मुख्य पुजारी के विषय को लेकर अ.भा. पुजारी महासंघ की संभागायुक्त से भेंट
उज्जैन- पूरे देश एवं मध्यप्रदेश में हजारों मंदिर हैं, वहां कोई मुख्य पुजारी नहीं होता है लेकिन कुछ समय से नगर और प्रदेश के मंदिरों के कई पुजारियों ने अ.भा.पुजारी महासंघ को मुख्य पुजारी विषय को लेकर अवगत कराया कि कई पुजारी लोग अपने आप को मुख्य पुजारी बताते हैं और अपने नाम के आगे मुख्य पुजारी शब्द का उपयोग करते हैं, उनके वाहनों पर भी मुख्य पुजारी लिखा हुआ देखा जा सकता हैं। जिसके कारण उन्ही के समकक्ष जो पुजारी होते हैं वह अपने आप को अपमानित महसूस करते हैं। इस विषय को लेकर अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश पुजारी एवं सचिव रूपेश मेहता ने उज्जैन के संभागायुक्त से भेंट की और उनसे निवेदन कर पुजारियों का पक्ष रखा कि नगर और प्रदेश में किसी भी मंदिर में मुख्य पुजारी की स्थापना या पद नहीं हैं। महेश पुजारी ने कहा कि मंदिरों में परंपरा अनुसार जो पुजारी हजारों वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी सेवा देते आ रहे हैं वह वंशानुगत पुजारी माने जाते हैं और जो राजघराने की ओर से पूजा करते हैं वे नेमनुकदार ब्राह्मण होते हैं। जो केवल नेमनुक प्राप्त करते हैं और जो वंशानुगत पुजारी होने के साथ शासन से नेमनुक प्राप्त करते है वह नेमनुकदार पुजारी होता है। साथ ही जहां प्रशासन द्वारा शासकीय पुजारी नियुक्त किए जाते है जिन्हें वेतन दिया जाता हैं वह भी प्रशासन के वेतनभोगी कर्मचारी से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
प्रशासन द्वारा भी किसी पुजारी की नियुक्ति या नामांतरण किया जाता है तो उसमें केवल पुजारी शब्द का ही उल्लेख होता है। मुख्य पुजारी शब्द का कहीं भी उल्लेख नहीं होता हैं। उज्जैन नगर और प्रदेश के समस्त मंदिरों में कई मंदिर ऐसे है जहां वंशानुगत रूप से पुजारियों की संख्या अधिक होती है वहां भी मुख्य पुजारी की कोई व्यवस्था नहीं हैं फिर भी कुछ तथाकथित लोग मुख्य पुजारी शब्द का उपयोग करते हैं। उनके विजिटिंग कार्ड पर, निवास स्थान पर लगी नेम प्लेट पर, वाहनों पर, मंदिरों में अपने स्थान पर मुख्य पुजारी लिखा हुआ होता हैं। जिससे उस स्थान के समकक्ष पुजारियों का अपमान होता हैं जो कि अनुचित हैं। इस पर रोक होना चाहिए। ऐसे पुजारियों पर अ.भा.पुजारी महासंघ द्वारा संभागायुक्त से चर्चा कर कार्यवाही की मांग की हैं।