आज के समय में पशु, पक्षी एवं वानस्पतिक प्रजातियों का अस्तित्व एकदूसरे पर निर्भर है –संभागायुक्त श्री ओझा
अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर एक दिवसीय संभागीय कार्यशाला आयोजित
उज्जैन । अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर सिंहस्थ मेला कार्यालय में संभागायुक्त श्री एमबी ओझा की अध्यक्षता में स्थानीय वन प्रजातियों के संरक्षण एवं संवर्धन सम्बन्धी एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। इसका आयोजन मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड मप्र शासन वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
कार्यशाला में सम्बोधित करते हुए संभागायुक्त श्री ओझा ने कहा कि जैव विविधता क्यों आवश्यक है, इस विषय पर विषद चर्चा की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आज के समय में पशु, पक्षी एवं वानस्पतिक प्रजातियों का अस्तित्व एकदूसरे पर निर्भर करता है। वर्तमान समय में मानव की उपेक्षा के कारण कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। खेतों में कीटनाशक दवाईयों के उपयोग से लाभप्रद कीट, पतंगों एवं पक्षियों को हानि पहुंचती है और पर्यावरण का 'ईको सिस्टम' खराब होता है। पशु, पक्षी, कीट, पतंगे एवं मानव एकदूसरे पर निर्भर करते हैं। वनों को बचाकर ही हम पर्यावरण की जैव विविधता को बचाये रख सकते हैं। इस दिशा में सभी को मिलजुल कर जन-जागरूकता के साथ कार्य करना आवश्यक है।
कार्यशाला में वन मण्डलाधिकारी उज्जैन, मुख्य वन संरक्षक उज्जैन, संयुक्त आयुक्त श्री प्रतीक सोनवलकर, सीईओ जिला पंचायत श्री संदीप जीआर और उज्जैन संभाग के विभिन्न जिलों के डीएफओ मौजूद थे। कार्यशाला में जैव विविधता पर आधारित और वन विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं पर आधारित लघु फिल्में 'अनुभूति' प्रदर्शित की गईं। डीएफओ द्वारा कार्यशाला की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए बताया गया कि आज अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस है और खास बात यह है कि प्रतिवर्ष 22 मई को यह दिवस मनाया जाता है। आज इसकी 25वी वर्षगांठ है। इस दिन का बहुत महत्व है। जैव विविधता विषय को आमजन के बीच सारगर्भित और सरल, सहज भाषा में समझाने के लिये विषय विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है, जो कार्यशाला में जैव विविधता पर आधारित विभिन्न विषयों पर अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त करेंगे।
मप्र की जैव सम्पदा आज भी अत्यन्त समृद्ध
कार्यशाला में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के जैव विविधता दिवस पर दिये गये सन्देश का वाचन श्री राजीव पाहवा द्वारा किया गया। मुख्यमंत्री के सन्देश में बताया गया कि अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर राज्य जैव विविधता बोर्ड के प्रयासों से प्रदेश में कार्यक्रमों की श्रृंखला आयोजित की गई है। नागरिकों के लिये यह गर्व का विषय है कि मध्य प्रदेश की आज भी जैव सम्पदा अत्यन्त समृद्ध अवस्था में है। वनस्पति, वन्य जीव और मनुष्य सहअस्तित्व बनाये रखते हुए ही जीवित रह सकते हैं। परस्पर विरोध से जीवन समाप्त हो जाता है। अपनी असीम बौद्धिक क्षमताओं के कारण मनुष्य की यह जिम्मेदारी है कि वह समृद्ध जैव विविधता के संवर्धन के प्रति सचेत रहे। जैव विविधता के प्रति चेतन्य रहना ही संवर्धन की आवश्यकता है। सभी नागरिकों से अपील है कि वे अपने आसपास की जैव विविधता के प्रति संवेदनशील रहें और इसके संरक्षण के लिये हमेशा तत्पर रहें। छोटे-छोटे प्रयासों से ही बड़े बदलाव संभव हैं।
इसके पश्चात वन मंत्री डॉ.गौरीशंकर शेजवार और मुख्य सचिव श्री बसन्त प्रताप सिंह का जैव विविधता के अवसर पर सन्देश का वाचन किया गया।
मानव ने अपने स्वार्थ के कारण प्राकृतिक संसाधनों का बेतरतीब दोहन किया
मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान एवं विस्तार खण्डवा सर्कल डॉ.अनिल नागर द्वारा जैव विविधता एवं मानव कल्याण तथा मालवा एवं निमाड़ अंचल की दुर्लभ प्रजातियों पर पॉवर पाइन्ट प्रजेंटेशन दिया गया। उन्होंने कहा कि मानव ने अपने निजी स्वार्थ और लालची प्रवृत्ति के कारण प्राकृतिक संसाधनों का बेतरतीब दोहन किया है। उन्होंने डोडो नामक पक्षी और केलवेरिया नामक वृक्ष की विलुप्त प्रजाति के बारे में विस्तार से जानकारी दी। डोडो नामक पक्षी काफी साल पहले घने वनों में पाया जाता था। पुर्तगालियों द्वारा इसका शिकार करना प्रारम्भ किया गया। अपने अस्तित्व को बचाये रखने में यह पक्षी सक्षम नहीं था, क्योंकि वह न तो उड़ सकता था और न ही तेज दौड़ सकता था। इस कारण वह अपना बचाव नहीं कर सका और अत्यन्त कम समय में विलुप्त हो गया। केलवेरिया वृक्ष भी इस पक्षी के साथ ही विलुप्त हुआ। इन दोनों का आपस में गहरा सम्बन्ध था। डोडो पक्षी केलवेरिया के बीज खाता था और उसकी आंत से होते हुए बीट के द्वारा बाहर निकलकर ही उसका बीज अंकुरित होता था। डोडो पक्षी के खत्म हो जाने से केलवेरिया वृक्ष प्रजाति भी खत्म हो गई।
डॉ.नागर ने कहा कि जैव विविधता का इस्तेमाल वनों के प्रबंधन में प्रमुखता के साथ किया जाता है। प्रजातियों के संरक्षण और संवर्धन में ही जैव विविधता को प्राथमिकता दी जाये।
उज्जैन में हर वर्ष 300 से अधिक विभिन्न प्रजातियों के अप्रवासी पक्षी आते हैं
कार्यशाला में पक्षी विशेषज्ञ एवं प्राचार्य सव्यसांची विद्यापीठ उज्जैन डॉ.शेखत चन्द्रा द्वारा पक्षियों के जैव विविधता से सम्बन्ध और उनका महत्व पर आधारित प्रजेंटेशन दिया गया। उन्होंने पक्षियों के बारे में कुछ रोचक जानकारियां दीं। उल्लेखनीय है कि उज्जैन में हर वर्ष 300 से अधिक विभिन्न प्रजातियों के अप्रवासी पक्षी विचरण के लिये आते हैं। ये पक्षी सिलारखेड़ी और उंडासा तालाब के पास अपना डेरा जमाते हैं। इनमें बारहेडेड गूस, बारटेल्ड गोडविक, क्षिप्राहॉक, पाँडह्यूरॉन और गेस्ड सर्पेंटाइन ईगल प्रमुख होते हैं।
गिद्ध के बारे में बताते हुए डॉ.चन्द्रा ने कहा कि यह पक्षी प्रकृति का सफाईकर्मी कहलाया जाता है। पशुओं के मृत शरीर को खाकर यह प्रकृति की सफाई करते हैं। रेबीज बीमारी को भी रोकने में यह महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। कुछ समय से यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर थी, परन्तु अब इनके संरक्षण के लिये शासन द्वारा आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं। गांधी सागर बांध में गिद्धों के संरक्षण के लिये प्रशंसनीय कार्य किया जा रहा है।
पक्षी जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े संकेतक होते हैं। ये हानिकारक कीड़े-मकोड़ों को खाकर खेतों को भी नष्ट होने से बचाते हैं। जब सुदूर देशों से पक्षी विचरण के लिये आते हैं तो वे बीज फैलाव और उसके अंकुरण में विशेष भूमिका निभाते हैं। चूहों का भी भक्षण कर यह उनकी तादाद रोकते हैं। पक्षियों के अपशिष्ट से मिट्टी की उर्वरकता में बढ़ौत्री होती है। आने वाली ऋतुओं की जानकारी भी पक्षियों के माध्यम से हमें प्राप्त होती है। कीटनाशकों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से पक्षियों की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और वे मर जाते हैं, अत: इसे रोकने के लिये जैविक खाद का प्रयोग करना चाहिये।
पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता का द्योतक है जैव विविधता
पर्यावरण शाला विक्रम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ.डीएम कुमावत ने जैव विविधता पर पॉवर पाइन्ट प्रजेंटेशन के माध्यम से जानकारी दी कि जैव विविधता कोई नई चीज नहीं है। दरअसल जैव विविधता जीवन और विविधता के संयोग से निर्मित शब्द है जो आमतौर पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को सन्दर्भित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनईपी के अनुसार जैव विविधता विशिष्टतया आनुवांशिक प्रजाति तथा पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता का स्तर मापता है। जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है। पृथ्वी पर जीवन आज लाखों विशिष्ट जैविक प्रजातियों के रूप में उपस्थित है।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैव संसाधनों के अत्यधिक दोहन पर बढ़ती हुई चिन्ता ने सन 1992 में जैव विविधता संधि का रूप लिया, जिसमें लगभग 150 राष्ट्रों ने जैव विविधता का संरक्षण, उसके संगठकों का पोषणीय उपयोग तथा जैविक स्त्रोतों और ज्ञान के उपयोग से उद्भूत लाभ का उचित और साम्यपूर्ण प्रभाजन सुनिश्चित करने पर बल दिया। मध्य प्रदेश शासन द्वारा सन 2004 में मध्य प्रदेश जैव विविधता नियम बनाये गये।
डॉ.कुमावत ने कहा कि जैव विविधता कई प्रकार की होती है। पारिस्थितिकी, प्रजातीय, आनुवांशिक तथा इसके कुछ उप प्रकार भी होते हैं, जिनमें अल्फा, बीटा और गामा विविधताएं होती हैं। जैव विविधता के उत्पादक, सामाजिक, सौन्दर्य और नैतिक मूल्य होते हैं। कुदरत अपने आप में एक बहुत बड़ी प्रयोगशाला है। जैव विविधता इसका एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मधुमक्खियों का भी हमारे जीवन पर बहुत गहरा और सकारात्मक प्रभाव होता है। विश्व के अग्रणी देश अमेरिका की बात की जाये तो वहां के 30 से 90 प्रतिशत फल एवं बागान की पैदावार मधुमक्खियों और अन्य कीटों पर निर्भर करती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब से प्रत्येक वर्ष 20 मई को 'वर्ल्ड बी डे' मनाया जायेगा। यही जैव विविधता का महत्व है।
डॉ.कुमावत द्वारा जैव विविधता पर मंडरा रहे विभिन्न खतरों के बारे में भी विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई। इसमें प्राणियों के प्राकृतिक आवास का विनाश, आवास का विखंडन, प्रदूषण, बढ़ती हुई जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन प्रमुख कारण रहे हैं। आर्थिक विकास और भौतिकतावादी सोच ने भी जैव विविधता को नष्ट करने में सक्रिय भूमिका निभाई है। जैव विविधता संरक्षण के लिये हम सभी को कारगर प्रयास करने होंगे, तभी प्रकृति पर जीवन बच सकेगा।
कार्यशाला में अन्य विषय विशेषज्ञों द्वारा भी जैव विविधता और उससे जुड़े अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा व विचार-विमर्श किया गया। आभार प्रदर्शन वन मण्डलाधिकारी देवास द्वारा किया गया।