चंदेसरी की शांत भाटी का परिवार पीढ़ियों से मांडना लोककला बनाने का कार्य कर रहा है।
चंदेसरी की शांत भाटी का परिवार पीढ़ियों से मांडना लोककला बनाने का कार्य कर रहा है। आज जब पक्के घर का दौर शुरू होने के बाद मांडना कला खत्म होती जा रही है। ऐसे में वहीं शांति मालवा के इस कला को कैनवास में उकेर लोगों तक पहुंचाती हैं।
उन्हें यह कार्य करते 50 साल से भी ज्यादा का समय हो गया है और पिछले 30 साल से जनजाति संग्रहालय के लिए मांडना आर्ट और तोरण बनाने का कार्य कर रही है। शांति को देश के सभी शासकीय मेलों में पेंटिंग बनाने के लिए बुलाया जाता है। इसके साथ ही उज्जैन जिले के समस्त गांवों में स्वच्छ भारत मिशन के लिए पेंटिंग बनाने का कार्य भी शांति और उनकी टीम द्वारा किया गया है। उन्होंने प्रत्येक गांवों की दीवार पर स्वच्छ भारत संदेश के चलते पेंटिंग बनाई हैं।
शांति ने बताया कि यह कार्य उनका परिवार सालों से कर रहा है। उन्होंने बचपन में अपनी दादी, नानी और मां को मांडते देख यह कला सीखी है। तब बाजार के रंग की जगह गोबर, कुमकुम और हल्दी से बने रंगों को घोलकर मांडा जाता था लेकिन अब बाजार में घरेलू रंग के कई विकल्प मौजूद है। साथ ही पहले रूई से पोता जाता था, अब ब्रश से काम होता है। पहले के समय में घर-घर यह कला लगभग सबको आती थी लेकिन वर्तमान में इस कार्य को बहुत कम लोग जानते हैं। मांडना कार्य आने के चलते मैं प्रदेश ही नहीं पूरे देश में मांडना आर्ट करने जाती हूं। मेरी दोनों बेटियों को यह कला आती है। हमें सरकार की तरफ से सभी जगह होने वाले हस्तशिल्प मेले में बुलाया जाता है। जनजाति संग्रहालय में भी मांडना आर्ट पेंटिंग और हाथ से बने हुए सामान पहुंचाती है।
खजुराहो फेस्टिवल में मालवा की प्रसिद्ध कला संजा बनाने बुलवाया शांति अब तक केरल, गोवा, चेन्नई, इलाहबाद, लखनऊ जैसे कई जगहों पर होने वाले आयोजनों में उज्जैन से कलाकार के रूप में शामिल हो चुकी हैं। शांति मांडना आर्ट करने के साथ ही कपड़ों से बनी चिड़िया और ़सामानों से तोरण का निर्माण करती हैं। इसके साथ ही शांति आधुनिक समय में विलुप्त होती जा रही मालवा की प्रसिद्ध कला संजा को बनाने भी जाती हैं। कुछ समय पहले ही उन्हें खजुराहो फेस्टिवल में संजा बनाने के लिए बुलाया गया था। वर्तमान में कालिदास उत्सव में वे अपनी पेंटिग और तोरण लेकर आई थी।