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घोषणा के नौ माह बाद भी क्रियान्वयन नहीं, मुख्यमंत्री जी अब तो चाबुक उठाईये !



संदीप कुलश्रेष्ठ
 
                    हाल ही में भोपाल में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक हुई । इस बैठक में जैसे ही यह प्रस्ताव आया कि मुख्यमंत्री द्वारा सिंहस्थ में की गई घोषणा के क्रियान्वयन के लिए सिंहस्थ में काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को पांच हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि दिया जाना है, वैसे ही मुख्यमंत्री जी अत्यधिक नाराज हो गए । उन्होंने गहरा असंतोष प्रकट करते हुए कहा कि उन्होंने सिंहस्थ में मई माह में घोषणा की थी और स्वीकृति का प्रस्ताव अब आ रहा हैं। मुख्यमंत्री ने मई 2016 में की गई घोषणा के क्रियान्वयन के लिए 09 जनवरी 2017 को कैबिनेट में प्रस्ताव रखे जाने पर अत्यंत नाराजगी व्यक्त करते हुए स्वीकृति दी। लगातार बारह साल से प्रदेश के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री की घोषणा के ये हाल हैं कि मुख्यमंत्री की घोषणा के नौ माह बाद प्रस्ताव कैबिनेट में रखा जा रहा हैं। इतने विलम्ब पर मुख्यमंत्री द्वारा किसी भी विभाग के अधिकारी के विरूद्व कोई कार्यवाही नहीं करना आश्चर्य की बात हैं। 
                  आस्था और विश्वास का महापर्व सिंहस्थ उज्जैन में 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक आयोजित किया गया था। सिंहस्थ की भव्यता एवं सफलता देखते हुए मुख्यमंत्री ने खुश होकर सिंहस्थ के दौरान ही मई माह में उज्जैन में यह ऐलान किया था कि सिंहस्थ में सभी विभागों के अधिकारियों और कर्मचरियों ने सेवा भावना के साथ काम किया हैं, इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन स्वरूप पांच हजार रूपये की राशि दी जाएगी। सामान्यतः यह होता हैं कि मुख्यमंत्री की घोषणा पर संबंधित विभाग प्रस्ताव बनाकर वित्त विभाग पहुंचाता हैं । वित्त विभाग आवश्यक धनराशि का प्रावधान करते हुए वित्तीय स्वीकृति देता हैं। इसके बाद संबंधित विभाग मुख्यमंत्री की घोषणा के इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए मंत्रि परिषद की बैठक में रखता हैं , जहां उसे स्वीकृति दी जाती हैं।  इसके बाद उसके क्रियान्वयन की शुरूआत होती  हैं। 
                   मुख्यमंत्री द्वारा मई 2016 में की गई घोषणा पर संबंधित नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा अत्यंत ही विलंब से प्रस्ताव बनाकर वित्त विभाग को भेजा गया। वित्त विभाग ने भी अपनी आदत के अनुसार मीन मेख निकालते हुए आधे अधुरे मन से स्वीकृति देने में काफी देरी कर दी। इस प्रक्रिया में ही करीब नौ माह लग गए। जब मुख्यमंत्री की घोषणा के यह हाल हैं तो सामान्य मंत्री की घोषणा के क्या हाल होंगे ? यह सहज ही अंदाज लगाया जा सकता हैं ! उल्लेखनीय हैं कि मुख्यमंत्री की इस घोषणा से प्रदेष के 54 विभागों के करीब 39 हजार अधिकारी एवं कर्मचारी लाभान्वित होने वाले हैं। इसमें उज्जैन जिले के करीब 4 हजार 500 अधिकारी व कर्मचारी भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री की घोशणा के कियान्वयन में इतना विलंब होने पर प्रदेश भर से आए और वापस अपनी अपनी जगह गए अधिकारी और कर्मचारी तरह तरह की बातें कर रह थें। उसमें एक बात समान थी कि मुख्यमंत्री ने फौरी घोषणा की है। 
                    यह सर्वज्ञात हैं कि लगातार तीन कार्यकाल से मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के मुखिया बने हुए हैं। लगातार लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड भी उन्होंने मध्यप्रदेश में बनाया हैं। करीब 12 साल से वें मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान है। अनेक बार ऐसे मौके आए हैं जब यह कहा गया हैं कि प्रदेश की नौकरशाही बेलगाम हैे । उनपे लगाम कसने की आवश्यकता है। संगठन स्तर पर भी इस संबंध में चर्चा की खबरें बाहर आती हैं। रिकार्ड समय तक लगातार मुख्यमंत्री के पद पर रहने वाले श्री शिवराज सिंह चौहान से सहज ही अपेक्षा की जाती हैं कि वे अब नौकरशाह पर नियंत्रण करना सीख गए होंगे। किंतु मुख्यमंत्री की सिंहस्थ की उक्त घोषणा के क्रियान्वयन में इतना विलंब दूसरी ही कहानी बयां कर रहा हैं ! मुख्यमंत्री को अब तो चाबुक उठाना ही चाहिए। अनेक बार उन्होंने प्रशासन में आ रही ठिलाई पर असंतोष प्रकट किया हैं। अनेक अवसरों पर मुख्यमंत्री ने नौकरशाहों को चेतायां भी हैं कि उनकी घोषणाओं को गंभीरता से लिया जाए। किंतु हो क्या रहा हैं ? बार बार चेतावनी देने , असंतोष प्रकट करने , नाराजगी व्यक्त करने के बावजूद नोकरशाहों ने अपना ढ़ीला रवैया छोडा नही है।
                   मुख्यमंत्री श्री चौहान ने एक बार फिर मंत्री परिषद की बैठक में उनकी घोषणाओं के तेजी से क्रियान्वयन हेतु मुख्य सचिव को चेताया हैं। उन्होंने यह भी कहा हैं कि मुख्यमंत्री की घोषणाओं के क्रियान्वयन में विलंब नहीं होना चाहिए। किंतु मुख्यमंत्री जी यही रूक गए हैं। प्रस्ताव बनाने में नगरीय प्रशासन विभाग और स्वीकृति देने में वित्त विभाग ने अत्यधिक देरी की है। इस पर मुख्यमंत्री द्वारा कोई कारवाई नहीं की गई। मुख्यमंत्री को चाहिए था कि वे दोनों विभागों के संबंधित उच्च अधिकारियों के विरूद्ध ठोस कारवाई करतें, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। और हमेशा की तरह कह दिया कि भविष्य मे ंऐसा नहीं हां, यह ध्यान रखा जाए। मुख्यमंत्री के ऐसे ही व्यवहार के कारण नौकरशाही बेलगाम हो गई है। अब तो मुख्यमंत्री को चेत जाना चाहिए। अब उन्हें चाबुक उठा ही लेना चाहिए। तभी आम जन में एक सख्त प्रशासक की छबि बनेगी। और मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणाओं के क्रियान्वयन में तेजी आएगी। यदि ऐसा नहीं होता है तो फिर नौकरशाही वैसा ही कार्य करेगी जैसी वह अभी तक करती आ रही हैं। 
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