हिंसा का मार्ग अपनाना ग्राम देवता (किसान) की परंपरा नहीं- अवधेशपुरी महाराज
उज्जैन। किसी कवि ने लिखा है कि सोने चांदी से नहीं, तुमने मिट्टी से किया प्यार, हे ग्राम देवता नमस्कार। इन पंक्तियों के अर्थ को वर्तमान समय में किसान एवं शासन दोनों को समझने की आवश्यकता है। किसान सात्विक देवता है जो स्वयं संघर्ष सहन कर समाज को अन्न देता है। इसलिए उसे देवता कहा जाता है इस भावना के आधार पर किसानों को अपनी परंपरा की रक्षा करते हुए हिंसा पर उतारू असामाजिक तत्वों के बहकावे में आने की आवश्यकता नहीं है।
परमहंस डाॅ. अवधेशपुरी महाराज ने किसानों से अपील की है कि अपनी मांगों को मनवाने के लिए अहिंसक मार्ग अपनाएं। शास्त्रों में जिस दूध को रत्न कहा गया है उसे सड़कों पर बहाने की आवश्यकता नहीं है। अत्यंत दुर्लभ मनुष्य शरीर को हिंसा के माध्यम से त्यागने की आवश्यकता नहीं है। केवल 10 दिन के लिए शहर में दूध आदि सामान न देकर स्वयं उपयोग में लेते या फिर अस्पताल एवं अनाथालय जैसे स्थानों पर जाकर गरीबों में बांट कर पुण्य कमा सकते थे और शासन पर दबाव भी बना सकते थे। जिन किसानों की जान इस आंदोलन में गई संत समाज उनकी आत्मशांति के लिए बाबा महाकाल से प्रार्थना करता है एवं परिवारवालों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है। संत समाज किसानों की आवश्यक मांगों को अहिंसक माध्यमों से मनवाने के लिए उनका समर्थन भी करता है। भोला किसान अहिंसा का पुजारी होता है, हिंसा का नहीं। अतः किसानों से शांति बनाए रखने की अपील करता है।