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69 साल की वर्मा 40 साल से मालवा की इस कला को देश-दुनिया में फैलाया रही हैं।


अयोध्या में 22 जनवरी को श्रीराम की मूर्ति स्थापना को लेकर लोग काफी उत्साहित हैं। मालवा की लोक कलाकार कृष्णा वर्मा मांडना (गेरू और खड़ी से बनाए चित्र) लोक कला से घर-घर मांडने बनाकर दीप जलाएंगी। इसके लिए और कलाकारों को साथ में जोड़कर कला सिखा रही हैं। मांडना राजस्थान व मालवा की कला है। हाल ही में वर्मा को राष्ट्रीय राजा मानसिंह तोमर सम्मान प्राप्त हुआ।

इससे पहले राष्ट्रपति से सम्मानित हो चुकी हैं। 69 साल की वर्मा 40 साल से मालवा की इस कला को देश-दुनिया में फैलाया रही हैं। इनके द्वारा बनाई गई संजा कृति लंदन और ऑस्ट्रेलिया के म्यूजियम में शोभा बढ़ा रही है। किंवदंती के अनुसार जब लक्ष्मण कुटिया से श्रीराम की आवाज सुनकर पीछे जाने लगे, तब सीता माता की रक्षा के लिए लक्ष्मण रेखा खींची। यहीं से मांडना की शुरुआत हुई।

कृष्णा वर्मा ने गोबर, फूल, पत्तियों और रंगों से त्योहारों पर विभिन्न आकृतियों में संजा और मांडने बनाने का हुनर पांच साल की उम्र में ही सीख लिया था। लोक कला का शिखर सम्मान प्राप्त कर चुकी वर्मा ने कहा मालवा की इस लोक कला को आगे बढ़ाया जाए। युवा पीढ़ी भी इस कला में रुचि दिखाए तो इस कला को दुनिया में पहचान मिलेगी।

यह तीन विधि :

मांडना गेरू (लाल मिट्टी), चूना या खड़िया (सफेद या धौली मिट्टी) से बनते हैं। ब्रश बनाने के लिए कई विधियां हैं। नीम, बबूल, आम की दातुन को तोड़ उसके सिरे को पत्थर से कुचलते हैं, इससे उसका सिरा ब्रश जैसा काम देती है।
दूसरी विधि में, सींक, छोटी लकड़ी के सिरे पर थोड़ी सी रुई लपेटी जाती है, फिर उसे धागे से बांध दिया जाता है।
तीसरी विधि में कपड़े के टुकड़े को गेरू या ख‍ड़ी में भिगोकर सीधे बनाया जाता है। यह थोड़ा कठिन है, इसमें टिशू पेपर भी ले सकते हैं। आजकल पेंटिंग के ब्रश से मांडने बनाए जाने लगे हैं। अनेक रंगों का भी उपयोग होने लगा है। भूमि व दीवारों के अलावा कपड़े व कैनवास पर भी मांडने बनाए जा रहे हैं।

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