कवियों ने कृष्ण लीलाओं का विस्तार किया व असंख्य पदों की रचना की- प्रो. गोस्वामी
महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ द्वारा विक्रमादित्य, उनके युग, भारत उत्कर्ष, नवजागरण और भारत विद्या पर एकाग्र विक्रमोत्सव अंतर्गत 11 से 15 मार्च तक जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी की अगुवाई में आयोजित श्रीकृष्णलीलामृतं कार्यक्रम अंतर्गत सोमवार को श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का रहस्य विषयक विमर्श का आयोजन हुआ।
मुख्यवक्ता वृंदावन के प्रो. कृष्णचंद्र गोस्वामी ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि कृष्ण की अनेक लीलाएं लोक से जुड़ी हैं। लोक से जुड़ने के कारण ही उनकी लीलाएं सर्वथा अलग प्रतीत होती हैं। कृष्ण का लोक से जुड़ाव बहुत ही सामर्थवान था। भक्ति काल के स्पर्श से कृष्ण की लीलाएं बहुत ही विस्तारित हुई। इस काल में राधा की प्रधानता प्रकट हुई है। भक्त कवियों ने भागवत को आधार बना कर कृष्ण की लीलाओं का विस्तार किया और असंख्य पदों की रचना की। श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। भक्तों ने कृष्ण की विभिन्न अवस्थाओं को बहुत ही भावपूर्ण रूप में रचा है। बाल, किशोर और युवा कृष्ण की लीलाएं ब्रजमंडल की महत्वपूर्ण लीलाएं हैं। ब्रज की लीलाओं के कृष्ण स्वर्णिम मुकुट की कामना वाले कृष्णा नहीं है बल्कि उन्होंने मोर मुकुट पुष्प की माला धारण की है। कृष्ण का वास्तविक अर्थ जो अपनी तरफ खिंचे वही कृष्णा है।
प्रेम का संबंध कृष्ण की लीलाओं को बहुत ही विशेष बनता है। कालिदास अकादमी, अभिरंग में आयोजित इस संगोष्ठी में डॉ. अखिलेश कुमार द्विवेदी ने श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं के संबंध में कहा कि कृष्ण ने लीलाओं के माध्यम से प्रकृति पर्यावरण का संरक्षण भी किया है। इस अवसर कालिदास अकादमी के निदेशक गोविंद गंधे ने विक्रम पंचांग भेंट कर अतिथियों का स्वागत किया। डॉ. संतोष पंड्या ने सभी का आभार व्यक्त किया।