महाविद्यालयों में फिर से नहीं होना चाहिए चुनाव , विद्या के मंच को राजनीति का मंच बनाने से बचना होगा
संदीप कुलश्रेष्ठ
पिछले दिनों मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री श्री जयभान सिंह पवैया ने घोषणा की कि अब प्रदेश के कॉलेजों में फिर से चुनाव होंगे। यहां यह उल्लेखनीय है कि स्कूल और कॉलेज विद्या के मंच हैं , जहाँ पर विद्यार्थियों को विद्या की सीख दी जाती हैं। विद्या का एक ही मंच है , वह हैं स्कूल और कॉलेज । किंतु राजनीति के अनेक मंच हैं, जहां से राजनीति सीखी और सीखाई जा सकती हैं। विद्या के मंच से राजनीति कभी सीखाई नहीं जानी चाहिए।
प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री श्री जयभाव सिंह पवैया ने जब से यह घोषणा की हैं कि प्रदेश के कॉलेजों में चुनाव होना चाहिए तब से महाविद्यालय के अंचलों में खुसफुसाहट जारी हैं । किंतु अभी तक उच्च शिक्षा मंत्री का यह खुलासा सामने नहीं आया हैं कि प्रदेश के कॉलेजों में चुनाव कब से कराए जाएंगे ? उच्च शिक्षा मंत्री ने इसकी तारीख का खुलासा अभी तक नहीं किया हैं। इसलिए अभी संषय में हैं कि मंत्री जी की घोषणा का क्रियान्वयन होगा या केवल यह उनकी निजी राय ही हैं। कई बार ऐसा होता हैं कि मंत्री अपनी व्यक्तिगत राय को किसी मंच से व्यक्त कर देते हैं किंतु उसके क्रियान्वयन की जब बात सामने आती हैं तो उससे किनारा भी कर लेते हैं। अभी इसका खुलासा होना बाकी हैं।
यह सर्व विदित हैं कि जब प्रदेश के महाविद्यालयों में चुनाव होते थे, उस समय वहां का वातावरण कैसा हो जाता था! गंभीरता से पढ़ने वाले छात्र चुनावों से कटकर रहना ही पसंद करते थे। विभिन्न राजनैतिक दल अपने-अपने दल की साख बचाने के लिए साम, दाम, दंड , भेद सब युक्ति अपनाते थे। उस समय कई दिनों तक महाविद्यालय परिसरों में भय और आतंक का माहौल हो जाया करता था। आए दिन छात्रों के बीच मारपीट, धौंस, हत्या जैसी बातें सामान्य सी बातें हो जाया करती थी। किंतु करीब दो दशक से प्रदेष के कॉलेजों में चुनाव बंद होने के कारण महाविद्यालय परिसरों में शांति व्याप्त हैं। अब महाविद्यालय केवल पढ़ने-पढ़ाने तक ही सीमित हैं, जो कि होना भी चाहिए।
जिस समय विश्वविद्यालयों में ये चुनाव होते थें, वहां अराजकता का माहौल हो जाया करता था। विभिन्न राजनैतिक दल अपने छात्र संघ अथवा छात्र संगठनों के माध्यम से अपना राज विश्वविद्यालयों में कायम करने के लिए सारी शक्ति लगा देते थे। उसके बाद विश्वविद्यालयों में अनुशासन नाम की चीज नहीं रहती थी। ये संगठन आए दिन हड़ताल, मोर्चा , घेराबंदी , जुलूस आदि निकालने में ही अपनी सारी शक्ति लगा देते थे। जिस उद्देश्य से विश्वविद्यालय का गठन हुआ हैं वह उद्देश्य गौण हो जाया करता था। जब से चुनाव पर प्रतिबंध लगा हैं, तब से विश्वविद्यालयों का माहौल शांत व अनुशासनात्मक दिखाई दे रहा हैं ।
उक्त परिप्रेक्ष्य में प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री श्री जयभान सिंह पवैया को अपनी की गई घोषणा के संबंध में थोड़ा विचार करने की आवश्यकता हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को भी चाहिए कि वे इस दिशा में गंभीरता पूर्वक ध्यान दें तथा विद्या के मंच को राजनीति का मंच बनने से रोके।