लोक परिवहन मामले में अधिकारी और जनप्रतिनिधि दोनों उदासीन, आवागमन में लोगों को हो रही रोज की परेशानी
उज्जैन - सिटी बस का संचालन शहर के लिए कितना जरूरी है ये बात शहर के उन नागरिकों से जानना चाहिए, जो रोजाना अधिक पैसा खर्च करने के साथ साथ अपनी जान जोखिम में डालकर पायलेटिंग करने वाले ई रिक्शा और मैजिक में सफर करने के लिए मजबूर होते हैं। या फिर उन बाहर से आने वाले यात्रियों से पूछा जाना चाहिए जो ट्रेन या बस का सफर करने के बाद नगर के प्रमुख मंदिरों में जाने के लिए ई रिक्शा और ऑटो चालकों की मनमानी का शिकार होते हैं। शहरवासियों का कहना है कि इस मामले में न तो शासन प्रशासन ध्यान दे रहा और न ही नगर निगम के वे जिम्मेदार, जिन्हें जनता ने अपने भले के लिए चुनकर भेजा है। रही बात उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज़ लिमिटेड की तो वो बस नाम की ही संस्था बनकर रह गई है। बस संचालन के लिए सालों पहले बनाई गई संस्था यूसीटीएसएल के जिम्मेदारों ने अब तक कोई ऐसा कदम ही नहीं उठाया, जिस पर नगर के नागरिक गर्व कर सकें। जबकि शहर से 55 किलोमीटर दूर इंदौर में सिटी बस से नगर निगम को खासी कमाई हो रही है। 35 से 40 प्रतिशत लोग रोजाना लोक परिवहन के साधनों का प्रयोग करते हैं, इसीलिए आज वहां मेट्रो टेªन का सपना भी सच होने जा रहा है।
ऐसे शुरू हुई थी सस्ती परिवहन सेवा
शहर की आंतरिक सीमाओं तक आवागमन की सुविधा देने के लिए केन्द्र सरकार ने जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत वर्ष 2009 में नगर पालिका निगम के सहयोग से उज्जैन में सिटी बस सेवा की शुरुआत की थी। शुरुआत के कुछ महीने नगर निगम ने पहले चरण में खरीदी गई 39 सीएनजी सिटी बसों को स्वयं चलाया और उसके बाद बस संचालन व्यवस्था को ठेके पर दे दिया। इसके बाद 50 डीजल बसें लोक परिवहन सेवा के लिए खरीदी गईं। लेकिन बीते 15 सालों में गिनती के ठेकेदार नगर निगम को मिले। इन ठेकेदारों ने सभी 89 बसों को खूब चलाया और आर्थिक लाभ कमाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। बसों से कमाई करने वालों ने कभी भी बस में संधारण कार्य नहीं करवाया, नतीजतन सभी बसें धीरे धीरे भंगार होती चलीं गईं और जनता से एक अच्छी सुविधा छिन गई।
निगम को उठाना पड़ा नुकसान
हद तो इस बात की रही कि बसों का संचालन करने वाले ठेकेदार, बसों को भंगार हालात में छोड़कर चले गए। सूत्र बताते हैं कि कोरोना काल से पहले शहर की सड़कों पर मात्र 8 सिटी बसें चालू हालत में थीं, थोड़े समय के बाद वो भी बंद हो गई। इतना ही नहीं, बस संचालन करने वाली ठेकेदार कंपनी ने अपने राजनीतिक रसूख के चलते निगम में वो पैसा भी जमा नहीं करवाया, जिस पर बसें संचालन के लिए दी गई थीं और दयालू नगर निगम वो पैसा अब तक नहीं वसूल पाई है।
हर बार मंडराए संकट के बादल
ऐसा नहीं है कि बस संचालन के बारे में दोबारा कभी विचार नहीं किया गया। विचार भी हुआ और इसके लिए टेंडर भी बुलाए गए। सितम्बर 2020 तक नगर निगम ने तीन बार टेंडर जारी किए, लेकिन कोई नया ठेकेदार बसें चलाने के लिए राजी नहीं हुआ। एक सिंगल टेंडर आया, तो मजबूरीवश निगम ने उसे ही मंजूरी दे दी। सूत्र बताते हैं कि नगर निगम अपनी बसें संचालन के लिए मात्र 55 रुपए रोज के किराए पर पुराने ठेकेदार को देने को राजी हो गई थी। यानी 1650 रूपए में एक बस पूरे महीने चलाने को मिल रही थी। लेकिन सितम्बर 2020 में तात्कालीन भाजपा बोर्ड का कार्यकाल पूरा हो गया और निगम की कमान प्रशानिक अधिकारी के हाथ में चली गई। बतौर नगर निगम प्रशासक संभाग कमिश्नर आनंद शर्मा ने कार्यभार संभालते ही इतने सस्ते ठेके को सिरे से खारिज कर दिया। साथ ही साथ निगम के अधिकारियों से नए ठेके की प्रक्रिया के लिए कहा।
अभी 83 रूपए रोज पर चल रहीं थीं बसें
उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज़ लिमिटेड ने कोराना काल के बाद कंडम हो चुकी बसों को खुद के खर्च पर सुधरवाकर इंदौर की विनायक टूर एंड ट्रेवल्स कंपनी को प्रति बस 83 रूपए रोज के किराया अनुबंध पर संचालन के लिए दी। विनायक कंपनी ने नगर निगम से 25 बसें किराए पर लीं और देवासगेट से नानाखेड़ा के सहित उज्जैन दर्शन, उज्जैन से ओमकारेश्वर, आगर, मक्सी तराना के लिए चलाना शुरू की।
अक्टोबर 2024 में ये अनुबंध भी टूटा
अगर ये कहा जाए कि उज्जैन को सिटी बस रास ही नहीं आई, तो गलत नहीं होगा। कभी निगम को ठेकेदार नहीं मिला, तो कभी बसों के रखरखाव के लिए आर्थिक संकट बना रहा। कोराना काल के बाद जैसे तैस शुरू हुई सिटी बसों के टेंडर शर्तों में अनियमितता को लेकर निगम आयुक्त आशीष पाठक ने सिटी बसों का संचालन करने वाली इंदौर की एजेंसी विनायक टूर एवं ट्रेवल्स का टेंडर 20 अक्टूबर 2024 को निरस्त करने के आदेश जारी कर दिए। कथिततौर पर ठेकेदार कंपनी द्वारा निगम कमिश्नर के फर्जी साइन करके सिटी बसों के परमिट का समय बदलने का प्रयास किया जा रहा था। बस इसी बात से नाराज निगम कमिश्नर ने विनायक टूर एवं ट्रेवल्स का टेंडर निरस्त करते हुए तत्काल प्रभाव से बसों को डिपो में खड़ा करने के आदेश दे दिए। जिसके बाद शहर के विभिन्न स्थानों पर संचालित हो रहे टिकट काउंटर्स सील किए और वहां रखी सामग्री को जब्त किया गया।
उपनगरीय सेवा भी हुई समाप्त
सिटी बसों का संचालन उपनगरीय सेवा के तहत कस्बाई क्षेत्रों के लिए भी किया जा रहा था। जिससे यात्रियों और ठेकेदार दोनों को लाभ मिलने लगा। सूत्र बताते हैं कि उपनगरीय सिटी बस सेवा शुरू हो जाने से यात्रियों को सबसे ज्यादा निजी बस संचालकों की मनमानी से मिला। नगर निगम की सिटी बसों में आरामदायक यात्रा के साथ धक्का-मुक्की, ज्यादा किराया वसूली, असुरक्षा जैसी समस्याओं से ग्रामीणों को मुक्ति मिली। लेकिन ये व्यवस्था भी ज्यादा दिन नहीं चल पाई और अब उन्हें फिर से निजी बसों में सफर के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
सबसे ज्यादा परेशानी ई रिक्शा से
सिटी बसों का संचालन नहीं होने से कम दूरी की यात्रा करने वालों को या तो मैजिक के भरोसे रहना पड़ता है या फिर ई रिक्शा के। हालही में सीएमनी से चलने वाली मैजिकों में कमी आई है और शहर में ई रिक्शा की संख्या बढ़ गई है। जिस वजह से हर तरफ इन्हीं का बोलबाला रहता है। ई रिक्शा की संख्या अधिक होने और इनके चालकों द्वारा बेतरतीब संचालन की वजह से यातायात पर भी खासा असर पड़ता है। शहर में हर तरफ जाम के हालात बने रहते हैं।
ई रिक्शा चालक करते हैं अभद्रता
शहर के लोगों और बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों को सबसे ज्यादा परेशानी ई रिक्शा वालों से हैं। ये लोग एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए अनापशनाप पैसों की डिमांड करते हैं। संबंधित व्यक्ति के नहीं देने पर अभद्रता करने में भी इन्हें बिल्कुल समय नहीं लगता। पैसेंजर से बदतमीजी करने वाले ऑटो चालक भी हैं, लेकिन उनकी संख्या ईरिक्शा के मुकाबले कम है।
अंदरूनी विवाद व राजनीति से नुकसान
सिटी बस संचालन को लेकर जितने उदासीन नगर निगम के अधिकारी बने हुए हैं, उतने ही जनप्रतिधि भी। सूत्र बताते हैं कि जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के मनमुटाव के चलते ही ये हालात बने हैं। दोनों पक्ष साथ होकर साथ नहीं हैं। लेकिन अंदरूनी तौर पर विवाद के चलते कई कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
अभी 25 बसें चलने योग्य
दस्त्क न्यूज डॉट कॉम को मिली जानकारी अनुसार डिपो में खड़ी बसों में से अभी 25 बसें चलने की हालात में हैं। जैसे ही विधिवत कार्रवाई पूरी होती है, बसों का संचालन शुरू किया जा सकता है।
इनका कहना -
मैनें कमिश्नर को बता दिया है, क्यों नहीं चला रहे, ये उन्हीं से पूछिए।
मुकेश टटवाल, महापौर
मामले में महापौर जी को सख्त होना होगा। कह देने भर से काम नहीं होते।
रवि राय, नेता प्रतिपक्ष
इस संबंध में निगम कमिश्नर आशीष पाठक से भी चर्चा का प्रयास किया गया, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो सके।