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अभिरक्षा में भी व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार, मृत्यु के प्रकरण में मानव अधिकार आयोग ने पाँच लाख की अनुशंसा की


 

उज्जैन । मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने अभिरक्षा में बंदी द्वारा जहर खाकर आत्म-हत्या कर लेने के मामले में उसके उत्तराधिकारियों को पाँच लाख की प्रतिकर राशि अदा किये जाने की अनुशंसा की है।

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस नरेन्द्र कुमार जैन और सदस्य श्री सरबजीत सिंह की संयुक्त बेंच द्वारा बंदी सरस्वती उर्फ सरला की जेल अभिरक्षा में मृत्यु के मामले की सुनवाई की गई। आयोग की संयुक्त बेंच ने प्रकरण में प्रस्तुत सभी तथ्यों का बारीकी से अध्ययन किया और यह पाया कि बंदी की मृत्यु, अभिरक्षा के लिये जवाबदार पुलिस तथा जेल विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों की असावधानी से हुई है। आयोग ने बंदी की मृत्यु को व्यक्ति के जीवन जीने के अधिकार का हनन माना और मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 की धारा-18 के तहत मृतक महिला बंदी सरस्वती उर्फ सरला के उत्तराधिकारी बालक अंशु उम्र 7 वर्ष और आयुष उम्र 4 वर्ष निवासी मकान नम्बर-3, गरम गड्डा, चांदबड़, भोपाल को ढाई-ढाई लाख कुल पाँच लाख की प्रतिकर राशि एक माह में अदा किये जाने की अनुशंसा की है।

आयोग ने अनुशंसा में यह भी कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा-55 (क) में निहित प्रावधानों के अनुसार जवाबदार मुख्य एजेंसी जेल विभाग तथा पुलिस बल के कर्मचारियों को अभिरक्षा में लिये गये व्यक्तियों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और देख-रेख के लिये संवेदनशील बनाये जाने का प्रशिक्षण दिया जाये। इसके अलावा इस प्रकरण में बंदी द्वारा जहरीला पदार्थ खाकर उसकी मृत्यु के लिये जवाबदार पुलिस बल और जेल विभाग के कर्मचारियों/अधिकारियों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया के अनुसार विभागीय जाँच संस्थापित किये जाने की अनुशंसा भी आयोग ने की है।

आयोग द्वारा यह अनुशंसा मुख्य सचिव म.प्र. शासन, भोपाल, अपर मुख्य सचिव जेल और गृह विभाग, जेल महानिदेशक और पुलिस महानिदेशक, म.प्र. को भेजते हुए मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 की धारा 18 (ई) के मुताबिक एक माह में अनुशंसाओं पर कार्यवाही अपेक्षित कर प्रतिवेदन चाहा है।

 

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