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वानप्रस्थ संस्कार भारतीय धर्म और संस्कृति का प्राण है, उर्मिला जोशी बनी नगर की पहली वानप्रस्थी महिला



उज्जैन। जिस देश, धर्म, जाति तथा समाज में उत्पन्न हुए हैं, उनकी सेवा करने का, ऋण मुक्त होने का अवसर वानप्रस्थ में मिलता है। इसलिए जिन नर - नारियों की स्थिति इसके उपयुक्त हो, उन्हें वानप्रस्थ ले लेना चाहिए। 
यह उदगार उपक्षोन समन्वयक राकेश कुमार गुप्ता ने उर्मिला जोशी के वानप्रस्थ संस्कार समारोह में व्यक्त किए। इस अवसर जिला समन्वयक देवेन्द्रकुमार श्रीवास्तव ने उपस्थित परिजनों के सामने सामाजिक व्यवस्था संबंधी सवाल उठाते हुए कहा कि लोगों की शिकायत रहती है कि बच्चे-बच्चियां बिगड़ रहे हैं, इसका एक कारण प्रौढ़ो की मोह ममता है, और वह भी किसी उपयुक्त चीज से नहीं घर से परिवार से, टेलीविजन से जिसके कारण वानप्रस्थ नहीं अपना पाते। इसी कारण समाज में अनुभवी मार्गदर्शकों की कमी आ गई है और हमारी भावी पीढ़ी भटक रही है। क्योंकि वानप्रस्थी समाज की आत्मिक सुरक्षा, सुव्यवस्था एवं सुख-शान्ति के उपकरण जुटाता है, उसे सन्मार्ग पर चलने की सद्भावना से ओत-प्रोत रहने की सद् प्रेरणाएं प्रदान करते रहता है। वानप्रस्थी के यह अनुदान सभी भौतिक साधनों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। डॉ शशिकांत शास्त्री ने पी.पी.टी. के माध्यम से वानप्रस्थ की महत्ता बताई। प्रो. एन.के. गर्ग, जोशी के पति भगवती शंकर जोशी, हरि ओम दयालु, एस.एन. पाठक, कृष्ण कपूर, विवेकानंद कालोनी महिला मंडल और रिश्तेदारों ने समारोह में उपस्थित होकर वानप्रस्थी को शुभकामनाएं दी।
5 दिन पहले ही शिक्षिका पद से हुई सेवानिवृत्त
विवेकानंद कालोनी निवासी उर्मिला जोशी 31 जुलाई को ही शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हुई हैं और आगामी जीवन समाज के लिए समर्पित करने के संकल्प के साथ रविवार 5 अगस्त को आपने विधिवत् वानप्रस्थ संस्कार कराया। गायत्री यज्ञ के साथ हुए संस्कार में वानप्रस्थ संकल्प, पंचगव्य पान, मेखला-कोपीन धारण धर्म दण्ड धारण, ऋषि पूजन, वेद पूजन यज्ञ पुरुष पूजन, व्रत धारण के बाद उपस्थित परिजनों द्वारा वानप्रस्थी बहिन का विशेष अभिषेक किया गया। अंत में चरैवेति चरैवेति मंत्र को अपनाने के लिए नियमित प्रव्रज्या के लिए संकल्पित कराया गया। गुरू के निर्देश पालने को हो रहे संकल्पित
इस अवसर पर उर्मिला जोशी का कहना था कि यह सब गुरु कृपा से हो रहा है और गुरु के निर्देशों को पालने के लिए ही हम आज संकल्पित हो रहे हैं।

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