शिक्षा ,साहित्य और रंगकर्म के शिखर पुरुष – प्रो. प्रभात भट्टाचार्य - डॉ. हरीशकुमार सिंह
स्मृति शेष –
शिक्षा ,साहित्य और रंगकर्म के शिखर पुरुष – प्रो. प्रभात भट्टाचार्य
- डॉ. हरीशकुमार सिंह
प्रख्यात रंगकर्मी और राष्ट्रीय स्तर पर रंगकर्म के आधार स्तम्भ रहे माधव महाविद्यालय के आचार्य प्रो. प्रभातकुमार भट्टाचार्य का 12 अक्टूबर , विजयादशमी को 92 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया | नाटक रंगमंच सांस्कृतिक क्षेत्र में विशिष्ट अवदान के मद्देनजर प्रो.भट्टाचार्य को भारत के राष्ट्रपति ने वर्ष 2006 में भारत शासन के सर्वोच्च संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से अलंकृत किया | कुसुमांजलि फाउंडेशन नई दिल्ली द्वारा उज्जयिनी की पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास मगरमुहा के लिए आपको ढाई लाख रुपये का प्रतिष्ठित कुसुमांजलि सम्मान प्रदान किया गया | रंगकर्म के साथ आप विख्यात शिक्षा शास्त्री ,कवि उपन्यासकार भी रहे और आपको प्रभात के तीन शिखर- शिक्षा ,साहित्य और रंगकर्म के रूप में पहचान मिली | राजनीति विज्ञान में गांधी दर्शन पर आप डॉक्टरेट थे |
एक शिक्षा शास्त्री के रूप में आपने उज्जैन के प्रथम अशासकीय महाविद्यालय सांदीपनी कला ,वाणिज्य एवं विधि स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना वर्ष 1966 में अपने साथी प्राध्यापकों के साथ की और सुमन मोंटेसरी हाई स्कूल की स्थापना वर्ष 1973 में की | तत्पश्चात रंगकर्म को प्रमुखता देते हुए आपने नाट्य प्रशिक्षण और लोकनाट्य के सरंक्षण और संवर्धन के लिए वर्ष 1976 में मध्यप्रदेश नाटक लोक कला अकादमी की स्थापना की | विक्रम विश्वविध्यालय में नये विभाग , विद्यार्थी कल्याण विभाग की शुरुआत की और उसके पहले डीन बनाये गये | तत्कालीन केंद्र सरकार की मंशा के अनुरूप साक्षरता को बढाने हेतु विश्वविद्यालय में ही प्रौढ़ /सतत शिक्षा केंद्र का शुभारम्भ किया और प्रो. रामराजेश मिश्र के साथ इस अभियान को लोकप्रिय बनाया |
साहित्यकार के रूप में आपके तीन उपन्यास मगरमुहा , झील का नाम सागर है , और रौशनी की चारदीवारी प्रकाशित हुए | आपके दो खंड काव्य लौट आओ मैना और दरख्त तवारीखी सामने आये | आपने कई संस्कृत नाटकों का हिन्दी रूपांतरण किया | कालिदास , भवभूति ,शूद्रक ,भास् के संस्कृत नाटकों का रूपांतरण और मंचन किया | आपके सात काव्य संग्रह एक साथ प्रकाशित हुए जिनमें नीड़राग , वृक्षराग , रागरंग , अनुराग , ऋतुराग , राग अजगरी और राग अवधूत सम्मिलित हैं | प्रो. भट्टाचार्य की अंतिम कृति बानवे वर्ष की आयु में , विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक श्री श्रीराम तिवारी ने ,खंडकाव्य ‘ श्रीकृष्ण के श्रष्टा – गुरुवर महर्षि सांदीपनी ‘ हाल ही में प्रकाशित की है |
कालिदास अकादमी के आप वर्ष 1995 में निदेशक बने और अकादमी को नए सिरे से सुसज्जित किया एवं नाट्य कलाकारों को रिहर्सल और प्रशिक्षण के लिए अकादमी में स्थान दिया | अकादमी में रहते हुए आपने मालव अंचल की मालवी बोली के लोकगीतों का संग्रह प्रख्यात इतिहासकार और संस्कृत – हिंदी के मनीषी डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित और प्रख्यात मालवी कवि भावसार बा से तैयार कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया | आपने असंख्य नाटकों का लेखन और निर्देशन किया | अकादमी के निदेशक रहते हुए कालिदास समारोह में संस्कृत नाटकों का हिन्दी अनुवाद कर आपने मंचन करवाए और प्रशंसा पाई | नब्बे वर्ष की उम्र में वर्ष 2023 के विक्रमोत्सव में नाटक ‘ कर्णभार ‘ का निर्देशन कर आपने खूब प्रशंसा पाई थी | आधुनिक हिन्दी काव्य नाटक के अंतर्गत आपने तीन काव्य नाटक ‘ मुक्तिकथा ‘ के अंतर्गत लिखे जो काठमहल , प्रेतशताब्दी , और आगामी आदमी थे | नाटक आगामी आदमी प्रख्यात साहित्यकार डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन को समर्पित था | आपके नाटकों का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली से लेकर कालिदास समारोह और विक्रमोत्सव में होता रहा | आपके नाटकों की समीक्षा करने वालों में प्रख्यात साहित्यकार प्रो.धंनजय वर्मा , डॉ. सुमन , रमेश दवे , गिरीश अवस्थी , प्रभाकर श्रोत्रिय , आलोक मेहता , श्याम व्यास , प्रमोद त्रिवेदी , मुकेश वर्मा , निरंजन श्रोत्रिय , श्री राम दवे , सुनीता जैन , गिरीश रस्तोगी , ,प्रणब बंदोपाध्याय , निवेदिता वर्मा जैसे आलोचक रहे | प्रख्यात नाटककार गिरीश रस्तोगी आपके नाटक सतोरिया से इतना प्रभावित हुईं कि आपने लिखा कि भारतेंदु के बाद अकेला सम्पूर्ण नाटककार -प्रभातकुमार भट्टाचार्य | प्रो. भट्टाचार्य ने माच के विशेषज्ञ प्. ओमप्रकाश शर्मा के साथ मिलकर इस लोकनाट्य विधा को राष्ट्र्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया |
मालवा की लोक संस्कृति को समर्पित हास्य व्यंग्य के आयोजन अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन की शुरुआत आपके मार्गदर्शन में वर्ष 1970 में संस्थापक - संयोजक प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ. शिव शर्मा ने की । डॉ शिव शर्मा आपके सुयोग्य शिष्य रहे और आपकी साहित्यिक मुठभेड़ों के अग्रणी योद्धा रहे | साहित्यिक पत्रिका समावर्तन का निर्बाध प्रकाशन कर आपने देश भर में ख्याति अर्जित की। समावर्तन के संपादक मंडल में रमेश दवे , रमेश सोनी , मुकेश वर्मा , निरंजन श्रोत्रिय , श्रीराम दवे , अक्षय आमेरिया , सदाशिव कौतुक , निवेदिता वर्मा , अजय भट्टाचार्य , डॉ. अरुण वर्मा , डॉ. हरीशकुमार सिंह , डॉ. प्रकाश रघुवंशी , विवेक शर्मा आदि सम्मिलित रहे | समावर्तन वर्ष 2008 से निरंतर वर्ष 2023 प्रकाशित होती रही और समावर्तन के 150 वें अंक का विमोचन गरिमामय समारोह में दिल्ली और उज्जैन में हुआ | बांग्ला भाषी होते हुए भी हिन्दी साहित्य में आपने अपनी पहचान बनाई | आपकी रचनाओं में बांग्ल परंपरा और संस्कार के दर्शन होते हैं | शिक्षा ,साहित्य और रंगकर्म के शिखर पुरुष – प्रो. प्रभात भट्टाचार्य को नमन |