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संतों के आश्रम में रसोई बनाती थी ममता बाद में खास बनकर हुई महामंडलेश्वर


साधु-संतों के आश्रम में रसोई बनाना, पुड़ी बेलना, सब्जी काटना यही काम करती थी ममता जोशी, जो बाद में इन्हीं साधु-संतों से संपर्क बढ़ाकर महामंडलेश्वर मंदाकिनी पुरी बन गई। कथा, धर्म, शास्त्रों का ज्ञान नहीं होने के बावजूद वाकपटुता का लाभ लेकर वह इस पद तक पहुंच गई। सबसे पहले वह श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा के अनंतानंदजी महाराज के संपर्क में आई। उन्होंने 2016 में रवींद्र पुरीजी महाराज से परिचय करवाया।

रवींद्र पुरीजी महाराज जब भी उज्जैन आते ममता जोशी उनसे मिलने बड़नगर रोड स्थित आश्रम पहुंच जाती। उनसे चर्चा में कहा कि वह बटुक आश्रम का संचालन करती हैं। उनके पास सांदीपनि आश्रम के सामने खुद का आश्रम है। साथ ही होटल व्यवसायी होने से उन्हें हर महीने करीब 50 हजार रुपए बतौर किराया प्राप्त होता है, जिसे वे जनहित में खर्च करती हैं। संतों, दीन-हीन की सेवा करती हैं।

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