विक्रम विश्वविद्यालय पर 10 करोड़ का बकाया, कई पाठ्यक्रम पर छाया खतरा, कुलपति ने कहा जल्द ही होगा निराकारण ।
विक्रम विश्वविद्यालय में धरोहर राशि जमा किए बगैर ही स्व-वित्तीय पाठ्यक्रम संचालित करने की बड़ी गड़बड़ी सामने आई है।
विक्रम विश्वविद्यालय में पांच विभाग, जिनके पाठ्यक्रमों पर संकट
फाॅर्मेसी अध्ययनशाला - विश्वविद्यालय में फार्मेसी को भी स्व-वित्तीय पाठ्यक्रम में रखा गया है। वर्ष 2003-04 से इसकी शुरुआत हुई। सीटों की संख्या निश्चित नहीं होने से दो साल तक 70 आैर 80 विद्यार्थियों के एडमिशन हुए। शुरुआत में फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुमति के बगैर ही विभाग चलता रहा। 2009 में स्वीकृति मिली। फिर 48 सीटों पर प्रवेश हुए। 2011-12 से इसमें सीटों की संख्या 60 हुई। हर साल सीटें फुल रहती है। विभाग में स्थाई फैकल्टी के नाम पर दूसरे विभागों से पदों को मर्ज करते हुए दो शिक्षकों की नियुक्तियां हुईं। 6 गेस्ट फैकल्टी हैं। मापदंडों की पूर्ति नहीं होने आैर पर्याप्त फैकल्टी नहीं होने से इसी वर्ष फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने जीरो ईयर घोषित कर दिया है। जिसके कारण इस वर्ष एडमिशन नहीं हुए हैं।
इंजीनियरिंग विभाग- स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी संस्थान 2013-14 में शुरू किया गया। एक भी स्थाई फैकल्टी नहीं है, जबकि 300 सीटों पर प्रवेश की प्रक्रिया होती है। विभाग में लैब, फैकल्टी व अन्य संसाधनों की कमी का नतीजा है कि बार-बार यहां विद्यार्थियों आैर छात्र संगठनों को विरोध में उतरना पड़ता है। विभाग में एक दर्जन से ज्यादा फैकल्टी है।
कॉमर्स अध्ययनशाला - वर्ष 2007 से स्व-वित्तीय पाठ्यक्रम के अंतर्गत इसकी शुरुआत हुई है। इंजीनियरिंग के बाद विश्वविद्यालय में दूसरा सबसे अधिक विद्यार्थी संख्या वाला विभाग है। स्थाई फैकल्टी के रूप में केवल एक प्रोफेसर हैं लेकिन वह भी स्वास्थ्य समस्या के कारण पिछले डेढ़ वर्ष से अवकाश पर हैं। विभाग में 8 गेस्ट फैकल्टी है। वर्ष 2013-14 तक यहां प्रतिवर्ष 120 सीटों पर प्रवेश हुए। इसके बाद वर्ष 2014-15 आैर 2015-16 में 180 सीटों पर एडमिशन हुए। 2016-17 से 240 सीटें हुईं।
एमएससी कंप्यूटर साइंस- कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट में केवल एमएससी कंप्यूटर साइंस को स्व-वित्तीय पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। वर्ष 2004-05 से इसकी शुरुआत हुई है। प्रत्येक वर्ष 30 सीटों पर प्रवेश की प्रक्रिया होती है।
एमएसडब्ल्यू- समाजशास्त्र अध्ययनशाला में संचालित एमएसडब्ल्यू भी स्व-वित्तीय पाठ्यक्रम में शामिल किया है।
इस राशि के जमा करने के बाद विश्वविद्यालय अपने स्तर पर स्व-वित्तीय पाठ्यक्रमों को शुरू कर सकता है। कुलपति ने भी इस बात को स्वीकारा है कि धरोहर राशि जमा नहीं करने के मामले में अब तक त्रुटियां हुई हैं।