इंसान को नश्वरता से अनश्वरता की ओर लेकर जाते है गुरु
भक्तों को प्रकाश की ओर ले जाते हैं गुरु
गुरु के स्मरण मात्रा से ही दुख, क्लेश व डर सभी मुश्किलें खत्म हो जाती हैं
‘हनुमानजी ने पार की सभी बाधएं’
पूर्ण सत्गुरु ही हमें वास्तविक सुख प्रदान करते हैं
आत्मा के उत्थान के लिए पूर्ण सत्गुरु ही जीव को मागदर्शन दिखाते है
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिव्य धम आश्रम, दिल्ली में मासिक भंडारे का आयोजन किया गया।जिसमें श्रीआशुतोष महाराजजी के शिष्य एवं शिष्याओं ने आए हुए भक्तों के समक्ष आध्यात्मिक विचार रखें।साध्वीजीने कहाकि एक गुरु ही है, जो एक भक्त के जीवन में अंध्कार न देखते हुए उसे प्रकाश की ओर अग्रसर करता है।उसकीमंद बुद्धि कोसमाप्तकरउसे सद्बुद्धि प्रदान करने वाला एक गुरु ही है। ऐसेगुरु के स्मरणमात्रा से ही दुख, दरिद्र, क्लेश व डर इत्यादि सभी मुश्किलें खत्महोजातीहैं, लेकिन आज संसार में हम देखें कि आपको सभी परमात्मा के भक्त ही दिखाई देगें लेकिन सोचने वाली बात यह है कि उनके जीवन में जो होना चाहि वह नहीं है, और जो नहीं होना चाहिए, वह उनके जीवन मेंहै।
कहने का तात्पर्य यह है कि इंसान प्रभु की भक्ति तो कर रहा है पर उस भक्ति के रास्ते परचलनहींरहाहै।जिस पर चलकर उस जगत के पालक के दीदार हो सकें और उसके जीवन में परिवर्तन आ सके । क्योंकि आज के इंसान ने परमात्मा को केवल मात्रा मानने तक ही सीमित कर रखाहै, लेकिन प्रभु प्रकाश रूप में इस संसार में रमण करते हैं। उस प्रकाश रूप को इन बाहरी नेत्रों के द्वारा नहीं देखा जा सकता।इंसान को मानने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए।उसे कण-कण में विचरण करने वाले प्रभु को अपने घट मेंप्रकाश रूपमें देखने के लिए भी अग्रसर होना होगा।
इस मासिक आध्यात्मिक समागम पर साध्वीजी ने श्रीरामचरितमानस का उदाहरण लेते हुए समझाया कि जैसे एक नदी अपनी सारी बाधओंको पार करती हुई आगे निकल जाती है। ऐसी ही बाधओं को पार किया भक्त हनुमानजी ने।जब वह श्रीरामजी की आज्ञानुसारअंगद, जामवंत, नल व नील को साथ लेकर माता सीता की खोज में लंका की ओर प्रस्थान करते हैं। उनके मार्ग में अगर कोई राक्षस आता तो उसे मार गिराते।अगर उनके मार्ग में कोई मुनि आता तो उन्हें घेरकरउन से माता सीता का पता पूछने लगते और कहते कि उन तक कैसे पहुंचा जाए? निस्संदेह आत्मा के उत्थान के लिए जब एक जीव निकलताहै तब उसे दुष्प्रवृत्तियों रूपी राक्षस को मार गिराना चाहिए और जब कोई संत मिले तो उनसे आगे का मागदर्शन ले लेना चाहिए।लेकिन जो भक्ति की डगरहै, वह बड़ी विचित्रा है । इस डगर पर जब कोई भक्त अपने पुरूषार्थ के बल चलता है तो वह उस शक्ति का अनुभव नहीं कर पाता जो शक्ति उसेचलारहीहै।जब कोई भक्त इस डगर पर उस गुरु रूपी शक्ति को समर्पित होकर चलता है तो उसे हर पल यह अहसास होता रहता है कि उसके गुरु के दिव्य हस्त कमल सदैव ही उस के सर पर छाया की तरह है और उसका मार्गदर्शन कर रहे हैं।