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33 सालों में जनसंख्या दोगुनी, पानी का स्रोत सिर्फ गंभीर डेम, वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी


दिसंबर 1991 में 2250 एमसीएफटी (मिलियन क्यूबिक फीट) की क्षमता वाले गंभीर डेम का निर्माण किया गया था। यह निर्माण 1992 में सिंहस्थ होने के पहले किया था। उस समय शहर की जनसंख्या 3 लाख 65 हजार थी, ऐसे में दावा किया था कि एक बार डेम पूरी क्षमता यानी 2250 एमसीएफटी भराने के बाद करीब तीन साल तक शहर को पानी के लिए परेशानी नहीं होगी। अब 2024 में शहर की जनसंख्या बढ़कर डबल यानी 6 लाख 55 हजार के करीब है। साथ ही महाकाल लोक व अन्य मंदिरों के विकास कार्य होने से रोजाना आने वाले हजारों श्रद्धालुओं की संख्या अलग।

वर्तमान में डेम की क्षमता कम हाेने के चलते शहर की जनता के लिए पानी अब एक साल के लिए भी पर्याप्त नहीं है। शहर के पास पानी का स्राेत एक ही है, जबकि पिछले 33 साल में जनसंख्या दोगुनी और इंफ्रास्ट्रक्चर भी तीन गुना बढ़ गया है। उंडासा और साहेबखेड़ी से जितना पानी लिया जा रहा है, उतना शहर के लिए पर्याप्त नहीं है। जरूरत के अनुसार पानी की सप्लाई बढ़ाने के लिए नर्मदा से पानी लेना ही अभी एकमात्र विकल्प है। पानी की समस्या आने वाले कुछ समय में और बढ़ सकती है। जब तक कोई नया मॉडल तैयार नहीं होता, तब तक वैकल्पिक व्यवस्थाएं बढ़ानी होंगी।

बनाते समय दावा था - पूरी क्षमता से डेम भराया तो तीन साल तक पानी की नहीं होगी किल्लत

शहर के विकास ने पानी की आवश्यकता को बढ़ाया गंभीर डेम बनने के बाद से 33 सालों में उज्जैन मेंे चारों तरफ से तेजी से विकास हुआ है। तब से अब तक शहर में वैध और अवैध मिलाकर 562 कॉलोनियां हैं। 400 से उद्यान बनाए जा चुके हैं। विक्रम उद्योगपुरी और एमडीपी को मिलाकर 96 उद्योग खुल चुके हैं। साथ ही यहां रोजाना हजारों श्रद्वालु आते हैं, जिनके लिए महाकाल लोक बनने के बाद ही उज्जैन उत्तर में 800 से ज्यादा होटल और होम स्टे बनकर तैयार हो गए हैं।

ये सभी ऐसे विकास हैं, जिसमें पानी की जरूरत भी बढ़ी है और इसके चलते अब गंभीर की क्षमता शहर की जरूरत को पूरा नहीं कर पा रही है। इसके साथ ही इंदौर रोड 12 किमी, आगर रोड लगभग 7 किलोमीटर, मक्सी रोड 9 किमी, देवास रोड 9.5 किमी आदि सभी नगरीय सीमाओं में भी काफी फैलाव हो गया है।

पानी बहाव के साथ मिट्‌टी का जमाव, इससे गहराई पर असर
सिंहस्थ 2016 में दो प्रोजेक्ट शुरू हुए थे। पहला नर्मदा का पानी लेकर स्नान के लिए उपयोग करना और दूसरा कान्ह नदी का डायवर्सन लेकिन कान्ह नदी काे डायवर्ट करने में प्रशासन पूरी तरफ से सफल नहीं हो पाया। इसका मुख्य एक कारण इंदौर में जनसंख्या तेजी से बढ़ने के कारण वहां से निकाले गए पानी की क्षमता ज्यादा होना और समय के साथ डायवर्ट करने में उपयोग पाइप का सीसी कम होना है।

गंभीर डेम का मॉडल काफी पुराना है। हर साल पानी के बहाव के साथ मिट्टी का जमाव होता है। इससे डेम की गहराई पर असर पड़ता है। अभी शहर में गंभीर के साथ साहिब खेड़ी, उंडासा प्लांट से रोजाना लगभग एक से डेढ़ एमएलडी पानी शहर में सप्लाई के लिए लिया जा रहा है।

बचाव के लिए वाटर रिसाइकल प्लांट, डेम क्षमता बढ़ाना जरूरी
शहर में पानी की समस्या और ज्यादा बढ़ने वाली है, जिसे देखते हुए डेम क्षमता बनाने के साथ नए स्रोतों को तैयार करना, नए वाटर प्रोजेक्ट बनाना, रिसाइकल वाटर प्लांट चलाना और सबसे महत्वपूर्ण घरों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना बहुत जरूरी है। नहीं तो आने वाले समय में गंभीर का पानी आधे साल भी जरूरत पूरी नहीं कर पाएगा।

रोजाना रिसाव के चलते व्यर्थ होता है 20 से 30 प्रतिशत पानी
गर्मी में पानी की आवश्यकता ज्यादा रहती है, तब शहरवासियों को एक दिन छोड़कर पानी मिल पा रहा है। पीएचई की जल वितरण लाइन भी बहुत पुरानी है, जिसके चलते कई जगह से पानी का रिसाव होता है और प्रदाय करने पर 20 से 30 प्रतिशत पानी रिसाव से बह जाता है। साथ ही अवैध रूप से नल कलेक्शन भी इसका कारण है।

फिलहाल गंभीर में पर्याप्त पानी, नर्मदा से ले रहे 27 एमएलडी जल

^गंभीर में अभी शहर के लिए पर्याप्त पानी है। अभी कुछ समस्या आ रही थी, उसे देखकर एक दिन छोड़कर जलप्रदाय किया जा रहा है। जल संबंध नए प्रोजेक्ट डब्ल्यूआरडी (वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट) से अगर आता है तो उस पर निश्चित कार्य होगा। यह कार्य डिपार्टमेंट द्वारा ही होता है। अभी हम नर्मदा से 27 एमएलडी पानी ले रहे हैं, अगर जरूरत होगी तो मात्रा बढ़ा देंगे। अभी प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। -आशीष पाठक, निगम आयुक्त

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