संयम दिवस पर किसी ने त्यागा, किसी ने लिया संयम का नियम
आचार्य विद्यासागर महाराज के 50वें दीक्षा जयंती महोत्सव पर हुआ आचार्य छत्तीसी विधान का आयोजन
उज्जैन। आचार्य विद्यासागर महाराज के 50वें दीक्षा जयंती महोत्सव को संयम दिवस के रूप में दिगंबर जैन समाज ने मनाया। जिसके तहत पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर में प्रातः 6 बजे नित्य नियम, पूजा, अभिषेक के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। संपूर्ण उज्जैन की जैन समाज ने एकत्रित होकर आचार्यश्री की भावनाओं के समक्ष, आचार्य श्री के निश्चय के समक्ष अपनी भावना प्रकट करते हुए इस संयम महोत्सव में अपने-अपने संयम का कुछ ना कुछ प्रतीत याद करते हुए अपने जीवनकाल में कुछ न कुछ छोड़ने का भी निर्णय लिया। कुछ ना कुछ त्यागने का भी निर्णय लिया। हर व्यक्ति ने संयम दिवस पर संयम के रूप में कुछ न कुछ संयम पालन करने का भी नियम लिया।
दिगंबर जैन समाज के सचिव सचिन कासलीवाल के अनुसार प्रातः 7.0 बजे से अभिषेक पूजन एवं आचार्य छत्तीसी विधान का आयोजन हुआ। शाम को 8 बजे से इंजी. अरुण जैन रचित विद्या सागर चालीसा का विमोचन एवं गायन हुआ साथ ही आरती एवं भजन संध्या में भी समाज ने उत्साह से भाग लिया। कलश स्थापना सीमा शाह, मधु बड़जात्या ने की। इस अवसर पर आचार्यश्री विद्या सागर स्वर्ण संयम महोत्सव समिति संयोजक शैलेन्द्र शाह, धर्मेंद्र सेठी, प्रसन्न बिलाला, कमल बड़जात्या, नरेंद्र बड़जात्या, देवेंद्र तलाटी, सुशील छाबड़ा, कैलाश जैन दादा के साथ सैकड़ो समाजजन उपस्थित थे। कार्यक्रम पश्चात प्रभावना वितरण विजेंद्र सुपारिवाले परिवार द्वारा किया गया।
स्वच्छ खाना, स्वच्छ रहना, स्वच्छ विचार करना सबसे बड़ा धर्म
आचार्यश्री का संयम जयंती महोत्सव खजुराहो में मनाया जा रहा है जहां आचार्यश्री ने अपने प्रवचन में पूरे देश में किसानों को एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बताया और हर क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्तियों को सम्मानित किया। सत्य अहिंसा के मार्ग पर संयम के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया और उन्होंने यूरिया से उत्पन्न सब्जियों और अनाज के लिए कहा कि पहले तो हम यूरिया के रूप में भारत में जहर बांट रहे हैं और फिर उसी शहर को काटने के लिए हम धर्म कर रहे हैं। लोगों की सेवा कर रहे हैं लोगों को हम हम मदद कर रहे हैं। आचार्यश्री ने कहा यूरिया से उत्पन्न अनाज को खत्म कर दोगे तो ऑटोमेटिक स्वतः ही सारी बीमारियां खत्म हो जाएगी। स्वच्छ खाना, स्वच्छ रहना, स्वच्छ विचार करना सबसे बड़ा धर्म है। आचार्यश्री विद्यासागर के स्वर में शांतिधारा का अवसर इंजी. पी.सी. को उज्जैन में प्रथम बार प्राप्त हुआ।