच्छाधिपति आचार्य नित्यसेनसुरीश्वरजी म.सा.

उज्जैन। जीवन में मानवता आने के बाद संस्कार आने की शुरुआत होती है। धन्य है वह जो तपस्या करते हैं और अपने कर्मों की निर्जरा करते हैं। मोहनिय परमोदय के कारण धर्म कार्य में परिवार अंतराय रूप बनता है। वर्तमान में संस्कार कम होते जा रहे हैं और साधन बढ़ते जा रहे हैं।

उक्त बात नमकमंडी स्थित पुण्य सम्राट प्रवचन मण्डप में चातुर्मास के अंतर्गत सोमवार को गच्छाधिपति आचार्य नित्यसेनसुरीश्वरजी म.सा. ने कही। श्रीसंघ अध्यक्ष मनीष कोठारी के अनुसार इस अवसर पर मुनिराज विद्वद् रत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि भगवान की आज्ञा में जीवन जीने वाला उत्तरोत्तर प्रगति करता है। मानवता जिसने आत्मा का धर्म समझ लिया वह संसार से परे हो जाता है। आत्मा का उर्ध्वगामी है जैसे ही विनय विवेक हमारे जीवन में आते हैं वैसे वैसे आदमी नम्र बनता जाता है, जो विनय विवेक से भृष्ट हो जाते है, उनका भविष्य में पतन निश्चित होता है अपनों के लिए तो सब जीते हैं, परायों के लिए जीना ही मानवता है। मुनिराज प्रशमसेन विजयजी ने कहा कि मनुष्य बनने के पश्चात मनुष्यतत्व आना दुर्लभ है जिसमें मनुष्यतत्व यानी मानवता आती है उसमें करुणा निश्चित होती है। शास्त्रों में दो प्रकार की करुणा बताई गयी है भाव करुणा, द्रव्य करुणा। अपनों से कमजोर व जरूरतमंदों की मदद करना द्रव्य करुणा होती है। किसी को धर्म में स्थिर करना या सद्मार्ग पर लाना वह भाव करूणा है। इस अवसर पर नवयुवक परिषद अध्यक्ष नितेश नाहटा, नरेंद्र तल्लेरा, नवीन कोठारी, विनम्र धारीवाल, जितेंद्र रुणवाल, विजय राठौड़, तरुण परिषद के अवी नाहटा, केवल डांगी सहित सैकड़ों की संख्या में समाजजन उपस्थित थे। 

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