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श्वानों को लेकर नगर निगम की अनोखी सलाह, जबकि श्वानों के आतंक से परेशान शहरवासी


उज्जैन - नागरिक श्वानों को नियमित भोजन, पानी इत्यादि दें, तो वे कभी भी आपको किसी भी प्रकार की चोट नहीं पहुंचाएंगे। जी हां....ये सलाह नगर निगम द्वारा जारी की गई है। 04 अक्टूबर को केडी गेट क्षेत्र में श्वान को देखकर भागी सात साल की बालिका के निधन के बाद नगर पालिका निगम ने अपनी ओर से सफाई प्रस्तुत की और एक प्रेसनोट जारी करते हुए श्वानों की नसबंदी, पशु क्रुरता अधिनियम आदि की जानकारी भी दी।
नगर निगम का बचकाना अनुरोध
नगर पालिक निगम द्वारा नागरिकों से जो अनुरोध किया गया है वो काफी बचकाना है। प्रश्न ये उठता है कि कौन से नागरिक श्वानोें को भोजन उपलब्ध कराएं। वो जो उस गली मोहल्ले में रहते हैं या फिर वो जो श्वानों के कोप का शिकार होते हैं। क्योंकि अक्सर देखा गया है कि श्वान उन लोगों पर हमला करते हैं, जो रोड पर आनाजाना कर रहे होते हैं, न कि उन पर जो उस क्षेत्र में रहते हैं।
जब पशु ही क्रूरता करने लगें....तो
नगर निगम द्वारा विज्ञप्ति में कहा गया है कि पशु क्रूरता अधिनियम 1960 के अन्तर्गत श्वानों को संरक्षण प्राप्त है। अर्थात श्वानों के साथ क्रूरता करने एवं अन्य जगह स्थानांतरित करने पर सम्बंधित व्यक्ति के विरूद्ध उक्त अधिनियम कि धारा आईपीसी 428/429 के तहत अपराध पंजीयन का प्रावधान किया गया है। लेकिन जब पशु ही क्रूरता करने लगे तो आम शहरियों को क्या करना चाहिए ? क्या अपने बचाव में श्वानों को मारना चाहिए या फिर श्वान एक पैर में काटे, तो दूसरा भी आगे कर देना चाहिए।
    हम ये नहीं कहते कि श्वान या किसी भी पशु पर कभी भी क्रूरता दिखाई जानी चाहिए, लेकिन शहर के नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए सरकारी विभागों को भी अपने कार्य समय समय पर करते रहना चाहिए। ये केवल एक बच्ची की मौत की बात नहीं है, हर दिन जाने कितने लोग डॉग बाइट का शिकार हो रहे हैं। प्रशासन के पास तो केवल वो आंकड़े हैं, जो शासकीय अस्पतालों में पहुंचकर उपचार करवाते हैं, या फिर जिन निजी अस्पतालों से प्रशासन ऐसी घटनाओं की जानकारी जुटा लेता है। इनके अलावा भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो निजी तौर पर अपना उपचार करवा लेते हैं और प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं होती।
लोगों के साथ होती है दुर्घटनाएं
श्वानों के काटने का मामला अपनी जगह है, लेकिन इसके अलावा भी ऐसी कई घटनाएं हो जाती हैं, जिनके जिम्मेदार स्ट्रीट डॉग्स होते हैं। शहर के भीड़ भरे मुख्य मार्गों को छोड़ दिया जाए, तो हर कॉलोनी, हर गली, हर एक मोहल्ले में बड़ी संख्या में श्वान मौजूद हैं। जो राह चलते लोगों को देखकर लपकते हैं, जिससे सड़क हादसे होते हैं और लोगों को बिना वजह की परेशानी उठाना पड़ती है। शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी श्वानों के आतंक की घटनाओं में रोज इजाफा हो रहा है। करीब 11 दिन पहले 24 सितम्बर को मताना में एक स्ट्रीट डॉग, मोटरसाइकिल के सामने आ गया था, जिससे गाड़ी पर बैठे तीन लोग सड़क पर गिर गए। हादसे में बाइक चला रहे वृद्ध की तो मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि दोनों महिलाएं बुरी तरह से जख्मी हुईं थी। ऐसे और भी जाने कितने हादसे रोजाना होते हैं, लेकिन स्ट्रीट डॉग्स को जनता कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि ऐसा करना पशु क्रूरता कहलाएगा।
6 सालों में 19967 श्वानों की नसबंदी
नगर निगम ने सफाई देते हुए एक आंकड़ा जारी किया है कि बीते 6 सालों में उन्होंने (19,967) यानि करीब 20 हजार श्वानों की नसबंदी की है, जिसमें 6 संस्थाओं ने कार्य किया था। नगर निगम द्वारा औसतन 8 से 10 श्वानों को पकड़कर प्रतिदिन नसबंदी किए जाने की कार्यवाही की जा रही है एवं धरपकड़ लगातार जारी है। यदि इस आंकड़े को सही मान भी लिया जाए, तो निगम को ये भी स्पष्ट करना चाहिए कि शहर में अनुमानित श्वानों कि संख्या कितनी होगी और श्वानों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण पाने के लिए निगम को एनिमल बर्थ कन्ट्रोल नियम के तहत और कितने साल तक मेहनत करनी होगी।
समस्या का हल क्या ?
इन दिनों श्वानों से हो रही परेशानी नगरवासियों के लिए एक बड़ी समस्या के तौर पर सामने आ रही है। जिसका हल स्थानीय प्रशासन को ही खोजना होगा। क्योंकि आमजन तो ऐसे मामलों में पशु क्रूरता अधिनियम 1960 की धाराओं में बंधे हैं, जिसमें वे अपने बचाव में भी यदि श्वान पर हमला करते हैं, तो वो कानूनी तौर पर अपराध की श्रेणी में दर्ज हो जाएगा, जिससे उन्हें सजा भी हो सकती है। लेकिन यदि श्वान या अन्य किसी भी पशु के सामने आने अथवा हमलाकर देने से मनुष्य की जान चली जाए या फिर अंग भंग हो जाए, तो इसे केवल हादसा या दुर्घटना ही कहा जाएगा। ऐसे में जरूरी है नियमों में संशोधन की या फिर कानून में बदलाव की, ताकि इस तरह की समस्याओं का कोई सार्थक हल निकाला जा सके।
श्वानों के हमलावर होने की जानें वजह
बहरहाल मामले में सबसे अधिक जरूरी ये है कि श्वानों के हमलावर होने के कारणों की जांच की जाए। नगर निगम को किसी चिकित्सक या विशेषज्ञ की मदद से ऐसे स्थानों का लगातार मुआयना करवाना चाहिए, जहां से डॉग बाइट की शिकायतें अधिक आती हैं। ऐसा करने से इस तरह के मामलों में कमी आने की संभावना जताई जा सकती है।

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