संस्कृत ग्रंथ विवेक-सोपान-परंपरा का लोकार्पण
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी एवं दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पद्मश्री आचार्य वि. वेंटाचलम् की संस्कृत रचनाओं के संकलन विवेक सोपान परंपरा नामक संस्कृत ग्रंथ का लोकार्पण भरतपुरी स्थित सामाजिक शोध संस्थान में आयोजित सारस्वत आयोजन में हुआ।
उज्जैन पब्लिक स्कूल द्वारा आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता गोमती वेंकटाचलम् ने की। समारोह में सामाजिक शोध संस्थान की अध्यक्ष डॉ. नलिनी रेवड़ीकर ने प्रो. वेंकटाचलम् के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रकाशित करते हुए कहा कि वे सरल, साहसी, शांत एवं संस्कृति प्रेमी थे। इसी क्रम में राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान के सचिव विरूपाक्ष वि. जड्डिपाल ने देवभाषा में अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि प्रो. वेंटाचलम् कहा करते थे कि सबको समझ में आ जाए उसे विषय का विद्वान कहा जाता है तथा प्रो. साहब ने हमेशा भाषा संरक्षण एवं संवर्धन के अथक प्रयास किए। विदेशों में संस्कृत भाषा का प्रचार किया। वे भारत की ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व की निधि थे। महर्षि पाणिनि वि.वि. के कुलपति प्रो. रमेशचंद्र पंडा ने कहा प्रो. वेंकटाचलम साहित्य ही नहीं अपितु व्याकरण के भी मूर्धन्य विद्वान थे। वे विद्वानों को सम्मानित किया करते थे एवं विद्यार्थियों को प्रेरित करते थे और गुणों के सच्चे प्रशंसक थे। इसी क्रम में पूर्व संभागायुक्त एवं पूर्व कुलपति पाणिनी वि.वि. डॉ. मोहन गुप्त ने कहा कि प्रो. वेंकटाचलम् अद्भुत मेधा के धनी थे। वे संस्कृत साहित्य के ही नहीं अपितु समग्र साहित्य के पंडित थे। संचालन सिंधिया प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान के निदेशक एवं ग्रंथ के संपादक प्रो. डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने करते हुए कहा कि यह ग्रंथ का नहीं एक ग्रंथ परंपरा का लोकार्पण है। मिलिंद मुंगी तथा डॉ. शुभा मुंगी ने अतिथियों का शाल, श्रीफल एवं पुष्प अर्पण कर स्वागत किया। कार्यक्रम में नगर के संस्कृत अनुरागी, साहित्यकार एवं गणमान्यजन बड़ी संख्या में उपस्थित थे।