टिपानिया के गायन के साथ दिनकर सोनवलकर स्मृति समारोह संपन्न
दिनकर के काव्य में करुणा है- डाॅ. मोहन गुप्त
उज्जैन। साहित्य मंथन के तत्वावधान में कवि प्रो. दिनकर सोनवलकर की 85वीं जन्मतिथि के प्रसंग पर आयोजित स्मृति समारोह सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान के सभागार में सम्पन्न हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए पूर्व उज्जैन संभागायुक्त एवं पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त ने कहा कि दिनकरजी के काव्य के केंद्र में विराट मनुष्य रहा है जो अपने शत्रु का भी कल्याण चाहता है। दिनकर के काव्य में करूणा और करुणा के प्रति आग्रह है और कविता का जन्म करूणा से ही होता है।
इस अवसर पर विशेष अतिथि अपर आयुक्त डॉ. अशोककुमार भार्गव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए स्व. सोनवलकर की रचनाओं एवं कविताओं को बहुआयामी बताते हुए कहा कि दिनकर का कविता संसार अनूठा है तथा दिनकर अपनी रचनाधर्मिता के साथ हमारी स्मृतियों में मौजूद हैं। शिक्षाविद एवं सिंहस्थ मेला प्राधिकरण अध्यक्ष दिवाकर नातू ने भी अपने विचार प्रकट करते हुए दिनकर सोनवलकर की कविताओं एवं उनकी रचनाओं की प्रशंसा करते हुए संयुक्त आयुक्त प्रतीक सोनवलकर द्वारा आयोजित समारोह की प्रशंसा की। आयोजन में साहित्यकार अशोक वक्त एवं व्यंगयकार डाॅ. पिलकेन्द्र अरोरा ने भोपाल के संयुक्त आयुक्त सुदर्शन सोनी के उपन्यास ‘आरोहण’ के बारे में अपने विचार व्यक्त किये। डाॅ. पिलकेन्द्र अरोरा ने कहा कि ‘आरोहण’ में आगे की ओर बढ़ते कदम के बारे में उपन्यासकार ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। इस उपन्यास में एक छोटे आदमी ने छोटे से काम से अपनी शुरूआत कर धीरे-धीरे आत्मसम्मान बढ़ाते हुए उसके कदम आगे की ओर बढ़ते गये, जो आरोहण पुस्तक में उपन्यासकार ने अपनी बात समझाई है। उपन्यास जीवन का दर्पण होता है, जिसमें उपन्यासकार ने सत्यता को उकेरने का प्रयास किया है। परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्रख्यात समीक्षक एवं साहित्यकार अशोक वक्त ने कहा कि उपन्यास लिखना कठिन विधा है। अपनी विस्तृत लेखनी से उपन्यासकार ने अपने उपन्यास को सार्थक करने का प्रयास किया है। उपन्यास लिखना एक साहसिक कदम है, जिसमें सकारात्मक बातों का उल्लेख किया है। यह उपन्यास समाज के लिये प्रेरक साबित होगा, जो प्रशंसनीय है।
समारोह के प्रारम्भ में उपन्यासकार भोपाल के संयुक्त आयुक्त सुदर्शन सोनी ने अपने उपन्यास आरोहण के बारे में विस्तृत जानकारी दी। इसके पूर्व कला एवं साहित्य को जोडने का प्रयास करते हुए स्व. दिनकर सोनवलकर की 15 कविताएं, रचनाएं जोड़कर प्रतिभा कला संगीत कला संस्थान की पद्मजा रघुवंशी के नेतृत्व में बालिकाओं ने नृत्य नाटिका प्रस्तुत की। समारोह के प्रारम्भ में अतिथियों के द्वारा मां सरस्वती एवं स्व. दिनकर सोनवलकर के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित कर समारोह का शुभारम्भ किया गया।
अतिथियों का स्वागत प्रतीक सोनवलकर, साहित्य मंथन के अध्यक्ष डाॅ. हरीशकुमार सिंह, महासचिव मुकेश जोशी, सार्थक सोनवलकर, पंकजा सोनवलकर, दीक्षा सोनवलकर, अजय तिवारी, श्रीराम दवे, डाॅ. विनय तिवारी, स्वामीनाथ पाण्डेय, डॉ.शिव चैरसिया, रमेशचन्द्र शर्मा आदि ने किया। समारोह के अन्त में प्रख्यात कबीर भजन गायक प्रहलाद टिपाणिया ने अपने भजनों ‘गुरु की वाणी अटपटी, झटपट लखी न जाए‘, पानी केरा बुदबुदा, असमानुस की जात,’ आदि भजनों से समस्त उपस्थित श्रेष्ठ सुधिजनों को मंत्रमुग्ध किया। आयोजन में साहित्यकार शिव चैरसिया, डाॅ. हरीश प्रधान, डाॅ. देवेन्द्र जोशी, जीवनसिंह ठाकुर, प्रमोद त्रिवेदी, के. डी. सोमानी, अरुण निगम, मुकेश व्यास, शैलेन्द्र व्यास, वाणी दवे, अनिल कुरेल, योगेश यादव सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार उपस्थित थे। संचालन पद्मजा रघुवंशी ने किया और आभार डॉ. हरीशकुमार सिंह ने व्यक्त किया।