कच्चे महल सा मेरा सबकुछ ढह गया, मेरे एकाकी जीवन की कहानी कह गया - शुक्ला
उज्जैन | रूपांतरण दशहरा मैदान पर डॉ. श्रीकृष्ण जोशी की अध्यक्षता में गजलांजलि साहित्यिक संस्था की काव्य संगोष्ठी आयोजित की गई। मुख्य अतिथि डॉ. शिव चौरसिया रहे। विशेष अतिथि डॉ. मोहम्मद इसरार खान थे। दीप प्रज्वलन के बाद प्रफुल्ल शुक्ला ने प्रथम रचना पाठ किया। कांच के कच्चे महल सा मेरा सबकुछ ढह गया, मेरे एकाकी जीवन की कहानी कह गया। विनोद काबरा ने बोलों में असावधानी से होती घटना पर रचना शब्द को समय के चक्र में अर्थ का अनर्थ कर जाते हैं... पढ़ी। ज्ञान विशेष की आवश्यक है जीवन में, भले सहारा सामान्य हो, कविता अवधेश वर्मा नीर ने पढ़ी। गजलों की बयार बहाते हुए डॉ. अखिलेश चौरे ने हसीन कितना जिंदगी का सफर लगता है, मुझे ये तेरी मुहब्बत का असर लगता है, गजल सुनाई।
आशीष अश्क ने गजल बस ख्याल आते ही अगर हम न कर गुजरे, काम कोई टलने में देर कितनी लगती है... पढ़ी। दिलीप जैन ने कुछ क्षणिकाएं पढ़ी तो डॉ. विजय सुखवानी ने दिखती आसान पर तुझमें दुश्वारी बहुत है, िजंदगी तेरी फितरत में अदाकारी बहुत है, पढ़कर समा बांध दिया। विजयसिंह गहलोत साकित ने माता-पिता के दायित्वों पर रचना पढ़ी अक्सर नहीं दिखते हैं मां-बाप के आंसू, चुपके से जो ढलते हैं मां-बाप के आंसू, गोष्ठी में अशोक रक्ताले, डॉ. मोहम्मद इसरार खान, डॉ. चौरसिया एवं आरिफ अफजल ने भी रचनाओं का पाठ किया।