गुरू पूर्णिमा के अवसर पर सान्दीपनि आश्रम में महोत्सव आयोजित
उज्जैन से जगदगुरू श्रीकृष्ण ने शिक्षा ग्रहण की
अपने माता-पिता और गुरू से आशीर्वाद लें, तो सफलता कदम चूमेगी –मंत्री श्री जैन
उज्जैन । शुक्रवार को गुरू पूर्णिमा के अवसर पर सान्दीपनि आश्रम में 41वा महर्षि सान्दीपनि स्मृति महोत्सव आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री पारस जैन और विशेष अतिथि सिंहस्थ मेला प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री दिवाकर नातू, उज्जैन दक्षिण के विधायक डॉ.मोहन यादव, पं.आनन्दशंकर व्यास, श्री बालकृष्ण शर्मा और जिला शिक्षा अधिकारी श्री संजय गोयल थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति श्री रमेशचन्द्र पंडा ने की। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा गुरूवर महर्षि सान्दीपनि का पूजन-अर्चन, गुरूपाद पूजन और गुरू अर्चना की गई।
कार्यक्रम में विभिन्न विद्यालयों से आये विद्यार्थी भी शामिल हुए। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा प्रतिभाओं का सम्मान और प्रमाण-पत्र भी वितरित किये गये। मुख्य अतिथि श्री पारस जैन ने इस अवसर पर कहा कि जगदगुरू भगवान श्रीकृष्ण ने उज्जैन से शिक्षा ग्रहण की। स्कूली बच्चों को सम्बोधित करते हुए मंत्री श्री जैन ने कहा कि आप और हम बहुत भाग्यशाली हैं, जो इस स्थान पर रहकर विद्याध्ययन कर रहे हैं। मंत्री श्री जैन ने कहा कि पं.आनन्दशंकर व्यास और श्री काशीनाथ डकारे उनके गुरू रहे हैं और समय-समय पर उनका आशीर्वाद और सान्निध्य उन्हें प्राप्त हुआ है। सान्दीपनि आश्रम अत्यन्त प्राचीन है। आज से 5 हजार वर्ष पूर्व यह आश्रम महर्षि सान्दीपनि द्वारा स्थापित किया गया था। इसके बाद समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार और विकास होता गया।
विद्यार्थी जब भी अपने जीवन में कोई बड़ा काम करने वाले हों, तो यहां आकर महर्षि सान्दीपनि और उनके शिष्य भगवान कृष्ण से आशीर्वाद प्राप्त करें। उन्हें हर क्षेत्र में सफलता जरूर मिलेगी। माता-पिता और गुरू का आशीर्वाद यदि मिल गया, तो विद्यार्थियों का जीवन सफल हो जायेगा। गुरू के आशीर्वाद से ही हम गुरू-शिष्य परम्परा को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। मंत्री श्री जैन ने सभी को गुरू पूर्णिमा की बधाई दी और विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
पं.आनन्दशंकर व्यास ने कहा कि महर्षि सान्दीपनि व्यास का सम्बन्ध वाराणसी से था। उज्जैन आकर उन्होंने भगवान शिव की उपासना की और भगवान महाकाल की प्रेरणा से ही यहां पर शिक्षा केन्द्र स्थापित हुआ। महर्षि सान्दीपनि ने भगवान शिव से आशीर्वाद लिया था कि अवन्तिका नगरी में कभी भी अकाल नहीं पड़ेगा। जब भगवान श्रीकृष्ण यहां से जाने लगे और उन्होंने गुरू दक्षिणा देनी चाही, तो महर्षि सान्दीपनि ने केवल यह वचन लिया था कि जब भी मैं आपका स्मरण करूं, तो आप मुझे दर्शन अवश्य देंगे। महर्षि सान्दीपनि के आशीर्वाद से ही भगवान श्रीकृष्ण को योगेश्वर और जगदगुरू की उपाधि प्राप्त हुई। प्राचीनकाल में तक्षशिला के बाद उज्जैन पूरे विश्व में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र रहा था। महर्षि सान्दीपनि स्मृति महोत्सव आगे भी इसी तरह प्रतिवर्ष आयोजित किया जाये, ऐसी कामना पं.आनन्दशंकर व्यास ने की। महर्षि सान्दीपनि पर ग्रंथ भी प्रकाशित करवाये जायें और उनकी स्मृति में उज्जैन में अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का निर्माण भी किया जाये।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता श्री बालकृष्ण शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गुरू साक्षात परब्रह्म होते हैं। गुरू पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास का अवतरण दिवस भी है, इसीलिये गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। महर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों और महाभारत की रचना की। वे स्वयं भगवान के अवतार थे। महर्षि वेदव्यास से ही गुरू-शिष्य परम्परा की शुरूआत हुई। श्रीकृष्ण ने महर्षि सान्दीपनि को अपना गुरू बनाया और उन्हीं के आशीर्वाद से वे सारे संसार के गुरू बन सके, इसलिये श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि गुरू को ईश्वर से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है।
श्री शर्मा ने कहा कि महाकवि कालिदास ने मेघदूत में भगवान शिव को प्रथम गुरू कहा है। गुरू शब्द में 2 अक्षर होते हैं, जो अंधकार का निवारण करता है, उसे गुरू कहते हैं। ज्ञान अनादि है, अनन्त है, लेकिन उसे प्राप्त करने के लिये हमें प्रकाश की जरूरत होती है और प्रकाश हमें गुरू की कृपा से प्राप्त होता है। एक मनुष्य जब किसी का शिष्य बनता है तो उसका दोबारा जन्म होता है। गुरू अपने गर्भ में शिष्य को बिलकुल माता की तरह धारण करता है। इसीलिये गुरू को ब्रह्मा की उपाधि दी गई है, क्योंकि वह शिष्य का सृजन करता है। इसी प्रकार भगवान विष्णु की तरह जीवनभर वह अपने शिष्य को सही राह पर चलने की शिक्षा देता है और उसका पालन-पोषण करता है और भगवान शिव की तरह मन में व्याप्त अंधकार का विनाश करता है। गुरू साकार और निराकार दोनों है। सान्दीपनि आश्रम में अत्यन्त कलात्मक रूप में 14 विद्याओं को चित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। विद्यार्थी यहां आकर इन कलाओं को देखें और उनका अध्ययन करें।
श्री दिवाकर नातू ने इस अवसर पर कहा कि उज्जैन में रहकर शिक्षा ग्रहण करना अपने आप में एक सौभाग्य की बात है। यदि हम अच्छे काम करेंगे तो हमें आशीर्वाद निश्चित रूप से प्राप्त होगा। हमें अपने कर्म पर विश्वास करना चाहिये। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है। भगवान की इच्छा से कर्म करने से जीवन सफल बनता है। मां हमारी सबसे पहली गुरू होती है। कोई भी बच्चा सबसे पहले अपनी मां से ही सीखकर यदि कर्म और भाग्य को ध्यान में रखकर जीवन यापन करेंगे तो मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी। वह गुरू ही है, जिनसे हमें जीने की प्रेरणा मिलती है, इसीलिये हम जीवन में कितने ही बड़े क्यों न बन जायें, अपने गुरू को कभी नहीं भूलना चाहिये। माता, पिता, ईश्वर और गुरू का कभी भी तिरस्कार नहीं करना चाहिये, तभी हम जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने समस्त विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
विधायक डॉ.मोहन यादव ने कहा कि उज्जैन को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के प्रयास शासन द्वारा निरन्तर किये जा रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्कॉन मन्दिर का निर्माण उज्जैन में किया गया, ताकि इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैले। इसके अलावा पुणे से यहां अवन्तिका यूनिवर्सिटी की स्थापना भी की गई, जहां देशभर से विद्यार्थी अध्ययन के लिये आते हैं। उज्जैन का जिन कारणों से महत्व है, उन्हें सभी लोगों को बताने के प्रयास किये जा रहे हैं। सम्राट विक्रमादित्य के अस्तित्व पर मुहर लगाने के लिये यहां स्थित विक्रमादित्य शोधपीठ में निरन्तर कार्य किये जाते हैं। आगे भी इसी दिशा में प्रयास किये जायेंगे। कार्यक्रम का संचालन श्री भरत व्यास ने किया। अतिथियों द्वारा विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र भी वितरित किये गये।