7 घंटे लगातार धर्माराधना कर 1024 अर्घ अर्पण कर की सिध्द चक्र की भक्ति
गुरू ही पूर्ण मां है- त्रिलोकजी
संयम के आकाश पर सूरज से चमकते हैं गुरूदेव विद्यासागर
उज्जैन। भारतीय संस्कृति में गुरू का स्थान सर्वोपरि है। गुरू शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरू से बड़ा कोई मित्र नहीं है गुरू से बड़ा कोई गीत नहीं है। गुरू ही जग में तारण हारा, गुरू से बड़ा कोई तीर्थ नहीं है।
उक्त बात अतिशय क्षेत्र श्री नेमीनाथ दिगंबर जैन मंदिर जयसिंहपुरा में 7 घंटे लगातार धर्माराधना कर 1024 अर्घ अर्पण कर सिध्द चक्र की भक्ति से अभिभूत इंद्र इंद्राणियों को संबोधित करते हुए विधानाचार्य त्रिलोकजी ने कही। संयम के आकाश पर सूरज से चमकते, अहिंसा के अहसास सम्मेदना के सागर, करूणा के कीर्ति कलश गुरूदेव विद्यासागर की भाव वंदना करते हुए गुरूभक्त त्रिलोकजी ने कहा सूरज पर दीप कैसे रखूं, चंदा की आरती जुगनू से केसे करूं। मेरे पास है शब्दों के कुछ कंकर सुमेरू से उंचे गुरूदेव का परिचय कैसे दूं और वैसे भी सूरज किसी परिचय का मोहताज नहीं होता। जो परिचय का मोहताज होता है वह सूरज नहीं होता। गुरूदेव विद्यासागर धर्म के ऐसे ही दिव्य सूरज है जिनके तप त्याग की ज्ञानमय रोशनी से प्रभावित होकर हजारों जिंदगियां मोह के अंधेरे से निकल कर धर्म के सवेरे में आ गई है। इस अवसर पर त्रिलोकजी द्वारा रचित गुरूपूजा प्रकाश शास्त्री जयपुर एवं संगीतकार प्रशांत के मधुर स्वरों में गायन वातावरण में मिश्री सी घोल गया। प्रवक्ता अनिल गंगवाल के अनुसार विधान पुण्यार्जक परिवार सौधर्म इंद्र शैलेन्द्र जैन, जितेन्द्र जैन, माता संतोष देवी जैन संचोरा परिवार ने विधानाचार्य त्रिलोकजी एवं पं. प्रकाश के मंत्रोच्चार के साथ सिध्दचक्र मंडल पर भाव विभोर होकर 1024 अर्घ अर्पण किये। विधान का कर्णप्रिय गायन संगीतकार प्रशांत जैन ने किया।