लोक परिवहन सेवा में उज्जैन सबसे फिसड्डी, सिटी बस संचालन पूरी तरह से बंद स्थानीय रहवासियों के साथ बाहर से आए श्रद्धालु भी होते हैं परेशान
उज्जैन - नगर निगम आयुक्त आशीष पाठक के निर्देश पर शहर में संचालित सिटी बसों का संचालन करने वाली एजेंसी विनायक टूर एवं ट्रेवल्स का टेंडर निरस्त कर दिया गया। नगर निगम ने ठेकेदार द्वारा संचालित की जा रही 25 सिटी बसों को जब्त किया और विभिन्न स्थानों पर संचालित टिकट काउंटरों को सील करने की कार्रवाई भी की। निगम के नेताप्रतिपक्ष का कहना है कि सिटी बस तो शुरूआत से ही बंद है। महापौर इस संस्था के चेयरमोन होते हैं, उन्हें देखना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है।
इसलिए करना पड़ा ऐसा
टेंडर की शर्तों में अनियमितता को लेकर निगम आयुक्त आशीष पाठक ने उज्जैन में सिटी बसों का संचालन करने वाली इंदौर की एजेंसी विनायक टूर एवं ट्रेवल्स का टेंडर निरस्त कर दिया। कथिततौर पर जानकारी मिली है कि ठेकेदार कंपनी द्वारा निगम कमिश्नर के फर्जी साइन करके सिटी बसों के परमिट का समय बदलने का प्रयास किया जा रहा था।
ठेकेदार ने समय से नहीं लौटाई बसें
निगम आयुक्त आशीष पाठक ने उज्जैन में सिटी बसों का संचालन करने वाली एजेंसी विनायक टूर एवं ट्रेवल्स का टेंडर दिनांक 20 अक्टूबर 2024 को ही निरस्त करने के आदेश जारी किए थे। साथ ही ठेकेदार कंपनी द्वारा संचालित 25 सिटी बसों को नगर निगम को सुपुर्द किए जाने के आदेश दिए थे। लेकिन विनायक टूर एवं ट्रेवल्स एजेंसी ने ऐसा न करते हुए शर्तों का उल्लंघन किया और बसों को नगर निगम के हवाले करने में आनाकानी की। जिस पर निगम अमले ने सिटी बसों को जब्त किए जाने के साथ ही शहर के विभिन्न स्थानों पर संचालित हो रहे टिकट काउंटर्स सील किए और वहां रखी सामग्री को जब्त किया।
ऐसे शुरू हुई थी सस्ती परिवहन सेवा
शहर की आंतरिक सीमाओं तक आवागमन की सुविधा देने के लिए केन्द्र सरकार ने जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत वर्ष 2009 में उज्जैन में नगर निगम के सहयोग से सिटी बस सेवा शुरु की थी। शुरुआत के कुछ महीने नगर निगम ने पहले चरण में खरीदी गई 39 सीएनजी सिटी बसों को स्वयं चलाया और उसके बाद बस संचालन व्यवस्था को ठेके पर दे दिया। इसके बाद 50 डीजल बसें लोक परिवहन सेवा के लिए खरीदीं गईं। लेकिन बीते 24 सालों में गिनती के ठेकेदार नगर निगम को मिले। इन ठेकेदारों ने सभी 89 बसों को खूब चलाया और आर्थिक भी लाभ कमाया, लेकिन जो सबसे जरूरी काम था बसों का संधारण, वो किसी ने नहीं कराया। नतीजतन सभी बसें धीरे धीरे भंगार हालात में पहुंच गई और जनता से एक अच्छी सुविधा छिन गई। इतना ही नहीं, बसों का संचालन करने वाले ठेकेदार बसों को भंगार हालात में छोड़कर चले गए। सूत्र बताते हैं कि कोरोना काल से पहले शहर की सड़कों पर मात्र 8 सिटी बसें चालू हालत में थीं, इसके बाद वो भी बंद हो गई।
फिर किए गए प्रयास
ऐसा नहीं है कि कोरोना काल के बाद बसों के संचालन के बारे में विचार नहीं किया गया। विचार भी हुआ और इसके लिए टेंडर भी बुलाए गए। सितम्बर 2020 तक नगर निगम ने तीन बार टेंडर जारी किए, लेकिन कोई नया ठेकेदार बसें चलाने के लिए राजी नहीं हुआ। इसके बाद एक सिंगल टेंडर आया, तो मजबूरीवश निगम ने उसे ही मंजूरी दे दी। सूत्र बताते हैं कि नगर निगम अपनी बसों को मात्र 55 रुपए रोज के किराए पर पुराने ठेकेदार को देने को राजी हो गया था। यानी एक बस के एवज में ठेकेदार द्वारा नगर निगम को 1651 रुपए महीना ही चुकाना था, इसे भी नगर निगम ने मंजूर कर लिया था। लेकिन उसी समय सितम्बर 2020 में भाजपा बोर्ड का कार्यकाल पूरा हो गया और निगम की कमान प्रशानिक अधिकारी के हाथ में चली गई। बतौर नगर निगम प्रशासक संभाग कमिश्नर आनंद शर्मा ने कार्यभार संभालते ही इतने सस्ते ठेके को सिरे से खारिज कर दिया। साथ ही निगम के अधिकारियों से नए ठेके की प्रक्रिया के लिए कहा। लेकिन निगम के समझ सबसे बड़ी समस्या इन बसों को दुरूस्त कराने की थी, क्योंकि जिस हालत में बसें पहुंच गई थीं, उन्हें कोई लेने को तैयार नहीं था। उसके बाद का भी दौर इसी तरह उतार चढ़ाव का गुजरा। कभी निगम को ठेकेदार नहीं मिला, तो कभी बसों के रखरखाव के लिए आर्थिक संकट बना रहा।
आपसास कस्बों के लिए भी चली बसें
बसों की हालात देखते हुए उसे शहरी क्षेत्र में चलाना थोड़ा मुश्किल था। जिसे देखते हुए उज्जैन में उपनगरीय सेवा के तहत बसों का संचालन कस्बाई क्षेत्रों के लिए भी किया गया। इससे भी यात्रियों और ठेकेदार दोनों को लाभ ही हुआ। सूत्र बताते हैं कि उप नगरीय सिटी बस सेवा शुरू हो जाने से यात्रियों को फायदा मिला। नगर निगम की सिटी बसों में आरामदायक यात्रा के साथ धक्का-मुक्की, ज्यादा किराया वसूली, असुरक्षा जैसी समस्याओं से ग्रामीणजनों को मुक्ति मिली। लेकिन ये व्यवस्था भी ज्यादा दिन नहीं चल पाई।
अभी यहां के लिए चल रही थी बसें
मिली जानकारी अनुसार उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड द्वारा विनायक टूर एवं ट्रेवल्स के साथ अनुबंध करके 6 बसें उज्जैन से आगर, 2 बसें उज्जैन से ओमकारेश्वर, 4 बसें उज्जैन से तराना, 6 बसें नानाखेड़ा से देवासगेट और 2 बसों उज्जैन दर्शन के लिए चलाई जा रही थीं। जिनके बंद होने से तमाम यात्रियों को परेशानी का सामन करना पड़ा।
ये भी जानना जरूरी
शहर को बढ़ते यातायात दबाव से मुक्त रखने के लिए देश के कई बड़े शहरों में सिटी बसों का संचालन करीब करीब एक साथ ही शुरू किया गया था। साथ ही ये भी योजना बनाई गई थी कि इन बसों को कस्बाई इलाकों से जोड़ा जाएगा, ताकि आमजन कम खर्च और सहूलियत के साथ अपने अपने गंतव्य तक आ-जा सकें। साल 2010 के आसपास नगर निगम ने इसकी शुरूआत जोरशोर के साथ की। नगर निगम ने उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड कंपनी के नाम से बस सेवा आरंभ की, जो शुरूआत से लाभप्रद साबित हुई। लेकिन जिस कंपनी को बसों के संचालन का ठेका दिया गया था, उसने बसों को कंडम बनाते हुए करोड़ों रूपए का चूना निगम को लगाया और बसों का संचालन बंद कर दिया। उसके बाद से नगर निगम ने कई बार प्रयास किए लेकिन सिटी बसों के संचालन के मामले में नगर निगम पूरी तरह से फेल ही साबित हुआ। जबकि यहां से 60 किलोमीटर दूर इंदौर में सिटी बसें निगम के लिए बेहतर कमाई का जरिया साबित हो रहीं हैं।
अभी 83 रूपए रोज के किराए पर चल रहीं थीं बसें
उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज़ लिमिटेड यानी यूसीटीएसएल ने कोराना काल के बाद बसों को खुद के खर्च पर सुधरवाकर इंदौर की विनायक टूर एंड ट्रेवल्स कंपनी को 83 रूपए रोज प्रति बस के अनुसार किराया अनुबंध पर संचालन की जिम्मेवारी सौंपी थी। यदि इस आंकड़े से 25 बसों का रोज का किराया निकाला जाए तो 2075 रूपए रोज निकलता है। अब इसे दिन एक माह (30 दिन) से गुणा किया जाए, तो करीब 62,250 प्रतिमाह निगम को इससे आमदनी थी।
यहां के हालात बिगड़े वहां डबल डेकर
एक अनुमान के मुताबिक साल 2010 में सिटी बसों की शुरूआत कई बड़े शहरों में एक साथ की गई थी। दूर न जाते हुए यदि इंदौर की ही बात करें, तो बीते 14 सालों में इंदौर ने सिटी बसों से अच्छी खासी आमदनी भी की और वाहनों में बदलाव भी किया। वहां डीजल से चलने वाली बसें अब इलेक्ट्रिक बसों में तब्दील हो चुकी हैं। पिछले दिनों इंदौर में डबल डेकर बस भी दौड़ाई गई, जो एक उदाहरण है कि कार्य को कैसे किया जाता है। लेकिन इसके विपरीत 14 सालों में उज्जैन में सिटी बसों का संचालन ही बंद हो गया। अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए न किसी जिम्मेदार नेता ने आवाज उठाई और न ही कोई जिम्मेदार अधिकारी ही आगे आया। रही बात विपक्ष की, तो इन्हें सुनने वाला तो पहले भी कोई नहीं था और अब भी कोई नहीं है।
फिलहाल संचालन पूरी तरह से बंद
शहरी परिवहन में सिटी बसों का बेड़ा शामिल होने से नागरिकों को आवागमन की बेहतरीन सेवा का फायदा मिलेगा - ऐसी खबरें तो अब एक सपना सा लगती हैं। यूसीटीएसएल द्वारा सिटी बस संचालन का ठेका निरस्त किए जाने के बाद वर्तमान में फिर से वही हालात बन गए हैं। लोगों को आवागमन में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लोग पहले किसी जमाने में टैम्पो और मैजिक संचालकों की मनमर्जी का शिकार होते थे, अब इनकी जगह ईरिक्शा संचालकों ने ले ली है। अब ई रिक्शा संचालक लोगों से मनमाना पैसा वसूली करके उन्हें गंतव्य तक पहुंचाते हैं। साथ ही सीमा से अधिक सवारी बैठाते हैं सो अलग।
शहर में नई परिवहन व्यवस्था की सख्त जरूरत
उज्जैन में श्री महाकाल लोक का निर्माण होने के बाद शहर में श्रद्धालुओं की संख्या में एकाएक जबरदस्त ईजाफा देखने को मिला है। जिन्हें अब यहां सुव्यवस्थित पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध कराने का जिम्मा भी शासन प्रशासन का है। रोजाना शहर में एक मंदिर से दूसरे मंदिर जाने, स्टेशन और बस स्टैण्ड से मंदिरों तक आने जाने के लिए बाहरी लोगों को परेशानी उठाना पड़ती है। ऐसे ही हाल स्थानीय लोगों के भी हैं। शहर विकास के नाम पर दूर दूर तक बसाहट तो कर दी गई, लेकिन वहां तक आने जाने के लिए लोक परिवहन के साधनों को नहीं जुटाया जा रहा। जिसकी वजह से लोगों को अधिक दाम चुकाकर आवागमन करना पड़ता है। ये ही नहीं भविष्य में सिंहस्थ जैसा महाआयोजन होने वाला है। ऐसे में उज्जैन में करोड़ों श्रद्धालु आएंगे। मेला क्षेत्र तक आने जाने के लिए उन्हें भी संसाधनों की आवश्यकता लगेगी। अब जब प्रदेश के मुखिया सिंहस्थ आयोजन को लेकर हजारों करोड़ की योजनाएं बना रहे हैं, तो उन योजनाओं में सस्ती लोक परिवहन सेवा को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि उज्जैन आने वाले लोग शहर में अच्छे से घूम सके और शहर की एक बेहतर छवि लेकर शहर से लौटें।
त्यौहार के समय बेरोजगार हुए कई लोग
यूसीटीएसएल के एक आदेश ने कई लोगों से उनका रोजगार छीन लिया। सिटी बसों का संचालन बंद हो जाने से बसों में चालक और परिचालकों के सामने रोटीरोजी का संकट आ खड़ा हुआ है। ठेकेदार और नगर निगम के बीच हुए विवाद का खामियाजा करीब सौ लोगों को भोगना पड़ रहा है। क्योंकि सिटी बस संचालन से केवल ड्रायवर और कंडेक्टर ही नहीं जुड़े थे, बल्कि स्टैंड पर गााड़ी भरवाने वाले एजेंट, साफ सफाई करने वाले लोगों के सामने भी रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। वो भी तब, जब सिर पर दीपावली जैसा त्यौहार है।
इनका कहना
सिटी बस तो शुरू से ही बंद है। महापौर इस संस्था (यूसीटीएसएल) के चेयरमैन होते हैं, इसका दायित्व उन्हीं का है। अगर वे इस मामले में सचेत नहीं हैं, तो उन्हें अपने पद से अस्त्फिा दे देना चाहिए। मैं सदन में प्रश्नकाल के लिए बार बार जानकारी मांग रहा हूं, लेकिन जानकारी नहीं दी जा रही है।
रवि राय - नेता प्रतिपक्ष, नगर निगम
इस बारे में महापौर मुकेश टटवाल से भी संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन चर्चा नहीं हो सकी।