कार्तिक पूर्णिमा पर सर्वार्थ सिद्धि योग
कार्तिक मास की पूर्णिमा सालभर में आने वाली 12 पूर्णिमाओं में विशेष महत्व रखती है। इसके विशिष्ट कारण यह है कि यह पूर्णिमा भगवान महा विष्णु के प्रबोधन के पांचवें दिन आती है।
इसी पूर्णिमा से ऋतु काल का परिवर्तन सृष्टि में नई सृजन की स्थिति को तैयार करता है। पूर्णिमा तिथि इस बार सोमवार को कृतिका नक्षत्र में आरंभ तथा चंद्र दर्शन रोहिणी नक्षत्र में होने से इसकी संज्ञा महापुण्य और महाकार्तिकी नाम से जानी जाती है। इस पूर्णिमा पर पितरों के निमित्त दीपदान भगवान विष्णु के निमित्त विशेष साधना पूजन पाठ और भगवान शिव की अभिषेकात्मक पूजन, सुख सौभाग्य में वृद्धि एवं दीर्घायु तथा धन-धान्य की प्राप्ति तथा सात जन्म पर्यंत धन की पूर्णता का आशीर्वाद प्रदान करती है।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बेवाला ने बताया कि कार्तिक मास संपूर्ण रुप से दान धर्म, यम, नियम, संयम का माना जाता है। इस दौरान यम के निमित्त दीपदान, पितरों के निमित्त तर्पण,भगवान विष्णु की पूजन तथा भगवान शिव के अभिषेक की भी मान्यता धर्मशास्त्र और पुराण में बताई जाती है। कार्तिक मास में पितरों के निमित्त तर्पण और सुख पिंडी या त्रिपिंडी श्राद्ध करने की परंपरा है। यह वह पिंड होता है,जो सुख की प्राप्ति के लिए पितरों को दिया जाता है। साथ ही वैदिक ब्राह्मण को यथा श्रद्धा यथा भक्ति अन्नदान पात्रदान, वस्त्रदान करना चाहिए सर्वार्थ सिद्धि योग में किया गया दान विशेष पुण्य तथा धन धान्य की प्राप्ति करवाता है।