गुरूभक्ति - सेवा से क्षणभर में ही मिला जीवनभर का ज्ञान
सनातन संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और गुरु का गुणगान भी खूब किया है। साथ ही कहा गया है कि गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनकी सेवा और सत्यनिष्ठा जरूरी है। जो शिष्य अपने गुरू की आज्ञा का पालन दिल से करता है उसको दुर्लभ ज्ञान की प्राप्ति स्वत: हो जाती है। हम आपको महाभारत की एक ऐसी कहानी बता रहे हैं, जिसमें शिष्य ने गुरु की आज्ञाके पालन से कुछ ही समय में बरसों का ज्ञान प्राप्त कर लिया।
तक्षशिला में आयोदधौम्य नाम के ऋषि रहते थे। उनके एक प्रिय शिष्य का नाम था आरूणी। एक बार ऋषि ने आरूणि को खेत की मेड़ बांधने के लिए भेजा। आरूणि ने बहुत कोशिश की, लेकिन जब मेड़ को बांधते-बांधते थक गया तो पानी के बहाव को रोकने के लिए खुद लेट गया। आरूणि के लेटने से पानी रुक गया। काफी देर पश्चात ऋषि का ख्याल आया तो उन्होने अपने दूसरे शिष्यों से पूछा कि ‘आरूणी कहां गया है?’
तब शिष्यों ने कहा कि 'आपने ही तो उसको खेत की मेड़ बांधने के लिए भेजा है। 'तब गुरू आयोदधौम्य ने शिष्यों से कहा कि 'काफी देर हो गई है चलो चलकर देखते हैं। 'खेत पर पहुचकर ऋषि ने आरूणी को आवाज लगाई , तो आरूणी तुरंत ऋषि के सामने आया और उनको प्रणाम किया। ऋषि ने कहा ‘शिष्य तुम अभी तक कहां थे? और तुम्हारी यह हालत कैसे हुई?’ तब आरूणी ने कहा कि ‘खेत की मेड़ बांधने में मैं असफल रहा था इसलिए मैने खुद लेटकर खेत में पानी के बहाव को रोका है। आपकी आवाज सुनकर आपकी सेवा में आया हूं आदेश किजिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं।
‘गुरू अपने शिष्य की भक्ति से बड़े प्रसन्न हुए और कहा कि ‘बेटा तुम मेड़ को उद्दलन( तोड़कर) कर ख़ड़े हुए हो इसलिए आज से तुम्हारा नाम उद्दालक होगा और तुमने अपने गुरू की आज्ञा का बड़ी सत्यनिष्टा के साथ पालन किया है, इसलिए तुमको वेद,पुराण और धर्मशास्त्र स्वत: ज्ञात हो जाएंगे।‘इस तरह से आरूणी आचार्य का आशीर्वाद पाकर अपने अभिष्ट स्थान पर चला गया और गुरु के आशीवार्द से वेद-शास्त्रों में पारंगत हो गया।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि गुरू की आज्ञा के पालन करने और उनके मार्गदर्शन में चलने से जीवनभर की उपलब्धि कुछ ही समय में मिल जाती है।