सरकारी लघु चित्रकला शैली शिक्षण संस्थान बनाया जाये-पद्मश्री विजय शर्मा
रिर्पोताज
सरकारी लघु चित्रकला शैली शिक्षण संस्थान बनाया जाये-पद्मश्री विजय शर्मा
कला-ग्राम लघु चित्रकला शिविर में 14 कलाकारों ने रागमाला विषयक 28 सुन्दर पेन्टिंग बनाई
( चंडीगढ़ से सुभाष अरोड़ा द्वारा प्रेषित)
'पंडोल्स' मुम्बई,कला नीलामी घर द्वारा दिसंबर 2024 में कांगड़ा शैली के महान चित्रकार नैनसुख द्वारा 1750 ई० में बनाई राजा बलवन्त देव की संगीत सभा की मिनिएचर पेंटिंग और उसी कला परिवार के एक अज्ञात सदस्य की 1755 ई० की भगवान् कृष्ण संग रास रचाती गोपियों वाली मिनिएचर पेंटिंग का 31 करोड़ में बिकने ने समूचे कला जगत को हैरानी में डाल दिया है। यह दोनों मिनिएचर पेंटिंग एन० सी० मेहता आईसीएस जो वर्ष 1950 में हिमाचल प्रदेश के आयुक्त तैनात थे, के निजी संग्रह का हिस्सा थीं। कांगड़ा शैली के समकालीन ख्यातिलब्ध कला गुरु पद्मश्री विजय शर्मा ने यहाँ कला ग्राम मनीमाजरा चंडीगढ़ में वार्तालाप दौरान इस पर सहजतापूर्वक प्रश्न उठाया कि " नीलामी में प्राप्त यह राशि कला का मूल्य है या फिर उसकी प्राचीनता का , बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह धन किसे प्राप्त हुआ , क्या इसका आंशिक लाभ भी कलाकार तक पहुंचेगा ? यह सचमुच विचारणीय है कि समाज और सरकार कला मूल्यांकन के लिए कलाकार के फौत होने की
प्रतीक्षा करे या फिर उसकी कलाकृतियों के कालातीत और कालजयी होने की ।
श्री शर्मा यहां संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 1 जनवरी से 12 जनवरी तक आयोजित लघु चित्रकला शिविर में पधारे थे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारी कांगड़ा शैली जो आज विशिष्ट पहचान पा चुकी है और सम्मानजनक ज्योग्राफिक इंडिकेशन अर्थात जी.आई. टैग भी हासिल कर चुकी है, परंतु इसकी नियमित शिक्षा देने वाला देश में अब तक कोई प्रतिष्ठित संस्थान नहीं स्थापित हो सका है। उन्होंने केंद्र सरकार से अपेक्षा की कि हमारे देश में लघु चित्रकला पर केंद्रित फाइन आर्ट का बड़ा संस्थान अवश्य स्थापित किया जावे। उल्लेखनीय है कि श्री शर्मा यूं तो सैकड़ों लोगों को इस दिशा में सिखलाई दे चुके हैं तथा वर्तमान में उनके तीस शिष्य पूरी सक्रियता से परंपरागत कांगड़ा शैली में कलाक्रम कर रहे हैं। इस शिविर में उनके कुछ शिष्य भी शामिल थे , जिनमें से एक मेरा मित्र अंशु मोहन
राजा मान सिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर का शोध छात्र भी शामिल था।
कलाग्राम- मनीमाजरा, चंडीगढ़ में आयोजित इस बारह दिवसीय लघु चित्रकला शिविर में पदमश्री कला गुरु विजय शर्मा सहित हिमाचल के आठ और राजस्थान छः, कुल 14 कला सिद्ध आर्टिस्ट शामिल थे। इन कलाकारों ने रागमाला पर 28 लघु चित्र तैयार किये , जो एक से बढ़कर एक हैं। मैं इस शिविर दौरान चार बार वहां गया और उनके बीच रहकर उन्हें काम करते देखा जो सचमुच सुखद अनुभव था। सभी निष्णात् कलाकार एक टीम की तरह काम कर रहे थे और ऐसे में मृदु भाषी कला गुरु पद्मश्री विजय शर्मा की मार्गदर्शी भूमिका सधे हुए कप्तान सरीखी प्रतीत हुई । कलाकारों का ऐसा सानिध्य मेरे लिये अविस्मरणीय है। रागमाला पर प्रकाश डालते हुए पद्मश्री कला गुरु श्री विजय शर्मा ने बताया कि राग-रागिनियों एवं उनके ध्यान चित्रों का अंकन, उनकी प्रकृति, गायन काल, ऋतु और ध्वनिमेल के मान्य नियमों के अनुरूप किया जाता है। संगीत की अमूर्त ध्वनि की विषय वस्तु को रंग-रेखाओं द्वारा कागज पर उतारना बेहद परिश्रम साध्य है , जो पूरे विश्व में सिर्फ भारत देश की लघु चित्र शैली में देखने को मिलता है । अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि कांगड़ा शैली की लघु चित्रकला में रागमाला विषयक कई श्रृंखलाओं का चित्रांकन हुआ है। संगीताचार्य क्षेमकर्ण ने छह मुख्य रागों-भैरव, मालकौंस, हिण्डोल,दीपक, मेघ और श्री को स्वीकार किया है। श्री राग की छह और सभी रागों की पांच भार्या रागनियां और आठ राग पुत्र हैं। इस प्रकार रागमाला परिवार के कुल सदस्यों की संख्या 86 है। क्षेमकर्ण द्वारा निर्देशित ध्यान-स्वरूपानुसार कांगड़ा चितेरों ने अपनी ऊर्वर कल्पना से राग- रागिनियो के अति सुंदर चित्र बनाए। कांगड़ा शैली की एक प्रसिद्ध चित्रावली राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में भी संग्रहित है।
शिविर दौरान कला साधना रत रहते हुए भी वह लघु चित्रों की शैलियों पर बीच-बीच में चर्चा करते रहे। उन्होंने राजपूत शैली, मुगल चित्र शैली और तात्कालीन परिस्थितियों का जिक्र करते हुए बताया कि औरंगजेब के गद्दीनशीन होने के बाद पहाड़ चढ़े कलाकारों की कला ने गुलेर से जो उड़ान भरी वह कांगड़ा पहुंचते पहुंचते परिपक्व कलारूप अख्तियार कर गई। साहित्य, संगीत, और कला के इस गहरे रिश्ते में संरक्षण के तड़के ने निखार ला दिया।
"कांगड़ा चित्रकला की विषय वस्तु "शीर्षक से हिमाचल प्रदेश की भाषा एवं संस्कृति विभाग की पत्रिका "विपाषा" के अगस्त 2024 के साहित्य कला-संस्कृति संचयन विशेषांक में कलागुरू पद्मश्री श्री विजय शर्मा लिखते हैं कि कलापोषक नृपतियों एवं राज्याश्रित चितेरों के संयोग के परिणाम स्वरूप कांगड़ा चित्र कला के अनुपम चित्रों का सृजन संभव हो पाया ,जिससे चित्रकार और उनके कला संरक्षक दोनों ही चित्रकला के इतिहास में अमर हो गए।
दरअसल रीतिकालीन कवियों ने नायिका भेद एवं नायिकाओं के नख शिख वर्णन वाली श्रेष्ठ काव्य रचनाएं लिखी कांगड़ा कलम के चित्रकारों ने भी कवियों के शब्दों को रूपाकार करते हुए एक से बढ़कर एक सुंदर चित्रों का सृजन किया । निश्चय ही रीतिकालीन काव्यों पर आधारित कांगड़ा कलम के इन चित्रों में अनिर्वचनीय सौंदर्य प्रकट हुआ, जिसमें श्रृंगार रस का जीवंत प्रस्फुटन चित्र दर्शक के सम्मुख एक आलोकित प्रभावोत्पादक वातावरण की सृष्टि करता है।
कलागुरू पद्मश्री श्री विजय शर्मा ने बताया कि कांगड़ा शैली में रेखाओं और रंगों का संयोजन इसे बेजोड़ बना देता है। कालजयी भारतीय चिंतनधारा और सौंदर्य दर्शन की सजीव परंपरा का भी निर्वहन होता है,जिससे मानवीय भावनाओं की सम्मानपूर्वक संतुलित प्रस्तुति रहती है। पूरे भारतीय समाज में ऐसे चित्रांकन की व्यापक स्वीकार्यता ने इस शैली को आज भी जीवित रखा है।चित्रकला शिविर में शामिल कलाकारों द्वारा रागमाला अंतर्गत तैयार किए गए लघु चित्रों का विवरण :-
1कला गुरु पद्मश्री विजय शर्मा द्वारा:-
१.राग नट नारायण( चित्र में विष्णु और शिव के विग्रह का संयुक्त रूपाकार दृष्टव्य है)
२.रागनी देव गंधारी( शिवलिंग अर्चना रत राजसी भद्र महिला, पीछे पूजन सामग्री, पुष्प आदि लिए अनुचरी दृष्टव्य)।
2.अंशु मोहन द्वारा
१.रागनी गंधारी( चित्र में उदास एंव गम्भीर दो भद्राणियां, हवा में बवंडर, प्रकृति में विक्षोभ दृष्टव्य) २. रागनी कच्छेली( चित्र में दो मेंढ़ों की लड़ाई से ध्वनि तुलनात्मक अभिव्यंजना/क्षेमकर्ण रचित रागमाला से)
3.भुवनेश्वर कुमार द्वारा:-
१.राग भैरव( चित्र में नंदी वृषभ आरूढ़ शिव)
२. राग दीपक( चित्र में गजराज पर सवार राज पुरूष दीपक थामे, पीछे चवंर डुलाता अनुचर)
4. भूपेंद्र शर्मा द्वारा:-
१. रागनी गुणकली( चित्र में सूर्योदय के समय पूजा रत नायिका) २.रागनी भैरवी(वृषभ से तुलना, क्षेमकर्ण रचित रागमाला)
5. अरविंद कुमार द्वारा:-
१. रागनी गूजरी( वीणा बजाती नायिका, ध्वनि आकर्षित मृग द्वय)
२. रागनी तोड़ी( चरखा कातती नायिका, अग्र भाग में वृद्धा दृष्टव्य। चरखे की ध्वनि से तुलना)
6.परीक्षित शर्मा द्वारा:-
१.रागश्री( श्वेत वर्ण राजा अंकुश से श्वेत गज शावक साधते हुए)
२.रागनी मधु माधवी( घनघोर घटा में तड़ित की चमकार एवं गूंज से सहमी नायिका का कक्ष में प्रवेश)
7.मुकेश कुमार धीमान द्वारा:-
१.राग बसंत( महिलाओं सहित नृत्य रत नायक, ऋतु आनंद सूचक वातावरण दृष्टव्य)
२.राग सिंदूरी( नदी में स्नान करती स्त्रियों, नदी की गतिशील जलधारा का प्रभाव भी दृष्टव्य)
8.दीपक भंडारी द्वारा:-
१. राग मालकौंस ( नायक राजसी पुरुष कमल दल विराजे, परिचारिका सेवारत)
२.रागनी कामोदी( अंगड़ाई लेते हुए जवान नायिका सखी और परिचारिकाओं के साथ)
9.जय शंकर शर्मा द्वारा:-
१.रागनी सोरठी(वर्षाकाल की रागनी है। ध्वनि मेल की दृष्टि से मयूर सम तुलना की गई है। खिले कमल आसन पर विराजमान रागिनी से आकर्षित मयूर का जोड़ा आकर्षित दृष्टव्य)
२. रागनी अहीरी (अहीर राग प्रातःकाल में गाया जाता है। संगीताचार्य ने इस राग की तुलना सर्प से की है। चित्र में नायिका धवल सर्प को दुग्ध पान कराती दृष्टव्य है)
10.मंदीप शर्मा द्वारा:-
१.रागनी मल्लारी ( मेघ राग की भार्या है।चित्र में वर्षा ऋतु के घने बादल , बिजली की चमक और ऐसे परिवेश में नायिका और उसकी परिचारिकाएं संगीत में तल्लीन दृष्टव्य हैं)
२.राग मेघ ( राग मेघ की अभिव्यक्ति में श्याम वर्ण कृष्ण को शंख ध्वनि से मेघों को आमंत्रित करते दर्शाया गया है। वृक्ष पर बैठा मोर सावन की घटा से आनंदित है तथा देव आकृति के समीप दो महिलाएं भी दृष्टिगोचर हैं।)
11.राजेश सोनी द्वारा:-
१.राग हिंडोल (राग हिंडोल के रूप में एक युवा सामंत को हिंडोल पर बैठा दर्शाया गया है। परिचारिकाएं हिंडोल डुला रही हैं।)
२.रागनी पटमंजरी (रागनी पटमंजरी का स्वरूप की पालतू बिल्ली की ध्वनि से तुलना की है। चित्र में नायिका को पालतू बिल्ली के साथ महल में बैठा दर्शाया गया है।)
12.खुश नारायण शर्मा जांगिड़ द्वारा:-
१.रागनी तेलंगी (रागनी तेलंगी की अभिव्यक्ति में नायिका को अंतःपुर में चौकी पर बैठे परिचारिका से तेल मालिश करवाते दर्शाया गया है)
२.राग बिलावल(राग बिलावल के चित्र में राजसी नायक महल के भीतर वीणा वादन रत है तथा सम्मुख खड़ी नायिका रूमानी वातावरण में संगीत का आनंद ले रही है।)
13.राम स्वरूप शर्मा(रम्मू)द्वारा:-
१.राग राम(राग पुत्र राम की अभिव्यक्ति में नायक को सुसज्जित योद्धा के रूप में प्रस्थान करते दर्शाया है । पीछे उसकी भार्या चंवर डुलाती दृष्टव्य )
२.राग पुत्र गंभीर(राग पुत्र गंभीर में शांत स्थिर नदी में नौका सवार दम्पति युगल और नाव चलाता नाविक दृष्टव्य है।)
14.कृष्ण कांत शर्मा द्वारा:-
१.रागनी बसंती (रागनी बसंती की अभिव्यक्ति बसंत ऋतु में दो युवतियों द्वारा पुष्प संग्रह के उपक्रम को दर्शाया गया है)
२.रागनी धनाश्री (रागनी धनाश्री की अभिव्यक्ति खरगोश की ध्वनि से की गई है। अतः रागनी के सम्मुख खरगोश का जोड़ा दृष्टव्य है)।