उज्जैन में विक्रमादित्य की पत्थर की मूर्ति लगेगी विक्रम पंचांग में नजर आएंगे महादेव के कई रूप
गुड़ी पड़वा पर विक्रम पंचांग जारी किया जाएगा। इस बार की थीम महादेव और महादेव के विभिन्न रूप रखी गई है। महादेव के कई रूप हैं- रूद्र, नटराज, भोलेनाथ, काल भैरव...। इस पंचांग में बदलाव भी किए गए हैं। इसमें देश-दुनिया के संवत्सर के बारे में जानकारी दी है। महादेव के 108 नाम लिखे हैं। शांति, योग, नृत्य, ध्यान, जगत पिता। 12 ज्योतिर्लिंग के बारे में बताया है। विक्रम पंचांग में महाकाल के विभिन्न शृंगार की तस्वीर छापी गई है। साथ ही महाकाल के आध्यात्मिक पक्ष की जानकारी दी है। महाकाल की मंगलकारी छवियां भी प्रमुखता से दी हैं।
इसके अलावा अंग्रेजी कैलेंडर के साथ पारंपरिक पर्व-त्योहार, तिथियां, चौघड़िया, गृह, नक्षत्रों की जानकारी और सूर्य की स्थिति भी बताई गई है। महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी ने बताया कि शिव व सम्राट विक्रमादित्य की पत्थर की मूर्ति भी स्थापित की जाएगी। इसका स्कैच तैयार हो गया है। मूर्ति या तो विक्रमादित्य शोधपीठ के परिसर में स्थापित की जाएगी या कहीं और। अभी तय नहीं है। इसके अलावा सप्तऋषि अत्रि, कश्यप, गौतम, जमदग्नि, भारद्वाज, वशिष्ठ, विश्वामित्र की पत्थर मूर्तियां भी बनाई जा रही हैं।
उज्जैन से किए जाने वाले काल निर्धारण से ही विश्व का पंचांग निर्माण कराने का संकल्प
अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डॉ. ईश्वरीशरण विश्वकर्मा ने विक्रमोत्सव-2024 के अंतर्गत चल रहे राष्ट्रीय इतिहास समागम में भारत का संवत विक्रम संवत् हो, ऐसा संकल्प पारित करवाया। विक्रम विवि के पुराविद् डॉ. रमण सोलंकी ने बताया कि उज्जैन परिक्षेत्र डोंगला ग्राम स्थित खगोलीय वेधशाला से किए जाने वाले काल निर्धारण को ही भारत का काल निर्धारण मानकर विश्व के पंचांग निर्माण करना चाहिए।
आज जारी होगा विक्रम पंचाग।
जब तक जीवित रहे राजा रहे।
जन्म के समय उनका चंद्रमा उच्च राशि में था। इसलिए सांसारिक सुख प्राप्त हुआ।
रोहिणी नक्षत्र के कारण सुंदर और शक्तिशाली थे। सूर्य उच्च राशि में होने से सदा लक्ष्मी का निवास था।
उज्जैन में व्यापार को बढ़ाया। जनता को अपने निजी कोष से धन देकर कर्ज मुक्त किया।
पत्नियां कुलीन और पति परायण थीं।
नौवें स्थान पर गुरु, शुक्र होने से चिरायु और पराक्रमी थे।
देवताओं और अतिथियों का सम्मान करने वाले। सत्यवादी राजा थे विक्रमादित्य।
विद्वान, अच्छे मित्र और आभूषणों और र|ों की कमी नहीं थी।
पांच ग्रह सूर्य, चंद्र, शुक्र, राहु और केतु उच्च राशि में होने से सम्राट बनने का योग था।
विक्रमादित्य की संतान विद्वान नहीं थी। इसलिए विक्रमादित्य की कीर्ति को बनाकर नहीं रख पाए।
भाई भर्तृहरि संन्यासी प्रवृत्ति के थे।
सभी प्रकार के वाहनों का सुख प्राप्त था। मंदिरों का निर्माण कराया।
चंद्रमा की दृष्टि होने के कारण हरसिद्धि देवी उनकी आराध्य देवी थी।
केतु की दशा वृद्ध अवस्था में आई होगी। शारीरिक कष्ट और कलंक भी लगे होंगे।
राजा विक्रमादित्य की कुंडली में जिंदगी भर राजा बने रहने का योग...