त्यौहारी रंगत में चुनावी माहौल फीका हुआ
विधानसभा चुनाव हर बार की तुलना में इस बार पूर्ण रूप से शांत है। विगत चुनावों में भाजपा कांग्रेस कार्यकर्ताओं की खींचतान, प्रत्याशियों पर व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप जैसे मामले इस बार नजर नहीं आ रहे।
गत चुनाव में जूते की माला पहनाने का मामला बहुत गरमाया था। इसके बाद व्यक्तिगत आरोपों की झड़ी लग
गई थी। पूरे चुनाव में कई बार कार्यकर्ताओं में झड़प जैसी स्थिति भी बन गई थी, परंतु इस बार ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा। मतदाता तो ठीक इस बार कार्यकर्ताओं में भी ज्यादा उत्साह नहीं दिख रहा। विगत चुनावों की तुलना में प्रचार-प्रसार एवं अन्य खर्च इस बार काफी कम होने का
आंकलन लगाया जा रहा है। इन सभी स्थितियों से चुनावी माहौल रफ्तार नहीं पकड़ पाया।
आखिरी दिन माहौल बनाने के प्रयास चुनाव प्रचार के आखिरी दिन शहर में प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक कर माहौल बनाने का प्रयास किया। पूरे चुनाव में पहली बार इतनी संख्या में नागदा शहर में कार्यकर्ता प्रचार में उतरे। इस सबके बाद मतदाता मौन धारण किए हुए हैं, खुल कर किसी के पक्ष में कोई भी बात करने से परहेज कर रहा है। मतदाताओं की यही चुप्पी जीत के दावेदार उम्मीदवारों को संशय में डाल रही है।
सट्टा बाजार भी शांत हर बार चुनावी माहौल में हार जीत को लेकर सक्रिय रहने वाला सट्टा बाजार भी इस बार चुप्पी बनाए बैठा है। हर चुनाव में गुपचुप में जो व्यापारी हार-जीत को अपनी सट्टेबाजी के भाव से माहौल को हवा देते थे इस बार
सक्रिय नहीं दिख रहे हैं।
पट्टा नहीं तो वोट नहीं
पहले से ही नीरस चुनाव में बिरलाग्राम क्षेत्र के रेलवे किनारे बनी बस्तियों में लगे पोस्टरों ने उम्मीदवारों का तनाव और बढ़ा दिया है। रेलवे द्वारा पूर्व में इन बस्तियों के रहवासियों को नोटिस जारी कर खाली करने का कहा था। सांसद के दखल के बाद तात्कालिक तौर पर मामला शांत तो हो गया था पर स्थायी हल नहीं निकल पाया था। दोनों प्रमुख पार्टियाँ इस मामले को निपटाने में सफल नहीं रही। यहाँ के रहवासियों ने पूरे क्षेत्र में पोस्टर लगाकर मतदान का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी है। अब देखना यह है कि वर्षों से पट्टा मिलने की राह देख रहे इन मतदाताओं को उम्मीदवार कैसे समझा पाते हैं?