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ताज के काले पड़ने का दर्द



 -ललित गर्ग-

विश्व के सात अजूबों एवं आश्चर्य में शामिल प्रेम का प्रतीक ताजमहल दिनोंदिन काला पड़ता जा रहा है। भारत और अमेरिका के एक संयुक्त अनुसंधान दल ने हाल में अपनी एक रिपोर्ट में उजागर किया है कि यह विश्व धरोहर लगातार पीली पड़ती जा रही है। ताजमहल की उड़ती रंगत को लेकर यह अध्ययन नया नहीं है। लंबे समय से पर्यावरणविद और वैज्ञानिक इसे बचाने की चेतावनी देते रहे हैं। सरकारें समय-समय पर थोड़ा-बहुत इंतजाम भी करती रही हैं। लेकिन जिस पैमाने पर उपाय किए जाने चाहिए, नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि ताजमहल की खूबसूरती को लेकर खतरा बरकरार है, ताज का दागी बनना या उसका काला पड़ना एक बड़ी चिन्ता का सबब है। चिन्ता का विषय यह भी है कि हम ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी में लगातार नकारा साबित होते जा रहे है। अगर हम दुनिया की खूबसूरती में चार चांद नहीं लगा सकते तो इसे बदरंग बनाने का हमें क्या हक है?  
ताज के काले पड़ने की सबसे बड़ी वजह है इसके इर्द-गिर्द लगातार प्रदूषण का गहराना है। ठोस कूड़े और उपलों का उसके आसपास जलाया जाना है। इसके धुएं का गहरा असर ताजमहल पर पड़ता है। यमुना में लगातार प्रदूषण का बढ़ना और उसमें फैक्टरियों एवं औद्योगिक ईकाइयों का कूड़ा-करकट, दूषित रसायन एवं हानिकारक मलवा प्रवाहित करना है। जिससे ताज का अस्तित्व की खतरे में पड़ता जा रहा है। जार्जिया इंस्टीच्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी, मिनेसोटा विश्वविद्यालय और कानपुर आइआइटी से जुड़े अनुसंधानकर्ताओं के दल ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि आसपास ठोस कचरा और उपले जलाए जाने के कारण ताजमहल अपनी रंगत खोने लगा है। शोध में पाया गया कि ठोस कूड़ा जलाने के कारण वायु प्रदूषक (पार्टीकुलेट मैटर) नुकसानदेह स्तर पर पहुंच जाता है। उपले और ठोस कूड़े के धुएं की परत ताजमहल की दीवारों और छतों आदि पर चिपक जाती है, जो आखिरकार इस धरोहर के लिए खतरे की घंटी है। इसके लिये आगरा की जनता एवं पर्यटक नहीं, बल्कि आगरा का स्थानीय प्रशासन ज्यादा जिम्मेदार है। देश की सरकारें भी इसके लिये उत्तरदायी है।
अक्सर विभिन्न माध्यमों से सरकार एवं संबंधित विभागों को चेताया जाता रहा है कि ताज की सुरक्षा एवं रख-रखाव समुचित तरीके से नहीं किया गया तो यह दुनिया की बड़ी धरोहर अपने अस्तित्व एवं गौरव को खो देगी। ऐसी ही एक चेतावनी पिछले दिनों राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जारी की गयी थी। साथ में आगरा के नगर निकायों को निर्देश दिया था कि वे ताज के आसपास कूड़ा वगैरह न जलाएं। एक याचिकाकर्ता ने न्यायाधिकरण में याचिका दाखिल करके बताया था कि प्रतिदिन दो हजार मीट्रिक टन कूड़ा और उपला वगैरह ताज के आसपास जला दिया जाता है। इसके धुएं का असर ताज पर पड़ता है।
350 साल से भारत का नाम रोशन कर रहा ताजमहल प्रेम का ऐसा मंदिर-मस्जिद है जिसे हर कोई निहारना चाहता है। रोज 25 हजार लोग ताजमहल देखने आते हैं। पर्यटन से आगरा के लोगों और प्रशासन को अरबों रुपए की आय होती है। ताजमहल से हजारों परिवारों की रोजी-रोटी चलती है। भारत के लोग एवं दुनियाभर से आये पर्यटक ताज को देखते हंै। मैं भी ताजमहल कई बार देख चुका हूं। इस बार एक लम्बे अंतराल के बाद देखा। विश्व के इस ”आश्चर्य“ को आंखें आश्चर्य से देख रही थीं। ताज को देखकर सुखद आश्चर्य और रोमांच होना सहज है, लेकिन इस बार उसके पीले पड़ने का दर्द एवं उसकी अनुभूति दुखद अहसास का कारण बनी। इसके कारण मेरे ही नहीं, अनेक चेहरों पर चिन्ता की रेखाएं थीं।
भारत के मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज के मरने के बाद उसकी याद में यह संगमरमर का मकबरा बनवाया। इस इमारत का निर्माण सदा से प्रशंसा एवं विस्मय का विषय रहा है। इसने धर्म, संस्कृति एवं भूगोल की सीमाओं को पार कर के लोगों के दिलों से वैयक्तिक एवं भावनात्मक प्रतिक्रिया कराई है, जो कि अनेक विद्वानों एवं शोधार्थियों द्वारा किए गए मूल्यांकनों से ज्ञात होता है।
ताज एक इमारत ही नहीं है, एक यादगार ही नहीं है, हमारी सभ्यता है, संस्कृति है, कला है, पे्रम है, इतिहास है और आश्चर्य है। यह तो ताज है जो शताब्दियों से लड़ रहा है काल के प्रभाव से, सरकार की लापरवाही से। पर कबीर तो नहीं, जो अपनी चादर को उतार कर ज्यों की त्यों रख दे। इसे तो एक दिन जर्जर होना ही है, पर वक्त पहले और लापरवाही से इसका जर्जर होना घोर चिन्ता का विषय है। पीसा की मीनार झुक रही है, मिश्र के पिरामिड टूट रहे हैं, चीन की दीवार की हालत भी खस्ता है। ये सब स्वाभाविक प्रक्रियाएं है। लेकिन ताज के साथ जो हो रहा है, वह हमारे गैर-जिम्मेदाराना रवैये का प्रकटीकरण है।
ताज को बचाने के लिए प्रदूषण फैलाने वाले सैकड़ों उद्योगों को हटाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने बहुत पहले भी फैसला दिया है। सरकार भी 50 किलो मीटर तक प्रदूषण रहित परिधि बना रही है ताकि ताज को सुरक्षित रखा जा सके। भारत के तमाम शहरों में कई धरोहरें हैं जो इसी तरह लापरवाही का शिकार होकर दम तोड़ रही हैं। जिन लोगों की गुजर-बसर ऐसी धरोहरों से हो रही हैं, वे भी इसे बचाने के प्रति गंभीर नजर नहीं आते। ताजमहल को लेकर शोध की रिपोर्ट पहली बार सामने नहीं आई है। कई एजेंसियां ताजमहल के पीले पडने की हकीकत पहले भी जता चुकी हैं, फिर भी सुध लेने वाला कोई नजर क्यों नहीं आ रहा?
आगरा में ताजमहल, दिल्ली में लाल किला, जयपुर में हवामहल और किले, उदयपुर में झीलें, भोपाल में बड़ा तालाब और हैदराबाद में चारमीनार नहीं रहे तो वहां कौन पर्यटक आना चाहेगा? हमारी नदियां मैली हो रही हैं, हिमालय गन्दा हो रहा है और प्रदूषण गौमुख तक पहुंच गया है। मैट्रो व मल्टीस्टोरी बिल्डिंगें तो विदेशों में हमसे अच्छी हैं। सरकारों व जनता को विचार करना चाहिए कि अगर हम कुछ जोड़ नहीं सकते तो हमें तोडने का भी हक नहीं रह जाता। हम कुछ नया नहीं बना सकते हैं, पुरानी ऐतिहासिक एवं स्थापत्य कला को उजाड़ने का हमें क्या हक है? ये पंक्तियां चिल्ला-चिल्लाकर बहुत कुछ कह रही हैं। क्या हमें किसी चाणक्य के पैदा होने का इन्तजार करना पड़ेगा, जो प्रदूषण की जड़ों में मट्ठा डाल सके?
हवा के प्रदूषण से, विचारों के प्रदूषण से, दिल और दिमाग के प्रदूषण से ठीक उसी प्रकार लड़ना होगा जैसे एक नन्हा-सा दीपक गहन अंधेरे से लड़ता है। छोटी औकात, पर अंधेरे को पास नहीं आने देता। क्षण-क्षण अग्नि परीक्षा देता है। पर हां! अग्नि परीक्षा से कोई अपने शरीर पर घास-फूस लपेट कर नहीं निकल सकता।
इन दिनों नये अनुसंधान के अलावा समाचार-पत्रों में भी बहुत चर्चा रही कि आसपास के प्रदूषण के कारण ताज दिन-प्रतिदिन काला पड़ रहा है। इनके पत्थरों पर समय का प्रभाव दिखने लगा है। यह सुरक्षा व सम्भाल मांग रहा है। हम दुनिया को दिखाने के लिए और पर्यटन की दुकान चलाने के लिए इस एकमात्र साधन को बचाने में भी नाकाम साबित हो रहे हैं। जाहिर है, हल्की-फुल्की कोशिश कामयाब नहीं होगी। एक ठोस, मुकम्मल और दीर्घगामी योजना की दरकार है। ध्यान रखना होगा कि यह भारत की स्थापत्य कला का एक बेमिसाल नमूना है, साथ ही यहां आने वाले दुनिया भर के सैलानियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण भी। प्रेषक:

 

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