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धर्म और शास्त्र सम्मत कांवड़ कौन सी? उत्तम स्वामी से पुजारी महासंघ के प्रश्न


उज्जैन- श्रावण में कावड़ यात्राओं की बाढ़ आ जाती है। जिनमें होड़ भी दिखाई देती हैं। कई यात्राओं में तो नियम, संयम कुछ भी नजर नहीं आता। केवल डीजे पर बजने वाले गानों पर फूहड़ता दिखाई देती हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ये वास्तविक कावड़ हैं या दिखावे की कांवड़? 
इन्हें यह भी ज्ञात नहीं है कि कावड़ चढ़ाने की परंपरा कब और कैसे स्थापित हुई? इसका नाम कावड़ क्यों रखा गया? शास्त्र अनुसार कितनी दूरी ओर कावड़ कहां से भरना चाहिए और कहां चढ़ाना चाहिए? शास्त्र अनुसार कावड़ उठाने ओर रखने के नियम क्या हैं? आज-कल दो प्रकार की कावड़ यात्रा देखने को मिलती हैं। एक जो आस-पास से 5 या 10 किलो मीटर से निकाली जाती हैं। दूसरी जो 150 से 200 किलो मीटर की कावड़ यात्रा निकाली जाती हैं। इनमें से शास्त्र सम्मत और धर्म अनुसार कांवड़ कौन सी है? क्योंकि दोनों ही कावड़ कहलाती हैं। इस संबंध में अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश पुजारी और सचिव रुपेश मेहता ने धर्म के ज्ञाता और संतों के अग्रणी उत्तम स्वामी महाराज को पत्र भेजकर मार्गदर्शन देने का अनुरोध किया हैं। आपने  कहा कि धार्मिक परंपराओं के विपरीत निकलने वाली कावड़ पर उज्जैन के किसी संत, महामंडलेश्वर या महंत ने इसे लेकर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी जो अनुचित हैं। उत्तम स्वामी जी धर्म शास्त्र के ज्ञाता है और वह भी कुछ घंटे की बड़ी भव्य और दिव्य कांवड़ यात्रा निकालते हैं। इसलिए हमारा विश्वास है कि महाराज सनातन धर्म को मानने वाले लोगों को वास्तविक कावड़ और उसके नियमों के बारे में जानकारी अवश्य प्रदान करेंगे। 

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