पधारे गुरूवर, छाया उल्लास घर-घर
दीक्षा के 30 साल बाद युवा जैन मुनि व साध्वी मंडल का भव्य चातुर्मासिक
प्रवेश, सजे धजे परिधान में निकले महिला मंडल
उज्जैन। बड़नगर मूल के रहने वाले युवा जैन मुनि गणिवर्य रत्नकीर्ति विजयजी
म.सा. का दीक्षा के 30 साल बाद पहली बार शुक्रवार सुबह 9 बजे उज्जैन में
चातुर्मास के लिए भव्य मंगल प्रवेश हुआ। पन्यास प्रवर विमलकीर्ति म.सा.
की निश्रा में दौलतगंज स्थित कांच के जैन मंदिर से प्रवेश जुलूस प्रारंभ
हुआ। जिसमें बैंड बाजे, जिन शासन ध्वज व सजे धजे परिधानों में महिला मंडल
शामिल रहे। इंदौरगेट, कंठाल, सतीगेट, छोटा सर्राफा होते हुए जुलूस श्री
ऋषभदेव छगनीराम पेढ़ी मंदिर पर धर्मसभा में परिवर्तित हुआ।
युवा मुनि रत्नकीर्ति विजयजी ने कहा कि चातुर्मास आत्म कल्याण व पापों के
क्षय का मार्ग है। धर्म दिखावे से नहीं दिल से होता है। जो लोग अंतरात्मा
से आराधनाओं में लीन रहते हैं वही महान बन पाते हैं। मीडिया प्रभारी अभय
जैन भैय्या एवं राहुल कटारिया ने बताया कि महापौर मीना जोनवाल, पार्षद
शैलेन्द्र यादव ने भी मुनिश्री की अगवानी की। जुलूस में नवरत्न महिला
मंडल, मनोहर इंदु महिला मंडल, संभवनाथ जैन महिला मंडल, शंखेश्वर
पाश्र्वनाथ महिला मंडल की सदस्याएं शामिल रहीं। बड़नगर, इंदौर, रतलाम,
बदनावर सहित अन्य शहरों के गुरूभक्त भी जुलूस में पधारे। जुलूस में
ट्रस्ट मंडल अध्यक्ष महेन्द्र सिरोलिया, सचिव जयंतीलाल तेलवाला, संजय जैन
ज्वेलर्स, गौतमचंद धींग, प्रकाश नाहर, संतोष धींग, प्रकाश पावेचा,
बाबूलाल बिजलीवाला, दिलीप सिरोलिया, संजय जैन खलीवाला, अभय मेहता,
चंद्रप्रकाश जैन, नरेन्द्र तरसिंग, महेन्द्र नाहर, सुशील जैन, राजेन्द्र
सिरोलिया, विजय जैन बंटी, सुरेश मिर्चीवाला सहित बड़ी संख्या में समाजजन
शामिल रहे। धर्मसभा का संचालन चातुर्मास समिति संयोजक अशोक भंडारी व
सहसंयोजक प्रमोद जैन ने किया।
प्रतिदिन होंगे प्रवचन
खाराकुआ पेढ़ी मंदिर पर मुनिश्री के प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 बजे तक
हरिभद्रसूरि महाराजा द्वारा रचित समरादित्य कथा आधारित सारगर्भित प्रवचन
होंगे। गुरूपूर्णिमा पर गुरू गौतम स्वामीजी का विशिष्ट महापूजन होगा।
8 साध्वी मंडल का भी हुआ आगमन
सागर समुदाय की समगुणाश्रीजी म.सा. की शिष्या साध्वी विजेताश्रीजी,
साध्वी दिव्यनंदिताश्रीजी, राजनंदाश्रीजी, अभिनंदिताश्रीजी,
दर्शननिधिश्रीजी, संवेगनंदिताश्रीजी, विरागनंदिताश्रीजी, देवनिधिश्रीजी
म.सा. का भी चातुर्मासिक प्रवेश हुआ।