कालिदास की अराध्य देवी हैं माँ गढ़कालिका, भक्तों के सभी मनोरथ पूरे करती है देवी मॉँ
उज्जैन - मां गढ़कालिका का मंदिर उज्जैन शहर में स्थित है। इन्हें महाकवि कालिदास की आराध्य देवी भी कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व माँ कालिका की आराधना की जाती है, इसके बाद ही समारोह का आरंभ होता है। कालजयी कवि कालिदास के संबंध में कहा जाता है कि जब से उन्होंने इस मंदिर में पूजा-अर्चना की, तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा। कालिदास रचित ’श्यामला दंडक’ महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना है। ये भी माना जाता है कि महाकवि के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था।
ऐसी है मान्यताएं
गढ़कालिका मंदिर 51 शक्तिपीठों में न होने के बाद भी आस्था का एक प्रमुख केन्द्र है। हालांकि कुछ लोग इसे शक्तिपीठों में मानते हैं और बताते हैं कि यहां माता सती के ऊर्ध ओष्ठ यानि होंठ का ऊपरी हिस्सा गिरा था। गढ़कालिका का ये मंदिर 18 महाशक्तिपीठों में भी आता है। 18 शक्तिपीठ स्त्रोत जो जगतगुरु आदि शंकराचार्य के द्वारा लिखा गया है। उसमें बताया गया है उज्जयिनी या महाकाली जो उज्जैन की महाकाली का वर्णन किया गया है, उसी स्रोत में वह गढ़ कालिका ही है।
लोगों की जुड़ी हुई है आस्था
गढ़ कालिका मंदिर में माँ कालिका के दर्शन के लिए रोजाना हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है। नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालुओंकी संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी होती है और ये संख्या कई गुना तक बढ़ जाती है। पूरे नौ दिनों तक लोग यहां परिवार के साथ दर्शन पूजन के लिए आते हैं। यहाँ नवरात्रि में लगने वाले मेले के अलावा विभिन्न अवसरों पर उत्सवों और धर्मयज्ञों का आयोजन चलता रहता है। माँ कालिका के दिव्य स्वरूप के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। देवी मां भी अपने सभी भक्तों के मनोरथ पूरे करती है।
तंत्र साधना का भी है केन्द्र
पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरव पर्वत पर माँ भगवती सती के ऊर्ध ओष्ठ गिरे थे। उसी स्थान को कालान्तर में गढ़ कालिका के नाम से जाना गया। ये मंदिर शक्तिपीठ में शामिल नहीं है, फिर भी उज्जैन में माँ हरसिद्धि शक्तिपीठ होने, भगवान शिव ज्योर्तिलिंग स्वरूप में विराजित होने से इस क्षेत्र का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। तांत्रिक भी तंत्र साधना के लिए कालिका माता के इस मंदिर में आते हैं। वर्ष में पढ़ने वाली दो गुप्त नवरात्र के दिनों में तमाम साधक देवी की साधना के लिए यहां आकर मनोवांछिद सिद्धी प्राप्त करते हैं।
अति प्राचीन है, देवी का ये धाम
तांत्रिकों की देवी कही जाने वाली मां कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई ज्यादा नहीं जानता। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत काल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णाेद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख भी मिलता है। स्टेटकाल में ग्वालियर के महाराजा ने इसका फिर से निर्माण करवाया था। वर्तमान में ये मंदिर समिति के अधीन है।