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प्राचीन विधाएं कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकती क्योंकि विधाएं आध्यात्मिक और भौतिक समान रूप से उपकारी -कुलपति श्री मेनन वेदों तथा प्राच्य विधाओं का अध्ययन विभिन्न वि.वि. में होने लगा -आचार्य श्री जोशी वार्षिकोत्सव कार्यक्रम सम्पन्न


उज्जैन- महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान द्वारा सभी के लिये वैदिक कक्षाएं का
साप्ताहिक शनिवार एवं रविवार का संचालन स्थानीय जन-मानस को वेदों में निहित प्राचीन ज्ञान-विज्ञान के भण्डार से
अवगत कराने के उद्देश्य से किया जाता है। इस प्रकल्प के पांच वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में उज्जैन विकास
प्राधिकरण के द्वितीय तल स्थित प्रतिष्ठान के पूर्व कार्यालय में वार्षिकोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.विजय मेनन सी.जी. ने
कहा कि प्राचीन विधाएं कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकती, क्योंकि ये विधाएं आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही दृष्टि से
समान रूप से उपकारी हैं। इसी के माध्यम से मनुष्य का सर्वांगीण विकास संभव है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि संस्कृत विभाग विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष आचार्य श्री केदार
नारायण जोशी ने कहा कि वेदों तथा प्राच्य विधाओं का अध्ययन अब विभिन्न विश्वविद्यालयों में होने लगा है।
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन में तो प्रथम कक्षा में ही संस्कृत पढ़ाया जा रहा है। उज्जैन के लिये गौरव की बात है कि
प्रतिष्ठान द्वारा सभी के लिये वैदिक कक्षाएं जैसे प्रकल्प का निरन्तर संचालन किया जा रहा है। उन्होंने आशा व्यक्त
की कि निकट भविष्य में श्री महाकाल परिसर के समीप भी इस प्रकार का विस्तार हो, जिससे अधिकाधिक संख्या में
जन-मानस लाभांवित हो सके। प्रतिष्ठान को पहले भारत सरकार से बोर्ड की मान्यता मिली एवं वर्तमान में
विश्वविद्याय बनने की ओर अग्रसर है।
कार्यक्रम में सारस्वत अतिथि नईदिल्ली के श्री लालबहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सांख्य
योग विभाग के प्रोफेसर श्री मार्कंडेय तिवारी ने कहा कि जीवन में संस्कारों का बड़ा महत्व है। मंत्रशक्ति का बोध सभी
को होना चाहिये। एक सुसंस्कृत व्यक्ति ही परिवार, समाज तथा राष्ट्र के लिये उपयोगी हो सकता है। कार्यक्रम की
अध्यक्षता महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान के सचिव आचार्य श्री विरूपाक्ष वि. जड्डीपाल द्वारा की गई।
उन्होंने इस अवसर पर कहा कि जीवन में वेदों के द्वारा उपदिष्ट आचरण करने से ही व्यवहार में शुचिता हो सकती
है। संस्कृत एक भाषा नहीं अपितु सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान का मूल है। हम अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा का उपयोग संस्कृत तथा
उसमें निहित ज्ञान-विज्ञान के विकास एवं संवर्धन में शुचिता तथा संस्कारयुक्त होकर करें। इस अवसर पर वेदों की
आठ शाखाओं का पाठ राष्ट्रीय आदर्श वेद विद्यालय के छात्रों द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में
गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ.अनूप कुमार मिश्र ने किया तथा अंत में आभार पं.सौरभ
नोटियाल ने व्यक्त किया।

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