वैचारिक सम्मेलन प्राचीन परम्परा को पुनर्जीवित करने वाला संवाद कुंभ
भोपाल। जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने इंदौर में 'मानव-कल्याण के लिये धर्म' वैचारिक समागम को संबोधित करते हुए कुंभ की प्रारंभिक परम्परा को पुनर्जीवित करने के लिये मध्यप्रदेश शासन और मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान की सराहना की। उन्होंने आयोजन को संवाद का कुंभ निरूपित किया। उन्होंने धर्म का विवेचन करते हुए कहा कि जो हमें अच्छा नहीं लगता वह दूसरों के साथ नहीं करें, वही धर्म है। हम समर्थन भले नहीं करें पर दूसरों को सुनने की क्षमता, आदर देने की आदत होना चाहिये। स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि जब वाद के साथ विवाद जुड़ता है तो वह संघर्ष को जन्म देता है। उन्होंने कहा कि धरती को आध्यात्म ही बचा सकता है। स्वामीजी का कहना था कि धर्म, दर्शन की विविधता भारत का सौंदर्य है। भारत की धरती में इस अनेकता का आदर होता आया है। भारत की संस्कृति सभी को अपनी बात कहने, मान्यताओं को मानने का अवसर देती है। भारत की संस्कृति पूरे संसार को कुटुंब मानती है। हम सभी के सुख की बात करते हैं। किसी एक के सुख की नहीं। उन्होंने कहा कि पश्चिम का प्रच्छन्न भोगवाद, आतंकवाद, माओवाद, नक्सलवाद, हिंसा आदि से बड़ी समस्या है। इस उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमें ग्राहक, उपभोगी बना दिया है। इसलिये सजग रहने की जरूरत है। महामण्डलेश्वर ने विश्वास व्यक्त किया कि राज्य शासन की ऐसी ही पहल प्रयाग, हरिद्वार, त्रयम्बकेश्वर (नासिक) में भी प्रारंभ होना चाहिए। मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि समग्र कल्याण के लिये आर्थिक सम्पन्नता एवं भौतिक विकास के साथ-साथ आत्मिक सुख भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद पिछले सात वर्षों से लगातार डबल डिजिट में है पर इसका लाभ तभी है जब अंतिम छोर के व्यक्ति को भी इसका फायदा मिले। दौलत, सम्पत्ति और भौतिक सुख-सुविधाओं की अपनी सीमाएँ हैं। उन्होंने कहा कि लोगों के जीवन में शांति, प्रेम, स्नेह, आनंद और आत्मिक सुख बढ़े, यह हमारा प्रयास है। व्यक्ति आज के युग में शांति की तलाश में इधर-उधर भटक रहा है। व्यक्तियों के जीवन में शांति, प्रेम और आत्मिक सुख की बढ़ोत्री कैसे हो इसके लिये भी राज्य शासन द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं। हमारा प्रयास है कि लोगों का यह लोक तो सुधरे ही बल्कि उनका परलोक भी सुधरे। श्री चौहान ने बताया कि अगले वर्ष सिंहस्थ महापर्व के दौरान 12 से 14 मई तक उज्जैन में इसी तरह का एक और आध्यात्मिक विचार-मंथन महाकुंभ किया जायेगा। इन वैचारिक महासम्मेलनों में धर्माचार्यों तथा विद्वतजन के विचार-मंथन से प्राप्त अमृत को सिंहस्थ घोषणा-पत्र के रूप में जारी किया जायेगा। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश में भारत की ऋषि एवं संत परम्परा को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। हमारे वेदों ने भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को शिक्षा दी है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका में सीता माता का मंदिर बनाया जा रहा है। इसके लिये राज्य शासन द्वारा एक करोड़ रूपये खर्च किये जायेंगे। केन्द्रीय तिब्बती विश्वविद्यालय वाराणसी के पूर्व कुलपति पदमश्री प्रो. गेशे सेमटेन ने कहा कि विश्व के सभी धर्मों का सार जीव-जन्तु के प्रति दया अभिव्यक्त करना है। सभी धर्म कर्मकाण्ड की विविधता के बावजूद भी मानव-कल्याण में विश्वास करते हैं। दुनिया में विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय, रंग के लोग रहते हैं, मगर उनके रक्त का रंग एक जैसा लाल है। विश्व के सभी धर्म अनुशासन, नैतिकता और बुद्धिमता का उपदेश देते हैं। सभी धर्म समानता और बंधुत्व की शिक्षा देते हैं। बौद्ध धर्म में कर्मकाण्ड, व्यवहार, साधना और दर्शन को महत्व दिया गया है। इन चारों का उद्देश्य मनुष्य के भीतर गुणवत्ता का विकास करना है। सभी धर्म युद्ध के बजाय शांति का उपदेश देते हैं तथा परस्पर भाईचारे में विश्वास करते हैं। अमेरिकी वैदिक शिक्षण संस्थान के निदेशक पदमश्री वेदाचार्य डेविड फ्रालो ने कहा कि सभी धर्मों की शिक्षा, शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में शामिल होना चाहिए। वैदिक दर्शन सबसे प्राचीन होते हुए भी आज भी प्रासंगिक है। मानव कल्याण के लिए धर्म का अनु सरण जरूरी है। सभी धर्म शरीर और आत्मा के उन्नयन में विश्वास करते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म एक साधना है और जागृति का मार्ग है। धर्म विश्वव्यापी है, उसे राज्य की सीमाओं में बाँधा नहीं जा सकता। न्यू एज इस्लाम दिल्ली के संस्थापक संपादक श्री सुल्तान शाहीन ने कहा कि इस्लाम धर्म, सामाजिक समानता और विश्व शांति में विश्वास करता है। विश्व में विवाद का मुख्य कारण धर्म के प्रति संकीर्ण मनोवृत्ति है। विश्व के अधिकांश मुसलमान हिंसा में विश्वास नहीं करते हैं। कुरान का निचोड़ मानवता की सेवा करना है। कुरान, मानव-कल्याण, सत्य के प्रकाश और धैर्य में विश्वास करता है। सूफी संतों ने भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये काम किया। पैगम्बर मोहम्मद साहेब के उपदेशों में प्रेम, शांति और भाईचारे की बात कही गई है। सभी धर्मों की अच्छाइयों को संकलित कर बादशाह अकबर ने दिन-ए-ईलाही धर्म का प्रादुर्भाव दिया। उन्होंने कहा कि इस्लाम अनुयायियों को एक ईश्वर में विश्वास करने का उपदेश देता है। कुरान आत्म-प्रकाश और बुद्धिमता पर विशेष जोर देता है। हिन्दू धर्म दुनिया का प्राचीनतम धर्म है। हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म और इस्लाम धर्म, मनुष्य को पूर्ण मनुष्य बनने का उपदेश देते हैं। सभी धर्मों का मानना है कि बुरे कार्य का बुरा नतीजा होता है। श्रीलंका सरकार के महानगर एवं शहरी विकास मंत्री श्री पताली चम्पिका रानावाका ने कहा कि आध्यात्मिक प्रगति के बिना भौतिक प्रगति अधूरी है। मनुष्य को मात्र भौतिक प्रगति से आत्मिक शांति नहीं मिल सकती। सभी धर्मों का उद्देश्य मानवता का कल्याण करना है। गौतम बुद्ध ने अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर दुनिया की सारी समस्याओं का अष्टांगिक मार्ग के जरिये समाधान दर्शाया। हिन्दू और बौद्ध धर्म भोग के बजाय त्याग और तपस्या पर जोर देते हैं। भारत से ही बौद्ध धर्म, चीन, जापान, श्रीलंका आदि देशों में प्रसारित हुआ और अहिंसा प्रेम और शांति का उपदेश देकर मानवता की सेवा की।