देश की सरहदों पर काम करने वाले जवानों के लिए सोचना जरूरी
संदीप कुलश्रेष्ठ
अब समय आ गया हैं कि देश की सरहदों पर तैनात जवानों की सेवा, सुविधा , पदोन्नति, पेंशन आदि के बारे में नए सिरे से सोचा जाए। पिछले दिनों तीन जवानों ने अपने मन की पीड़ा सोषल मीडिया पर व्यक्त कर बता दिया हैं कि ये किन हालातों में काम कर रहे हैं। ये केवल बानगी हैं। अनेक जवान ऐसे भी रहते हैं जो बिना पदोन्नति के ही जिस पद पर भर्ती होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त भी हो जाते हैं। इसलिए उन्हें सम्मान के साथ सेवा करने का पुरस्कार देना भी जरूरी हैं।
हाल ही में बीएसएफ के कांस्टेबल तेजबहादुर यादव ने उन्हें दिए जा रहे खराब खाने और भ्रश्टाचार की षिकायत उजागर करने के उद्देष्य से सोषल मीडिया पर वीडियों डाला, जिससे देश भर में तहलका मच गया। देश भर में आलोचना होने पर गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इस प्रकरण की जांच करने के आदेश दिए। जांच में सेना ने मामले की लीपापोती करते हुए खराब खाने की शिकायत को ही नकार दिया। हालांकि इसमें हस्तक्षेप करते हुए प्रधान मंत्री कार्यालय ने नए सिरे से जांच कर संशोधन रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं । किंतु , सवाल यह उठता हैं कि ऐसी स्थिति आने ही क्यों दी जाए ! इस मामले के बाद सैनिक को अनुषासनहीन बताते हुए उसे गैरजिम्मेदार ठहराने की भी कवायद षुरू कर दी गई, जो कि निंदनीय ही कही जा सकती हैं। क्यों नहीं गृह विभाग और प्रधानमंत्री कार्यालय इससे सीख लेते हुए जवानों के खाने की नए सिरे से पड़ताल करें। परिस्थिति और परिवेष के अनुसार सेना के जवानों को भोजन उपलब्ध कराना उन पर कोई मेहरबानी नहीं हैं। सेना को इसमें निष्पक्ष भाव से पड़ताल कर ऐसी कारवाई करना चाहिए कि किसी भी सैनिक को भोजन के संबंध में शिकायत करने का मौका ही नहीं आए। यह हमारा कर्तव्य भी हैं और जिम्मेदारी भी ।
पिछले दिनों सेना के एक और जवान लांस नायक यज्ञ प्रताप सिंह ने भी एक वीडियो जारी कर सेना में वर्षो से चली आ रही सेवादारी के खिलाफ अपनी मन की पीड़ा व्यक्त की हैं। उसका यह कहना कि जवानों द्वारा अफसरों के जूते पॉलिश करना और उनके बच्चों एवं परिवार की सेवा करना सैनिकों का अपमान हैं, सही कहा जा सकता हैं। यह हर कोई जानता हैं कि सेना में सेवादारी प्रणाली शुरू से लागू है। जब सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को सेवक देने की जरूरत हैं ,तो क्यों नहीं उसके लिए एक अलग कैडर ही बना दिया जाए। इस कैडर में काम करने वाले की यही जिम्मेदारी और कर्तव्य भी रहेगा। सेना के जवानों को काम सरहदों की रक्षा करना हैं, ना कि सेना के अधिकारियों एवं परिवार की सेवा करना। गृह मंत्री और प्रधानमंत्री को इस विषय पर गंभीरता पूर्वक सोचना चाहिए। और नया कैडर बनाकर वरिष्ठ अधिकारियों को जहां जरूरी हो , वहां सेवक भी उपलब्ध कराना चाहिए।
हाल ही में सीआरपीएफ के कांस्टेबल जीत सिंह ने भी सोशल मीडिया पर एक वीडियों डालकर सीआरपीएफ के जवानों को सेना के जवानों से कम सुविधाएं देने का दर्द बया किया हैं। उसने कहा हैं कि एक जैसी ड्यूटी के बावजूद सेना और सीआरपीएफ की सुविधाओं में काफी अंतर हैं। सीआरपीएफ के जवानों को न तो पेंशन मिलती हैं और न कोई सुविधा। उसका यह कहा जाना भी सही हैं कि बीस साल के बाद रिटायर होने पर उन्हें न तो एक्स सर्विसमेन कोटा मिलता हैं , और न ही कैंटिन की सुविधा मिलती हैं। यदि ऐसा हैं तो वास्तव में यह चिंतनीय बात हैं। इस पर भी प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय को गंभीरता पूर्वक सोचने की जरूरत हैं। समान कार्य पर समान वेतन और समान सुविधाएँ देना सरकार का दायित्व भी होना चाहिए।
उक्त तीन जवानों ने मन की वेदना सोशल मीडिया पर वीडियो डालकर व्यक्त कर दी हैं। अब प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह की यह जिम्मेदारी हैं कि वे इन तीनों प्रकरणों पर गंभीरता पूर्वक सोचे। और तीनों जवानों की समस्याओं के तह में जाकर उसके निराकरण के लिए ठोस प्रयास करें। यही आज के समय की जरूरत भी हैं , अन्यथा सेना , बीएसएफ और सीआरपीएफ में भर्ती होने के प्रति युवाओं में रूचि कम होने की संभावना बन सकती हैं। ऐसी नौबत नहीं आए, इसके लिए शीर्ष नेतृत्व को ठोस पहल करने की तुरंत आवश्यकता हैं।
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