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मंदिर प्रबंध समिति को भनक तक नहीं लगी


महाकाल मंदिर की निमनवासा में दान की गई 45 बीघा जमीन उज्जैन विकास प्राधिकरण (यूडीए) की टीडीएस-4 स्कीम में चली गई। यह अधिग्रहण महाकालेश्वर मंदिर अधिनियम की धारा-12 की उपधारा-2 का उल्लंघन है, जिसके तहत मंदिर की अचल संपत्ति को आयुक्त की पूर्व मंजूरी के बिना बेचा, गिरवी रखा या हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।

इस प्रक्रिया को इस तरह अंजाम दिया गया कि मंदिर प्रबंध समिति को भनक तक नहीं लगी। उस समय मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष आशीष सिंह (तत्कालीन कलेक्टर), गणेश धाकड़ (तत्कालीन प्रशासक) और सदस्य राजेंद्र शर्मा, राम पुजारी व प्रदीप गुरु थे। इन सभी का कहना है कि उन्हें जमीन के यूडीए की स्कीम में आने की कोई जानकारी नहीं थी।

भास्कर पड़ताल में सामने आया कि 9 सितंबर 2022 को यूडीए ने नगर एवं ग्राम निवेश अधिनियम की धारा-50 (2) के तहत टीडीएस-4 की सूचना प्रकाशित की थी। इसमें महाकाल मंदिर की 45 बीघा जमीन भी शामिल थी। उस वक्त यूडीए के कार्यकारी सीईओ आशीष पाठक और उज्जैन संभाग के आयुक्त संदीप यादव (यूडीए अध्यक्ष) थे। अब इनका कहना है कि यूडीए की तरफ से सब नियम से हुआ होगा, लेकिन मंदिर प्रबंधन की क्या भूमिका रही, यह याद नहीं।

कलेक्टर ने मंदिर की जमीन को अधिग्रहण से मुक्त करने के लिए यूडीए को पत्र भेजा

खुद को खुद दी मंजूरी... यूडीए सीईओ और मंदिर प्रशासक दोनों के रूप में एक ही अफसर के साइन

6 दिसंबर 2023 को महाकाल मंदिर के नाम से यूडीए का अनुमोदन पत्र भेजा गया था। इस पर यूडीए सीईओ और मंदिर प्रशासक दोनों के रूप में संदीप कुमार सोनी के साइन हैं। यानी उन्होंने खुद को ही मंजूरी दी! सोनी का कहना है कि वह दोनों पदों पर थे, इसलिए यह स्वाभाविक है। उन्होंने मंदिर प्रबंध समिति को इस अनुमोदन की जानकारी क्यों नहीं दी?

मामला सामने आने पर कलेक्टर नीरज सिंह ने यूडीए को पत्र भेजकर जमीन अधिग्रहण मुक्त करने के निर्देश दिए। कलेक्टर ने कहा- हमने यूडीए के बोर्ड को पत्र भेजा है कि मंदिर की जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जाए।
भास्कर जांच में पता चला कि 14 दिसंबर 2024 को मंदिर प्रबंधन ने जमीन की तार फेंसिंग के लिए भी कलेक्टर को नोटशीट भेजी थी। सवाल यह है कि अगर यूडीए ने इस जमीन का अधिग्रहण कर लिया, तो मंदिर प्रबंधन फेंसिंग क्यों करवा रहा है?
उठ रहे ये सवाल

करीब 1 साल 4 माह लगे टीडीएस-4 फाइनल होने में। इस दौरान किसी को कैसे पता नहीं चला कि मंदिर की जमीन अधिगृहीत हो गई? आखिर जिम्मेदार अफसर क्या कर रहे थे? ​
अब जिम्मेदार जमीन वापस ले लेंगे तो क्या दोषियों पर कार्रवाई करेंगे?

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