श्राद्धपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर पितृ पूजन, सिद्धवट और गयाकोठा तीर्थ पर श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब, दूध एवं जल चढ़ाने के लिए लगी लंबी कतारें
उज्जैन - पितृ पूजन के लिए आश्विन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या तिथि को श्रेष्ठ माना गया है। इसी वजह से स्थानीय लोगों के अलावा इन दो दिनों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उज्जैन आते हैं और अपने पूर्वजों के निमित्त तर्पण, पूजन, दान धर्म आदि कार्य करते हैं। मंगलवार को चतुर्दशी तिथि पर सिद्धवट क्षेत्र में पहुंचे श्रद्धालुओं ने अपने पितरों के लिए पूजन करने के साथ भगवान सिद्धनाथ को दुग्ध अर्पित किया। हालात यह रही कि मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की लंबी लंबी कतारें दोपहर बाद तक लगी रहीं। भगवान सिद्धनाथ को दूध अर्पित कर श्रद्धालुओं ने अपने पितरों की शांति की कामना की। इस दौरान घाट पर तर्पण एवं पिंडदान का कार्य भी चलता रहा। हजारों श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों और पितरों की आत्मशांति के लिए सिद्धनाथ घाट पर विधिवित पूजन किया, ताकि उनके पितरों को मौक्ष मिल सके।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सिद्धवट घाट पर शक्ति भेद तीर्थ और प्रेत शिला तीर्थ दोनों का समागम है। यहां परिवार के दिवंगत हुए लोगों को पितृ योनि प्राप्त करने के लिए तर्पण पूजन किया जाता है। इसी तरह मरने के बाद अधोगति प्राप्त करने वालों की मोक्ष के लिए अमावस्या तिथि पर पूजन का विधान है।
सिद्धवट की तरह उज्जैन में एक और ऐसा स्थान है, जहां पर पितरों का पूजन और तर्पण किया जाता है। यहां भी पितरों की आत्म शांति के लिए चतुर्दशी तिथि पर जमकर भीड़ उमड़ती है। इस स्थान को गयाकोठा तीर्थ के नाम से जाना जाता है। यहां भी दुग्धाभिषेक करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख, शांति और वंश में समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। गयाकोठा तीर्थ पर तड़के 5 बजे से ही श्रद्धालु जुटने लगे थे। दिन चढ़ने के साथ श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई। हालात ये हो गए कि सुबह 10 बजे के आसपास गयाकोठा मंदिर के बाहर करीब एक किलोमीटर लंबी श्रद्धालुओं की कतार लग गई थी।
आपको बता दें कि ये तीर्थ स्थान भगवान श्रीकृष्ण के समय बना था। अपने गुरू के पुत्रों के मोक्ष के लिए भगवान ने यहां कुंड में फाल्गुनी नदी को प्रकट किया था। तभी से इस स्थान पर भी श्राद्ध पक्ष में तर्पण पूजन का कार्य किया जाता हैं। मंदिर में नारायण चरण पर दूध अर्पित किए जाने का विधान है।